पौराणिक मान्यता है कि सबसे पहले माता लक्ष्मी ने राजा बलि को रक्षासूत्र बांधा था। राजा बलि ने जब उनसे पूछा कि रक्षासूत्र के बदले आप क्या चाहती हैं तब माता लक्ष्मी ने उनके पहरेदार के रूप में सेवा दे रहे विष्णुजी को मांग लिया। रक्षाबंधन पर गुरु द्वारा अपने सबसे योग्य शिष्य की कलाई में गंडा या सूत्र बांधने की भी परंपरा है। हालांकि यह मूलत: भाई द्वारा अपनी बहन की रक्षा के संकल्प का प्रतीक पर्व ही है।
पुराणों में रक्षासूत्र बांधने के समय एक मंत्र पढ़ने का उल्लेख किया गया है। भाई पर अक्षत डालते हुए यह मंत्र पढ़ना चाहिए— येन बद्धो बलि: राजा दानवेंद्रो महाबल:। तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल।
अर्थात महाशक्तिशाली राजा बलि को जिस रक्षासूत्र से बांधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुम्हें बांधती हूं। हे रक्षे तुम अविचल रहना। कभी भी तुम अपने रक्षा के संकल्प से विचलित मत होना।
राखी के दिन बहन सुबह जल्द उठकर स्नान करके स्वच्छ या नए कपड़े पहनें। भगवान की नित्य पूजा आदि के बाद यथासंभव पीतल या तांबे की थाली लें, अब इसमें राखी के साथ ही हल्दी, कुमकुम, अक्षत रखें। थाली में ही मिठाई रखे और घी का दीपक भी इसी में रखें. दीप जलाकर भाई को तिलक लगाएं, उसकी आरती उतारें, फिर दाएं हाथ की कलाई पर राखी बांधें। इसके बाद भाई को मिष्ठान्न खिलाएं.
आमतौर पर राखी के दिन विवाहिता बहनें मायके आकर भाई को राखी बांधती है लेकिन पौराणिक ग्रंथों में इससे उलट बात कही गई है. शास्त्रों में कहा गया है कि रक्षाबंधन के दिन बहनें, भाइयों को अपने घर पर बुलाएं. उन्हें राखी बांधें, मिष्ठान्न खिलाएं और इसके बाद उसे भोजन भी करवाएं,जबकि भाई अपनी बहन की रक्षा का वचन लें.