scriptनवरात्रि 2020 : ये है सती से लेकर पावर्ती तक की कथा, जानें क्या हैं रहस्य | An special secret of shakti peeths | Patrika News

नवरात्रि 2020 : ये है सती से लेकर पावर्ती तक की कथा, जानें क्या हैं रहस्य

locationभोपालPublished: Oct 15, 2020 04:37:12 pm

देवी भागवत पुराण में मिलता है वर्णन…

Navratri : All Devi shakti peeth are the part of gooddess sati

Navratri : All Devi shakti peeth are the part of gooddess sati

शारदीय नवरात्रि 2020 इस बार 17 अक्टूबर को शुरु होने वाले है, और नवरात्रि में देवी मां के नौ रुपों को पूजन किया जाता है। ऐसे में इस बार हम आपको देवी मां की शक्ति पीठों से जुड़े कुछ खास रहस्य बताने जा रहे हैं। ये तो सभी जानते है कि देवी शक्ति पीठ माता सती से जुड़े माने जाते हैं, दरअसल माता सती के शव के भगवान विष्णु के चक्र से छिद्रण के समय माता सती के शरीर का जो भाग जहां गिरा वहीं शक्ति पीठ का निर्माण हुआ।

वहीं जानकारों के अनुसार माता सती को ही पार्वती, दुर्गा, काली, गौरी, उमा, जगदम्बा, गिरीजा, अम्बे, शेरांवाली, शैलपुत्री, पहाड़ावाली, चामुंडा, तुलजा, अम्बिका आदि नामों से भी जाना जाता है। इनकी कहानी बहुत ही रहस्यमय है। यह किसी एक जन्म की कहानी नहीं कई जन्मों और कई रूपों की कहानी है।

देवी भागवत पुराण में माता के 18 रूपों का वर्णन मिलता है। हालांकि नौ दुर्गा और दस महाविद्याओं (कुल 19) के वर्णन को पढ़कर लगता है कि उनमें से कुछ माता की बहनें थीं और कुछ का संबंध माता के अगले जन्म से है। जैसे पार्वती, कात्यायिनी अगले जन्म की कहानी है जो तारा माता की बहन मानी जाती हैं।

MUST READ : यहां गिरी थी सती की नाभी, ये है महाकाली की शक्ति पीठ

purnagiri.jpg

माता सती का पहला जन्म…
सती माता : पुराणों के अनुसार भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्रों में से एक प्रजापति दक्ष कश्मीर घाटी के हिमालय क्षेत्र में रहते थे। प्रजापति दक्ष की दो पत्नियां थी- प्रसूति और वीरणी। प्रसूति से दक्ष की चौबीस कन्याएं जन्मी और वीरणी से साठ कन्याएं। इस तरह दक्ष की 84 पुत्रियां और हजारों पुत्र थे।
राजा दक्ष की पुत्री ‘सती’ की माता का नाम था प्रसूति। यह प्रसूति स्वायंभुव मनु की तीसरी पुत्री थी। अपनी इच्छा के विपरीत भी राजा दक्ष ने अपनी पुत्री सती का विवाह कैलाश निवासी भगवान शंकर यानि रुद्र से किया था।

रुद्र को ही शिव कहा जाता है और उन्हें ही शंकर। वहीं जिन एकादश रुद्रों की बात कही जाती है वे सभी ऋषि कश्यप के पुत्र थे, उन्हें भी शिव का अवतार माना जाता था। ऋषि कश्यप भगवान शिव के रिश्तेदार थे।

कथा के अनुसार मां सती ने एक दिन कैलाशवासी शिव के दर्शन किए और वह उन पर मोहित हो गई। साथ ही प्रजापति दक्ष ने न चाहते हुए भी अपनी पुत्री सती से भगवान शिव से विवाह कर दिया। दक्ष इस विवाह से संतुष्ट नहीं थे, क्योंकि सती ने अपनी मर्जी से एक ऐसे व्यक्ति से विवाह किया था जिसकी वेशभूषा और शक्ल दक्ष को कतई पसंद नहीं थी और जो अनार्य था।

