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शिव की ना ही कोई शुरुआत है और ना ही कोई अंत! आखिर कौन थे भगवान शिव के जन्मदाता?

locationनई दिल्लीPublished: Jan 15, 2018 08:43:35 am

Submitted by:

Priya Singh

शिव भक्तों के लिए यह पहेली अनसुलझी है कि उनके माता-पिता कौन थे?

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नई दिल्ली। शिव भक्तों के लिए यह पहेली अनसुलझी है कि उनके माता-पिता कौन थे? उनका जन्म कैसे हुआ? और इस सवाल का जवाब कोई शास्त्र सही नहीं दे पाते। पुराणों में उनके माता-पिता को लेकर कई मतभेद हैं। वेदों में भगवान को निरंकार ही बताया जाता है। भगवान शिव को कई और नामों से जाना और पुकारा जाता है जैसे की- भोलेनाथ, महादेव, शम्भु, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ इत्यादि। साथ ही साथ तंत्र साधना में शिव जी को भैरव के नाम से पुकारा जाता है। भगवान शिव हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं। भगवान शिव के बारे में तो सभी जानते हैं, शिव जी के भक्तों को उनके बारे में सारी जानकारी होगी लेकिन इनके माता-पिता के बारे में शायद आपको नहीं पता होगा।
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जैसा की आप जानते हैं भगवान शिव जी की अर्धांगिनी यानि देवी शक्ति का दूसरा नाम माता पार्वती है। भगवान शिव के दो पुत्र कार्तिकेय और गणेश हैं और एक पुत्री अशोक सुंदरी है। शिव जी ने अपने ही शरीर से देवी शक्ति की सृष्टि एवं रचना की, इसी वजह से वो उनके अंग से कभी अलग होने वाली नहीं थी। देवी शक्ति को पार्वती के रूप में जाना गया और भगवान शिव को अर्धनारीश्वर के रूप में।
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महापुराण के अनुसार, भगवान शिव के पिता के ऊपर भी एक कथा वर्णित है। देवी महापुराण के अनुसार, एक बार जब नारदजी ने अपने पिता ब्रह्माजी से सवाल किया कि इस सृष्टि का निर्माण किसने किया? और आप त्रिदेवों को किसने जन्म दिया? तो ब्रह्मा जी ने नारदजी से त्रिदेवों के जन्म की गाथा का वर्णन करते हुए बयाता था कि, देवी दुर्गा और शिव स्वरुप ब्रह्मा के योग से ब्रह्मा, विष्णु और महेश की उत्पत्ति हुई है। इसका यह अर्थ हुआ है कि, दुर्गा ही माता हैं और ब्रह्म यानि काल-सदाशिव पिता हैं। एक बार श्री ब्रह्मा जी और विष्णु जी की इस बात पर लड़ाई हो गई तो ब्रह्मा जी ने कहा “मैं तुम्हारा पिता हूं क्योंकि यह सृष्टि मुझसे उत्पन्न हुई है। मैं प्रजापिता हूं, इस पर विष्णु जी ने उत्तर दिया कि ” नहीं मैं प्रजापिता हूँ, तुम मेरी नाभि कमल से उत्पन्न हुए हो”।
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यह बहस चल ही रही थी तभी सदाशिव ने विष्णु जी और ब्रह्मा जी के बीच आकर कहा कि, “मैंने तुमको जगत की उत्पत्ति और स्थिति रूपी दो कार्य दिए हैं, इसी प्रकार मैंने शंकर और रूद्र को दो कार्य संहार और तिरोगति दिए हैं, मुझे वेदों में ब्रह्म कहा है, मेरे पांच मुख है”। एक मुख से अकार (अ), दूसरे मुख से उकार (उ), तीसरे मुख से मुकार (म), चौथे मुख से बिन्दु (.) तथा पांचवें मुख से नाद (शब्द) प्रकट हुए हैं, उन्हीं पांच अववयों से एकीभूत होकर एक अक्षर ओम् (ऊँ) बना है। यही मेरा मूल मंत्र है। इस प्रकार उपरोक्त शिव महापुराण के प्रकरण से सिद्ध हुआ कि शिवजी की माता श्री दुर्गा देवी (अष्टंगी देवी) हैं और पिता सदाशिव अर्थात् “काल ब्रह्म” है। वसे शिव जी के बारे में तो ये ही कहा जाता है कि शिव की नहीं कोई शुरुआत है और ना ही कोई अंत!
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