भगवान शिव को समर्पित है महाशिवरात्रि (महा शिवरात्रि 2022) का त्यौहार को लेकर ये भी धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट होते हैं। ऐसे में, महाशिवरात्रि के दिन, भक्त उपवास रखने के साथ ही भगवान शिव का का आशीर्वाद पाने के लिए उनकी पूजा करते हैं।
भगवान शिव के दयालु और भोले होने के कारण ही उन्हें भोलेनाथ भी कहा जाता है, ऐसे में भगवान शिव केवल भक्तों की सच्ची भक्ति और एक लोटा पानी से ही प्रसन्न हो जाते हैं।
पंडित एसके उपाध्याय के अनुसार भगवान शिव को अनेक नामों से जाना जाता है। वहीं पौराणिक ग्रंथों में भगवान शिव के 108 नामों का उल्लेख है। जिनके संबंध में माना जाता है कि भगवान शिव के इन नामों का नियमित रूप से जाप करने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। अत: माना जाता है कि महाशिवरात्रि पर भगवान शिव के इन 108 नामों का जाप अवश्य करना चाहिए। ध्यान रहे कि इस साल यानि 2022 में मंगलवार, 1 मार्च को महाशिवरात्रि का पर्व है।
महाशिवरात्रि 2022 : शिव पूजा का शुभ मुहूर्त
शिवरात्रि चतुर्दशी तिथि मंगलवार, 01 मार्च की सुबह 03 बजकर 16 मिनट से बुधवार, 02 मार्च की मध्य रात 01 बजे तक रहेगी। इस दौरान पंचग्रहों के संयोग से कई शुभ योग का निर्माण हो रहा हैं। पंडित उपाध्याय के अनुसार इस बार शिवरात्रि पर धनिष्ठा नक्षत्र में परिधि नामक योग रहेगा और इस योग के बाद शतभिषा नक्षत्र शुरू हो जाएगा। जबकि परिध योग के ठीक बाद से शिव योग भी शुरू हो जाएगा। वहीं शिव पूजन के समय केदार योग का निर्माण होगा।
ऐसे करें महाशिवरात्रि पर भगवान शिव की पूजा-
मान्यता के अनुसार महाशिवरात्रि (Maha Shivratri 2022) के दिन भगवान भोलेनाथ व माता पार्वती (BholeNath And Parvati Puja) की विधि-विधान से पूजा, भक्तों के समस्या व दुख दूर करती हैं और भगवान शंकर भक्तों की समस्त मनोकामनाएं भी पूरी करते हैं।
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शिवरात्रि के दिन शिवलिंग (Shivling) के अभिषेक के संबंध में माना जाता है कि इस दिन अभिषेक के दौरान शिवलिंग पर सर्वप्रथम पंचामृत (गाय का दूध, गंगाजल, पिसी मिश्री, शहद, और गाय के घी से बना हुआ मिश्रण) अर्पित करना चाहिए। भगवान शिव का आशीर्वाद पाने के लिए महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर इन चीजों को अर्पित करनी चाहिए।
1. बिल्व पत्र: इस दिन भगवान शिव (Lord Shiva) की पूजा में बिल्वपत्र और अभिषेक का विशेष स्थान है। मान्यता के अनुसार भोलेनाथ को बिल्वपत्र चढ़ाना और एक करोड़ कन्याओं का कन्यदान का फल एक सामान होता है। वहीं बिल्वपत्र (तीन पत्तियां वाले बिना कटे फटे) को महाशिवरात्रि के दिन इस मंत्र के साथ अर्पित करना चाहिए-
त्रिदलं त्रिगुणकरं त्रिनेत्र व त्रिधायुतम।
त्रिजन्म पाप संहार बिल्व पत्रं शिवार्पणम।।
2. भांग: शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव द्वारा हलाहल विष को पीकर उसे गले में रोक लिया गया था, इस विष के प्रभाव को रोकने के लिए औषधि के रूप में भांग का उपयोग किया गया। इसी कारण ये माना जाता है कि भगवान शिव को भांग बेहद प्रिय है।
