मंदिर में हनुमान जी की भी प्रतिमा है। इसलिए मंदिर का नाम शिव- मारुति पड़ा। जानकारों के अनुसार अज्ञातवास के दौरान पांचों पांडव व द्रोपदी वनवास पर थे। इस दौरान शहडोल में विराट मंदिर, लखबरिया, भठिया के बाद अनूपपुर पहुंचे थे। पांडवों ने मंदिर से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर सोन नदी तट के पत्थरों को तराश कर मंदिर का निर्माण किया था।
सैकड़ों वर्ष पुराना यह मंदिर आज भी मजबूती के साथ स्थापित है। मंदिर एक ही रात में बनाया गया था, सभी जगह पत्थर का उपयोग किया गया है। चार स्तंभ मंदिर के अंदर मुख्य रूप से बनाए गए हैं। गर्भ गृह के बाहर मुख्य द्वार पर भगवान विष्णु के 10 अवतारों की मूर्ति बनी हुई है। नीचे शेषनाग, माता लक्ष्मी व गणेश की प्रतिमा है। द्वार के दोनों तरफ द्वारपाल हैं।
4 स्तंभ में बाईं तरफ घोड़ों पर सवार भगवान सूर्य, नीचे पुत्र कर्ण और हाथी पर सवार इंद्र की प्रतिमा बनी हुई है। दाएं स्तंभ में राजा इंद्र धनुष लिए हुए पुत्र अर्जुन हैं। दोनों स्तंभों में हरि प्रभु कृष्ण और गोपियों की भी प्रतिमा है। मंदिर के पीछे भगवान शिव और विष्णु के परिवार की प्रतिमाएं पत्थर पर उकेरी हैं। शिखर पर उत्तर की ओर मूर्तियां हैं।