इसके अलावा नानकशाही कैलेण्डर बुद्ध पूर्णिमा से मानकर नया साल मनाते हैं। किसी ऐतिहासिक व महान घटना को रेखांकित करने के लिए नया दिन, नई तारीख, नया साल और नया कैलेण्डर प्रारम्भ होता है। जैसे-ईसा का जन्म दिन, विक्रमादित्य का सिंहासन पर बैठना और हजरत मुहम्मद का मक्का से मदीना हिजरत करना। इन्हीं घटनाओं को लेकर ग्रेगोरियन, विक्रम और हिजरी कैलेण्डर प्रारम्भ हुए। इनकी खगोलीय गणना चांद और सूरज को आधार मानकर की जाती है।
पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा 365 दिन और लगभग 6 घण्टे में पूरी करती है। बहाई धर्म के अग्रदूत दिव्यात्मा बाब ने ईरान के पारम्परिक रूप से मनाए जा रहे नववर्ष (नवरूज) को ही नया साल घोषित किया और कहा कि यह नए कैलेण्डर की शुरूआत और मानव जाति के परिपक्वता का प्रारम्भिक बिंदु है। बहाउल्लाह ने इस आदेश को प्रमाणित और स्थापित किया। इस तरह 20 मार्च 2017 में जब नवरूज मनाया गया तो 174वां बहाई वर्ष प्रारम्भ हो गया।
बहाई धर्म में कुल 9 त्योहार और वार्षिकी होते हैं जिसमें नवरूज मात्र एक ऐसा पर्व है जो दिव्यात्मा बाब और बहाउल्लाह के जीवन तथा उद्घोषणा से सम्बन्धित नहीं है। इस दिन सारी दुनिया के बहाई जो ईसाई, मुस्लिम, बौद्ध, हिन्दू, सिक्ख, यहूदी और पारसी सहित विभिन्न पृष्ठभूमि से आते हैं।
सब संयुक्त रूप से समान आस्था और विश्वास को अपनाते हुए उन्नीस दिवसीय उपवास की समाप्ति के बाद नवरूज मनाते हैं। लगभग 5,000 साल पहले शहंशाह जमशेद ने मौसम के महत्व को समझ कर कड़कड़ाती सर्दी के बाद जब बसंत का आगमन होता है तो फसलों, फूलों और पशुधन में बढोतरी के कारण नवरूज को एक उत्सव के रूप में मनाया जाना प्रारम्भ किया। इसीलिए इसे जमशेदी नवरूज भी कहते हैं।
ईसा से लगभग 1725 वर्ष पूर्व ईश्वरीय अवतार जोरास्त्र जो स्वयं एक खगोल शास्त्री थे, ने नवरूज को बसंत सम्पात से सम्बंधित किया। जब सूर्य भूमध्य रेखा को पार कर जिस क्षण मेष राशि मे प्रवेश करता है, ववहीं से साल का नया दिन प्रारम्भ होता है। बहाई धर्म के संस्थापक बहाउल्लाह के ज्येष्ठ पुत्र अब्दुल बहा ने बसंत सम्पात को ईश्वरीय अवतारों का प्रतीक बताया, जिसे प्राकृतिक नववर्ष भी कहा जाता है।
यह दुनिया का ऐसा धर्म निरपेक्ष नया साल है जिसे सभी धर्मों के लोग मानते हैं। ईरान में तो पारसी, बहाई, मुस्लिम, यहूदी, ईसाई कोई भी हो इसे वह मनाता है। इसके अलावा सूफी, मुस्लिम, ईसमाईली, बलूच और काश्मीरी हिन्दू भी नवरूज मनाते हैं।
संयुक्त राष्ट्र संघ की जनरल एसेम्बली ने 2010 में नवरूज को अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में मान्यता देते हुए इस ईरानी मूल के बसंत पर्व को लगभग 3,000 साल से अधिक समय से मनाया जाता हुआ बताया है। यूनेस्को ने अक्टूबर 2009 को नवरूज मानवता के लिए संरक्षित सांस्कृतिक धरोहर की सूची में शामिल किया है।
20 मार्च को दिन और रात लगभग बराबर होते हैं, विज्ञान खगोल शास्त्र के अनुसार भी सूर्य के भूमध्य रेखा को पार कर मेष राशि में प्रवेश को ही समय तारीख और दिन की गणना हेतु सर्वाधिक उपयुक्त माना जाता है।