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ऐसे में मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन भांग के पत्ते पीसकर दूध या जल में घोलकर भगवान का अभिषेक करने से जातक को रोग दोष से मुक्ति मिलती है।
3. धतूरा: भांग के समान ही धतूरे को भी औषधिगुण के तहत भगवान शिव पर चढ़ाया जाता है। दरअसल भगवान शिव पर चढ़े विष के प्रभाव को कम करने के लिए धतूरा अर्पित किया जाता है। ऐसे में महाशिवरात्रि के दिन खासतौर से भगवान शिव को धतूरा अर्पित किया जाता है। माना जाता है कि धतूरा अर्पित करने से जातक शत्रुओं के भय से दूर हो जाता है, साथ ही उसकी आर्थिक स्थिति भी मजबूत हो जाती है।
4. गंगाजल: धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु के चरणों से निकली गंगा भगवान शिव जी की जटाओं से होती हुईं धरती पर उतरी हैं। इसी कारण सभी नदियों से गंगा नदी को अधिक पवित्र माना जाता है। माना जाता है कि भगवान शिव का अभिषेक गंगाजल से करने पर जातक को मानसिक शांति के साथ ही सुख की भी प्राप्ति होती है।
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इस बार की महाशिवरात्रि 2022 पर पंच ग्रहों के योग का महासंयोग और दो महाशुभ योग बन रहे हैं। इन महाशुभ योग को मनोरथ पूर्ण करने वाला माना है।

वहीं मंगलवार, 01 मार्च को महाशिवरात्रि और बुधवार 02 मार्च को अमावस्या होगी। इस दिन श्रद्धालु पूजन कर अनुष्ठान का समापन करेंगे।
पौराणिक ग्रंथों में ये हैं भगवान शिव के 108 नाम-
1. शिव: कल्याण स्वरूप 2. महेश्वर: माया के अधिश्वर 3. शंभू: 4 आनंदस्वरूपवाले। पिनाकी: पिनाका धनुष धरन कर्णवाले (धनुष धारण करने वाला)। शशि शेखर: चंद्रमा धरन कर्णवाले 6. वामदेव: अत्यंत सुंदर स्वरूपवाले (बेहद सुंदर) 7. विरुपाक्ष: विचित्र, तीन आंखवाले (विचित्र या तीन आंखों वाला)। कपार्डी: जटा धरन कर्णवाले 9. नीलोहित: नीले और लाल रंगवाले (नीला और लाल रंग वाला)
10. शंकर: सबका कल्याण कर्णवाले (सभी को आशीर्वाद देने वाला)। 11 शुलपानी: हाथ में त्रिशूल धरन कर्णवाले (जिसके हाथ में त्रिशूल है)। 12 खटवांगी: खटिया का एक पाया रखनेवाले.13 विष्णुवल्लभ: भगवान विष्णु के अति प्रिया (भगवान विष्णु के प्रिय) 14. शिपिविष्ट: सीतुहा में प्रवेश करनेवाले (सीतुहा में प्रवेश करने वाले) 15 अंबिकानाथ: देवी भगवती के पति (पति के पति) देवी भगवती) 16. श्रीकांत: सुंदर कंठवाले (एक सुंदर कंठवाले)।
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17 भक्तवत्सल: भक्तों को सत्यंत स्नेह करनेवाले (भक्तों को अत्यधिक स्नेह देने वाले।) 18 भाव: संसार के रूप में प्रकाश होनेवाले 19 शरवाहः कश्तों को नाश करनेवाले (दुखों का नाश करने वाले)। त्रिलोकेश: तीन लोकों के स्वामी (तीनों लोकों के स्वामी) 21. शितिकांत: सफेद कंठवाले (सफेद गले वाला) 22. शिवप्रिया: पार्वती के प्रिया (पार्वती की प्यारी) 23. उग्रा: अत्यंत उग्र रूपवाले (बेहद उग्र) 24. कपाली: कपल धरन कर्णवाले (खोपड़ी रखने वाला।) ।
