इस बार यानी इस साल होली की भाई दूज 30 मार्च दिन मंगलवार को तो दिवाली की भाईदूज 06 नवंबर को मनाई जाएगी। ऐसे में हम आज आपको भाई दूज से जुड़ी दो कथाएं बता रहे हैं।
ज्ञात हो कि भाई दूज के त्यौहार को बहन भाई दूज की कथा सुनने के बाद मनाती है। ऐसे में हर साल में दो बार आने वाले इस भाई दूज (जो होली के बाद आता है) और भैया दूज ( जो दिवाली के दो दिन बाद आता है) का पर्व भाई बहन के स्नेह को सुदृढ़ करता है। लेकिन भाई दूज व भैया दूज की कथा के बारे में शायद बहुत कम लोग जानते हैं।
भैया दूज (दिवाली) कथा , जानिए क्यूं की जाती है यमराज की पूजा…
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान सूर्य नारायण की पत्नी का नाम छाया था। उन्होंने ही यमराज और यमुना का जन्म दिया था। छोटी बहन यमुना अपने बड़े भाई यमराज से बड़ा स्नेह करती थी।
वह अपने बड़े भाई यानि यमराज से बराबर निवेदन करती थीं कि वह उसके घर आकर भोजन करें। लेकिन, अपने कार्य में व्यस्त यमराज बात को टालते रहे।
ऐसे में एक बार कार्तिक शुक्ल के दिन यमुना ने फिर यमराज को भोजन के लिए निमंत्रण देकर, उन्हें अपने घर आने के लिए वचनबद्ध कर लिया। इस पर यमराज ने सोचा कि मैं तो प्राणों का हरण करने वाला हूं। कोई भी मुझे अपने घर नहीं बुलाना चाहता।
मेरी बहन जिस सद्भावना से मुझे बुला रही है, ऐसे में उसका पालन करना मेरा धर्म है। ऐसा सोचते हुए यमराज बहन के घर उससे मिलने चल दिए, साथ ही बहन के घर आते समय यमराज ने नरक में निवास करने वाले जीवों को भी मुक्त कर दिया।
अपने भाई यमराज को अपने घर आया देखकर यमुना अत्यंत खुश हुई। उसने स्नान कर पूजन करने के बाद उन्हें स्वादिष्ट भोजन कराया। बहन यमुना के आतिथ्य से यमराज ने प्रसन्न होकर उन्हें वर मांगने को कहा। इस पर यमुना ने कहा कि भद्र! आप प्रति वर्ष इसी दिन मेरे घर आया करो।
इसके अलावा मेरी तरह जो बहन इस दिन अपने भाई को आदर सत्कार करके टीका करें, उसे तुम्हारा भय न रहे। बहन द्वारा ये वर मागने पर यमराज ने तथास्तु कहा और यमुना को अमूल्य वस्त्राभूषण देकर यमलोक चले गए। माना जाता है कि इसी के बाद से आज तक इस दिन को भाईदूज के रूप में मनाया जाता है। इसीलिए भाईदूज को यमराज और यमुना का पूजन किया जाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार, एक नगर में एक बुढ़िया रहती थी। उसकी एक पुत्र और एक पुत्री थी। बड़े होने पर बुढ़िया ने अपनी पुत्री की शादी कर दी।
ऐसी तमाम परेशानियों को झेलता हुआ वह अपनी बहन के घर पहुंचा। उस समय उसकी बहन सूत कात रही थी। लड़का जब तिलक करा रहा था तो वह परेशान था।
इस पर बहन ने उससे इसका कारण पूछा। तो उसने बहन को अपनी परेशानी का कारण बता दिया। यह सुनकर लड़के की बहन ने भाई को रुकने का कहा और खुद पास के तालाब गई।
जहां एक बुढि़या रहती थी। उससे उसने भाई की समस्या का समाधान पूछा। बुढ़िया ने बताया कि यह तेरे ही पिछले जन्मों का कर्म है, जो तेरे भाई को भुगतना पड़ रहा है। अगर तू अपने भाई को बचाना चाहती है तो उसकी तुम सहायता करो, जिससे तुम्हारा भाई बच सकता है।
बहन ने कहा कि भाई रुक मैं तुझे छोड़ने घर चलूंगी। साथ ही बहन ने अपने साथ मांस, दूध और ओढ़नी साथ रख ली। दोनों उसी रास्ते से वापस चले, जिस रास्ते से बुढिया का पुत्र आया था, ऐसे में उन्हें पहले शेर मिला।
बहन ने शेर के आगे मांस डाल दिया। जिसे वह खाने में मस्त हो गया। यहां से आगे बढ़ने पर उन्हें रास्ते में सांप मिला। बहन ने सांप को देखते ही उसके आगे दूध रख दिया। सांप भी दूध पीकर खुश हो गया।
अब अंत में रास्ते में नदी मिली। बहन ने पूरी श्रद्धा से नदी को चुनरी उढ़ा कर नमन किया। बहन के इस व्यवहार से नदी भी खुश हो गई। इस तरह बहन ने भाई की जान बचा ली। मान्यता है कि तभी से होली भाई दूज के दिन बहन से तिलक करवाने पर भाई के जीवन की कई बाधा दूर हो जाती हैं।