An special secret of shakti peeths

शंकर व सती के विवाह के बाद दक्ष ने एक विराट यज्ञ का आयोजन किया, लेकिन उन्होंने अपने दामाद और पुत्री को यज्ञ में निमंत्रण नहीं भेजा। फिर भी सती माता भगवान शिव के मना करने पर भी यज्ञ में पिता के घर जैसे तैसे कई प्रकार के तर्क कर भगवान शंकर से आज्ञा लेकर आई और अपने पिता के यज्ञ में पहुंच गई। लेकिन दक्ष ने पुत्री के आने पर उपेक्षा का भाव प्रकट किया और शिव के विषय में सती के सामने ही अपमानजनक बातें कही। सती के लिए अपने पति के विषय में अपमानजनक बातें सुनना हृदय विदारक और घोर अपमानजनक था। पति के प्रति खुद के द्वारा किए गए ऐसे व्यवहार और पिता द्वारा पति के किए गए अपमान से नाराज सती यज्ञ कुंड में कूद गई और अपने प्राण त्याग दिए। बस यहीं से सती के शक्ति बनने की कहानी शुरू होती है।

शिव जब दुखी हो गए : सती के यज्ञ में कूदने की खबर सुनते ही शिव ने वीरभद्र को भेजा, जिसने दक्ष का सिर काट दिया। इसके बाद भगवान शिव ने दुखी होकर सती के शरीर को अपने सिर पर धारण कर तांडव नृत्य शुरु कर दिया। पृथ्वी समेत तीनों लोकों को व्याकुल देख कर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र द्वारा सती के शरीर के टुकड़े करने शुरू कर दिए।

शक्तिपीठ : इस तरह सती के शरीर का जो हिस्सा और धारण किए आभूषण जहां-जहां गिरे वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आ गए। देवी भागवत में 108 शक्तिपीठों का जिक्र है, तो देवी गीता में 72 शक्तिपीठों का जिक्र मिलता है। वहीं देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों की चर्चा की गई है।

MUST READ : मां दुर्गा के प्रसिद्ध मंदिर, जानें क्यों हैं खास

goddess_temples.jpg

पार्वती कथा :शिव-पार्वती विवाह…
दक्ष के बाद सती ने हिमालय के राजा हिमवान और रानी मैनावती के यहां जन्म लिया। मैनावती और हिमवान को कोई कन्या नहीं थी तो उन्होंने आदिशक्ति की प्रार्थना की। आदिशक्ति माता सती ने उन्हें उनके यहां कन्या के रूप में जन्म लेने का वरदान दिया। दोनों ने उस कन्या का नाम रखा पार्वती, पार्वती अर्थात पर्वतों की रानी। इन्हीं को गिरिजा, शैलपुत्री और पहाड़ों वाली रानी कहा जाता है।

माना जाता है कि इससे पहले जब सती के आत्मदाह के उपरांत विश्व शक्तिहीन हो गया। उस भयावह स्थिति से त्रस्त महात्माओं ने आदिशक्तिदेवी की आराधना की। तारक नामक असुर सबको परास्त कर त्रैलोक्य पर एकाधिकार जमा चुका था। ब्रह्मा ने उसे शक्ति भी दी थी और यह भी कहा था कि वह शिव के औरस पुत्र के हाथों मारा जाएगा।

शिव को शक्तिहीन और पत्नीहीन देखकर तारक आदि असुर प्रसन्न थे। असुरों के अत्याचारों से परेशान देवता देवी की शरण में गए। देवी ने हिमालय (हिमवान) की एकांत साधना से प्रसन्न होकर देवताओं से कहा- ‘हिमवान के घर में मेरी शक्ति गौरी के रूप में जन्म लेगी। शिव उससे विवाह करके पुत्र को जन्म देंगे, जो तारक वध करेगा।’

वहीं भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए देवर्षि के कहने मां पार्वती वन में तपस्या करने चली गईं। भगवान शंकर ने पार्वती के प्रेम की परीक्षा लेने के लिए सप्तऋषियों को पार्वती के पास भेजा।

सप्तऋषियों ने पार्वती के पास जाकर उन्हें हर तरह से यह समझाने का प्रयास किया कि शिव औघड़, अमंगल वेषभूषाधारी और जटाधारी हैं। तुम तो महान राजा की पुत्री हो तुम्हारे लिए वह योग्य वर नहीं है। उनके साथ विवाह करके तुम्हें कभी सुख की प्राप्ति नहीं होगी। तुम उनका ध्यान छोड़ दो। अनेक यत्न करने के बाद भी पार्वती अपने विचारों में दृढ़ रहीं।