25 कमारी: कामदेव के शत्रु, अंधकार को हरानेवाले (अंधेरे को हराने वाला) गंगाधर: गंगा को जटाओं में धारण करने वाले। जटाओं में गंगा को धारण करने वाला।) 28 लालताक्ष: माथे पर आंख धारण किए हुए (माथे पर एक आंख वाला।) 29 महाकाल: कलों के भी कल 30. कृपानिधि: करुणा की खान (जिसके पास करुणा है) 31. भीम: भयंकर या रुद्र रूपवाले। 32 परशुहस्ता: हाथ में फरसा धारण करनेवाले (हाथ में फरसा रखने वाला)। 33 मृगपानी: हाथ में हिरण धरन करनेवाले (हाथ में हिरण रखने वाले।) 34 जटाधार: जटा रखनेवाले 35. कैलाशवासी: कैलाश पर निवास करनेवाले (कैलाश पर रहने वाले)।
36. कवची: कवच धारण करने वाले 37. कठौर: अत्यंत मजबूत देहवाले (एक बेहद मजबूत शरीर के साथ)38. त्रिपुरांतक: त्रिपुरासुर का विनाश कर्णवाले (त्रिपुरासुर का विनाशक।) 39. वृषंक: बेल चिन्हा की ध्वजीवाले वृषभरुध: बैल पर सवार होनेवाले (जो बैल की सवारी करता है) 41. भस्मोधुलिटविग्रह: भस्म लगानवाले (भस्म लगाने वाला) 42. सम्प्रिया: समन से प्रेम करनेवाले 43. स्वरमयी: सातो स्वरों में निवास करनेवाले।
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44. त्रिमूर्ति: वेद्रोपी विग्रह कर्णवाले। 45. अनीश्वर: जो स्वयंम ही सबके स्वामी (सर्वोच्च भगवान) 46. सर्वज्ञ: सब कुछ जननेवाला (जो सब कुछ जानता है) 47. परमात्मा: सब आत्मो में सर्वोछा 48. सोमसूर्यग्निलोचन: चंद्र सूर्य और अग्निरूपी आंखवाले (चंद्रमा के साथ एक, सूर्य और अग्नि जैसी आंखें)।
49. हविही: आहुतिरूपी द्रव्यवाले। 50. यज्ञमय: यज्ञ स्वरूपवाले। 51. सोम: उमा के साहित्य रूपवाले। 52.पंचवक्त्र: पंच मुखवाले (पांच मुख वाले) 53. सदाशिव: नित्य कल्याण रूपवाले 54. विश्वेश्वर: विश्व के ईश्वर (विश्व के देवता) 55. वीरभद्र: वीर तथा शांता स्वरूपवाले (एक बहादुर और शांत स्वभाव के साथ। ) 56. गणनाथ: गनो के स्वामी (गणों के भगवान) 57. प्रजापति: प्रजा का पालनपोशन कर्णवाले (लोगों का पालन-पोषण करने वाले।) 58 हिरण्यरेता: स्वर्ण तेजवाले (सोने की तरह चमकने वाले।) 59. दुर्धूर्ष: किसी से ना हरनेवाले (अपराजेय)। 60.गिरीश: पर्वतों के स्वामी (पहाड़ों के भगवान)। 61. गिरीश्वर: कैलाश पर्वत पर रहनेवाले (कैलाश पर्वत पर रहने वाले।) 62. अनाघ: पाप्रहित या पुण्य आत्मा (पापरहित या पुण्य आत्मा) 63. भुजंगभूषण: सपोन या नागोन के भूषण धारण करनेवाले (वह जो सांप और नागों को पहनता है) आभूषण)।
64. भार्ग: पापो का नाश करनेवाले (पापों का नाश करने वाला) 65. गिरिधन्वा: मेरु पर्वत को धनुष बननेवाले (मेरु पर्वत का धनुष बनाने वाला)। 66. गिरप्रिया: पर्वत को प्रेम कर्णवाले (पहाड़ों से प्यार करने वाला) 67. कृतिकावास: गजचर्मा पेहनेवाले (हाथी की खाल पहनने वाला) 68. पुराणी: पूरोन का नैश कर्णवाले। 69. भगवान: सर्वसमर्थ ऐश्वर्यासम्पन्न 70. प्रमथधिप: प्रथम गणों के अधिपति (प्रथम गणों के शासक) 71. मृत्युंजय: मृत्यु को जीत्तेवाले (मृत्यु का विजेता)।
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72.सूक्ष्मतनु: सुषमा शरिरवाले। 73. जगद्व्यापी: जगत में व्याप्त होकर रहने वाले। 74. जगतगुरु: जगत के गुरु। 75. व्योमेश: आकाशरूपी बालवाले 76. महासेनजनक: कार्तिकेय के पिता (कार्तिकेय के पिता) 77. चारुविक्रम: सुंदर परिक्रमावाले 78. रुद्र: उग्र रूपवाले 79. भूतपति: भूतप्रेत वा पंचभूतो के स्वामी (भूतों और पंचभूतों के स्वामी) 80. : स्पंदनराहित कूटस्थ रूपवाले। 81. अहिरबुदन्या: कुंडलिनी धरन कर्णवाले। 82. दिगंबर: नगना, आकाशरूपी वस्त्रवाले। 83. अष्टमूर्ति: आठ रूपवाले (आठ रूपों वाला एक)।
84. अनेकात्मा: अनेक आत्मावाले। (अनेक आत्माओं के साथ एक)। 85. सात्विक: सात्वा गुणवाले। 86. शुद्धविग्रह: दिव्यमूर्तिवाले (दिव्य एक)। 87. शाश्वत: नित्या रेनेवाले। (अनन्त जीवित प्राणी)। 88. खंडपरशु: टूटा हुआ फरसा धारण करनेवाले। 89. अजहा: जन्म राहत (जन्महीन) 90. पश्विमोचन: बंधन से चूड़ानेवाले (बंधन का मुक्तिदाता)।
91. मृदाः सुखस्वरूपवाले 92. पशुपतिः पाहुओं के स्वामी (पशुओं के भगवान) 93. देव: स्वयं प्रकाशरूप 94. महादेव: देवों के देव (देवताओं के देवता)। 95. अव्यय: करचा होने पर भी ना घाटनेवाले (एक जो खर्च करने पर भी कम नहीं होता)। 96. हरि: विष्णु समरूपी 97.पुषदंतभीत: पूषा के दाता उखड़नेवाले। 98. अव्यग्रहः व्यथित ना होनेवाले (अप्रतिबंधित) 99. दक्षध्वरहारः दक्ष के यज्ञ का नैश करनेवाले (दक्ष के यज्ञ का नाश करने वाला)।
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100. हर: पापोन को हरनेवाला (पापों का नाश करने वाला) 101. भगनेत्रभिद: भाग देवता की आंख फोडनेवाले। 102. अव्यक्त: इंद्रियों के सामने प्रकाश ना होनेवाले (वह जो इंद्रियों के सामने प्रकट नहीं होता)। 103.सहस्त्रक्ष: अनंत आंखवाले (अनंत आंखों वाला)। 104.सहस्रपद: अनंत जोड़ीवाले (अनंत पैरों वाला एक)। 105. अपवर्गप्राड: मोक्ष देनेवाले (मोक्ष के दाता) 106.अनंत: देशकल वास्तुरूपी पारिच से राहत । 107. तारक: तरनेवाले 108. परमेश्वर: प्रथम ईश्वर।
17 फरवरी से बिखरेंगे फाल्गुन के रंग
हमेशा की तरह इस बार भी फाल्गुन मास में महाशिवरात्रि के साथ ही अन्य पर्वों के रंग भी बिखरेंगे। ऐसे में फाल्गुन मास जो 17 फरवरी 2022 से 18 मार्च 2022 तक रहेगा, में तीज-त्योहारों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। हिंदू कैलेंडर के अनुसार इस माह में भगवान विष्णु और भगवान शंकर से जुड़े दो विशेष पर्व आते हैं।
इनमें कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि और फाल्गुन शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु के पूजन का दिन आमलकी एकादशी व्रत होगा। 01 मार्च को शिवरात्रि, 02 मार्च को फाल्गुन अमावस्या, 4 मार्च को फुलैरा दूज, 14 मार्च को आमलकी एकादशी और 17 मार्च को होलिका दहन होगा। इसके बाद 18 मार्च को रंगों का पर्व धुलेंडी यानि रंगों से खेलने वाली होली पर्व मनाया जाएगा।