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Chaitra Navratri 2022: Day04 – समस्त रोग-शोक दूर कर आयु-यश में वृद्धि का वरदान देता है नवरात्र की देवी का चतुर्थ रूप मां कूष्मांडा

Published: Apr 03, 2022 05:08:49 pm

जानें चतुर्थ मां कूष्मांडा का स्वरूप, पूजा विधि और इनसे मिलने वाला आशीर्वाद

navratri day 4

navratri day 4

4th Day of Navratra : इस साल मंगलवार, 05 अप्रैल 2022 को चैत्र नवरात्रि के चौथे दिन हर नवरात्र की तरह मां दुर्गा के चतुर्थ रूप मां कूष्मांडा की पूजा की जाती है। मां कूष्मांडा के संबंध में मान्यता है कि जब सृष्टि में चारों ओर अंधकार था और कोई भी जीव-जंतु नही था। तब मां ने ही सृष्टि की रचना की। कहा जाता है कि कूष्मांड यानि जिनमें ब्रह्मांड को उत्पन्न करने की शक्ति व्याप्त हो। ऐसे में चूंकि उदर से अंड तक माता अपने भीतर ब्रह्मांड को समेटे हुए हैं, इसी कारण इन्हें कुष्मांडा देवी के नाम से भी जाना जाता है।

देवी कुष्मांडा को आदिशक्ति दुर्गा का रूप में चौथा स्वरूप माना गया है, देवी मां का यह स्वरूप भक्तों को संतति सुख प्रदान करने वाला है। पंडितों के अनुसार नवरात्र के चतुर्थ दिन कुष्मांडा देवी का ध्यान मंत्र पढ़कर उनका आहवान किया जाता है और जिसके बाद मंत्र पढ़कर उनकी आराधना की जाती है।

मान्यता के अनुसार सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति ये ही हैं। सूर्यमंडल के भीतर के लोक में इनका निवास माना जाता है। केवल इन्हीं में वहां निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति है। इनके शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही दैदीप्यमान हैं।

Navratra 4th day

मां की पूजा विधि :
नवरात्र के चौथे दिन माता कूष्माण्डा की पूर्ण श्रृद्धा और विश्वास के साथ विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए। इस दिन देवी कूष्माण्डा की पूजा का विधान उसी प्रकार है जिस प्रकार देवी शक्ति का अन्य रुपों को पूजन किया गया है।

इस दिन भी सर्वप्रथम कलश और उसमें उपस्थित देवी देवता की पूजा करनी चाहिए। जिसके बाद माता के साथ अन्य देवी देवताओं की पूजा करनी चाहिए, इनकी पूजा के पश्चात देवी कूष्माण्डा की पूजा करनी चाहिए।

पूजा की विधि शुरू करने के पूर्व हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम करें और पवित्र मन से देवी का ध्यान करते हुए “सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च. दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे.”नामक मंत्र का जाप करें।

देवी मां का भोग : मालपुए का भोग लगाएं।

मंत्र – सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च | दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ||

4th day of Navratri

देवी मां से मिलने वाला आशीर्वाद: मां कूष्मांडा अत्यल्प सेवा और भक्ति से प्रसन्न होने वाली हैं। इनकी उपासना से सिद्धियों में निधियों को प्राप्त कर समस्त रोग-शोक से दूर होकर आयु-यश में वृद्धि होती है। साथ ही मां कूष्माण्डा की उपासना मनुष्य को आधियों-व्याधियों से सर्वथा विमुक्त करके उसे सुख, समृद्धि और उन्नति की ओर ले जाने वाली है।

पंडित एके शुक्ला के अनुसार मां की उपासना भवसागर से पार उतारने के लिए सर्वाधिक सुगम और श्रेयष्कर मार्ग माना जाता है। जैसा कि दुर्गा सप्तशती के कवच में भी लिखा गया है कि-
कुत्सित: कूष्मा कूष्मा-त्रिविधतापयुत: संसार: ।
स अण्डे मांसपेश्यामुदररूपायां यस्या: सा कूष्मांडा ।।

अर्थात: “वह देवी जिनके उदर में त्रिविध तापयुक्त संसार स्थित है वह कूष्मांडा हैं। देवी कूष्मांडा इस चराचार जगत की अधिष्ठात्री हैं।”

मां का स्वरूप :
इनके तेज और प्रकाश से ही दसों दिशाएं प्रकाशित हो रही हैं। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में अवस्थित तेज इन्हीं की छाया है। मां की आठ भुजाएं हैं, अतः ये अष्टभुजा देवी के नाम से भी जानी जाती हैं। दुर्गा सप्तशती के अनुसार देवी कूष्माण्डा इस चराचार जगत की अधिष्ठात्री हैं।

इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। इनका वाहन सिंह है।

कूष्मांडा का मतलब है कि जिन्होंने अपनी मंद (फूलों) सी मुस्कान से सम्पूर्ण ब्रहमाण्ड को अपने गर्भ में उत्पन्न किया। माना जाता है कि मां कूष्मांडा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं। इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है। मां कूष्मांडा अत्यल्प सेवा और भक्ति से प्रसन्न होने वाली हैं। इनकी आराधना करने से भक्तों को तेज, ज्ञान, प्रेम, उर्जा, वर्चस्व, आयु, यश, बल, आरोग्य और संतान का सुख प्राप्त होता है।

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