उनकी दृढ़ता को देखकर सप्तऋषि अत्यन्त प्रसन्न हुए और उन्होंने पार्वती को सफल मनोरथ होने का आशीर्वाद दिया और वे पुन: शिवजी के पास वापस आ गए। सप्तऋषियों से पार्वती के अपने प्रति दृढ़ प्रेम का वृत्तान्त सुनकर भगवान शिव अत्यन्त प्रसन्न हुए और समझ गए कि पार्वती को अभी भी अपने सती रूप का स्मरण है।
सप्तऋषियों ने शिवजी और पार्वती के विवाह का लग्न मुहूर्त आदि निश्चित कर दिया।

MUST READ : कोरोना के बीच नियमों का पालन करते हुए नवरात्रि पर खुद करें ऐसे हवन, जानिए हवन सामग्री

navratri_yagya.jpg

‘पार्वती मंगल’ में शिव-पार्वती विवाह संत तुलसीदास के अनुसार…
पार्वती मंगल गोस्वामी तुलसीदास की प्रसिद्ध रचनाओं में से एक है। इसका विषय शिव-पार्वती विवाह है। ‘जानकी मंगल’ की भांति यह भी ‘सोहर’ और ‘हरिगीतिका’ छन्दों में रची गयी है। इसमें सोहर की 148 द्विपदियां और 16 हरिगीतिकाएं हैं। इसकी भाषा भी ‘जानकी मंगल की भांति अवधी है।

पार्वती मंगल की कथा संक्षेप में इस प्रकार है-
हिमवान की स्त्री मैना थी। जगजननी भवानी ने उनकी कन्या के रूप में जन्म लिया। वे सयानी हुई। दम्पत्ति को इनके विवाह की चिंता हुई। इन्हीं दिनों नारद इनके यहां आए। जब दम्पति ने अपनी कन्या के उपयुक्त वर के बारे में उनसे प्रश्न किया, नारद ने कहा –
‘इसे बावला वर प्राप्त होगा, यद्यपि वह देवताओं द्वारा वंदित होगा।’

यह सुनकर दम्पति को चिंता हुई। नारद ने इस दोष को दूर करने के लिए गिरिजा द्वारा शिव की उपासना का उपदेश दिया। अत: गिरिजा शिव की उपासना में लग गयीं। जब गिरिजा के यौवन और सौन्दर्य का कोई प्रभाव शिव पर नहीं पड़ा, देवताओं ने कामदेव को उन्हें विचलित करने के लिए प्रेरित किया किंतु कामदेव को उन्होंने भस्म कर दिया।

फिर भी गिरिजा ने अपनी साधना नहीं छोड़ी। कन्द-मूल-फल छोड़कर वे बेल के पत्ते खाने लगीं और फिर उन्होंने उसको भी छोड़ दिया। तब उनके प्रेम की परीक्षा के लिए शिव ने बटु का वेष धारण किया और वे गिरिजा के पास गये। तपस्या का कारण पूछने पर गिरिजा की सखी ने बताया कि वह शिव को वर के रूप में प्राप्त करना चाहती हैं। यह सुनकर बटु ने शिव के सम्बन्ध में कहा-
‘वे भिक्षा मांगकर खाते-पीते हैं, मसान में वे सोते हैं, पिशाच-पिशाचिनें उनके अनुचर हैं- आदि। ऐसे वर से उसे क्या सुख मिलेगा?’

किंतु गिरिजा अपने विचारों में अविचल रहीं। यह देखकर स्वयं शिव साक्षात प्रकट हुए और उहोंने गिरिजा को कृतार्थ किया। इसके अनंतर शिव ने सप्तर्षियों को हिमवान के घर विवाह की तिथि आदि निश्चित करने के लिए भेजा और हिमवान से लगन कर सप्तर्षि शिव के पास गये। विवाह के दिन शिव की बारात हिमवान के घर गयी। बावले वर के साथ भूत-प्रेतादि की वह बारात देखकर नगर में कोलाहल मच गया। मैना ने जब सुना तो वह बड़ी दु:खी हुई और हिमवान के समझाने – बुझाने पर किसी प्रकार शांत हुई। यह लीला कर लेने के बाद शिव अपने सुन्दर और भव्य रूप में परिवर्तित हो गए और गिरिजा के साथ धूम-धाम से उनका विवाह हुआ।

जिसके बाद पार्वती-शंकर के दो पुत्र और एक पुत्री हैं। पुत्र- गणेश, कार्तिकेवय और पुत्री वनलता हुए।

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो