इसका मतलब ये नहीं है कि भाग्य के भरोसे ही रहें। कहा जाता है कि कर्म करने से ही भाग्य का रास्ता खुलता है। ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन’ अर्थात तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए तू फल की दृष्टि से कर्म मत कर और न ही ऐसा सोच की फल की आशा के बिना कर्म क्यों करूं। यह सिद्धांत जितना उपयुक्त महाभारत काल में था, उससे भी अधिक यह आज के युग में हैं क्योंकि जो व्यक्ति कर्म करते समय उसके फल पर अपना ध्यान लगाते हैं, वे तनाव में रहते हैं। जो व्यक्ति कर्म को अपना कर्तव्य समझ कर करते रहते हैं वे तनाव-मुक्त रहते हैं। इसलिए हर इंसान को इस वाक्य को ध्यान में रखकर कर्म करना चाहिए।
कर्म का परिणाम भाग्य यानि किस्मत के उपर निर्भर करता है। लेकिन ज्योतिष में ऐसे उपाय बताए गए हैं जिनसे किस्मत को बदला जा सकता है। लेकिन व्यक्ति को भाग्य के भरोसे ही नहीं बैठे रहना चाहिए अन्यथा बिना सही कर्म किए भाग्य भरोसे बैठकर जीवन कष्टमय हो जाता है।
ज्योतिष उपायों से ना केवल भविष्यवाणी की जा सकती है बल्कि भाग्य की राह में आ रही रूकावटों को दूर भी किया जा सकता है। ज्योतिष के अनुसार हर व्यक्ति की कुंडली में शुभ व अशुभ ग्रह होते हैं और इन अशुभ ग्रहों के उचित उपाय कर भाग्य वृद्धि की जा सकती है।
इसके अलावे मंत्र भी चमत्कारी परिणाम दे सकते हैं। राशि व ग्रह की स्थिति अनुसार उचित मंत्र का जाप कर शुभ परिणाम प्राप्त किया जा सकता है और कर्म कर परिणाम को अपने पक्ष में किया जा सकता है।