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Sawan Shiv puja: सावन में इन मं त्रों से करें देवाधिदेव महादेव की पूजा, जानें भगवान शिव के 108 नाम

Shiv puja mantra on sawan: सावन में शिव पूजा के विशेष मंत्र जो पूरी करते हैं मनोकामना

भोपालJul 22, 2021 / 04:07 pm

दीपेश तिवारी

Shiv Puja Mantra on sawan

Sawan Shiv Puja Mantra: साल 2021 का आषाढ़ माह समाप्ति की ओर है इसकी समाप्ति के साथ ही सावन माह शुरु हो जाएगा। ऐसे में जहां 24 जुलाई 2021 को सुबह 08:06 AM तक पूर्णिमा रहने के बाद प्रतिपदा लग जाएगी। वहीं इसके साथ भगवान शिव के पवित्र माह सावन की शुरुआत हो जाएगी।

इस बार शुरु हो रहे सावन के माह को लेकर जहां कुछ जानकारों का मानना है कि सावन 24 जुलाई से ही शुरु हो जाएगा। वहीं कुछ जानकारों के अनुसार उदया तिथि के चलते इस बार सावन 25 जुलाई से शुरु होगा। वहीं सावन माह का समापन श्रावणी पूर्णिमा के दिन यानि 22 अगस्त को होगा।

चूकिं 20 जुलाई से चातुर्मास प्रारंभ हो चुके हैं, और चातुर्मास के दौरान भगवान शिव ही सृष्टि का संचालन करते हैं। ऐसे में हर भक्त इस समय भगवान शिव का आशीर्वाद पाना चाहता है।

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जिसके तहत भक्तों द्वारा कई तरह के उपाय अपनाए जाते हैं। ऐसे में आज हम आपको सावन में शिव पूजा के दौरान किस फल की प्राप्ति के लिए कौन सा मंत्र पड़ना चाहिए, इस संबंध में बता रहे हैं।

पंडित एके शुक्ला के अनुसार इन मंत्रों का पाठ न केवल आपको भगवान शिव के करीब ले जाता है वरन इन मंत्रों का पाठ पूरे विधि विधान व विश्वास के साथ करने पर यह आपकी मनोकामना को भी पूर्ण करने में सहायक होते हैं।


भगवान शिव के मंत्र :

मनोवांछित फल पाने के लिए…

नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे न काराय नम: शिवाय:
मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय
मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मे म काराय नम: शिवाय:
शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय
श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै शि काराय नम: शिवाय:
अवन्तिकायां विहितावतारं मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम्।
अकालमृत्यो: परिरक्षणार्थं वन्दे महाकालमहासुरेशम्।।

स्वास्थ्य प्राप्ति के लिए मंत्र…

सौराष्ट्रदेशे विशदेऽतिरम्ये ज्योतिर्मयं चन्द्रकलावतंसम्।
भक्तिप्रदानाय कृपावतीर्णं तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये ।।
कावेरिकानर्मदयो: पवित्रे समागमे सज्जनतारणाय।
सदैव मान्धातृपुरे वसन्तमोंकारमीशं शिवमेकमीडे।।

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Shiv on cahurmas

पूजा के दौरान शिव जी को स्नान समर्पण करने का मंत्र…
ॐ वरुणस्योत्तम्भनमसि वरुणस्य सकम्भ सर्ज्जनीस्थो ।
वरुणस्य ऋतसदन्यसि वरुणस्य ऋतसदनमसि वरुणस्य ऋतसदनमासीद् ।।

भगवान शिव को यज्ञोपवीत समर्पण करने का मंत्र…
ॐ ब्रह्म ज्ज्ञानप्रथमं पुरस्ताद्विसीमतः सुरुचो वेन आवः ।
स बुध्न्या उपमा अस्य विष्ठाः सतश्च योनिमसतश्च विवः ।।

भगवान भोलेनाथ को गंध समर्पण करने का मंत्र…
ॐ नमः श्वभ्यः श्वपतिभ्यश्च वो नमो नमो भवाय च रुद्राय च नमः ।
शर्वाय च पशुपतये च नमो नीलग्रीवाय च शितिकण्ठाय च ।।

अर्धनारीश्वर भगवान भोलेनाथ को धूप समर्पण करने का मंत्र…
ॐ नमः कपर्दिने च व्युप्त केशाय च नमः सहस्त्राक्षाय च शतधन्वने च ।
नमो गिरिशयाय च शिपिविष्टाय च नमो मेढुष्टमाय चेषुमते च ।।

भगवान शिव को पुष्प समर्पण करने का मंत्र…

ॐ नमः पार्याय चावार्याय च नमः प्रतरणाय चोत्तरणाय च ।
नमस्तीर्थ्याय च कूल्याय च नमः शष्प्याय च फेन्याय च ।।

भगवान भोलेनाथ को नैवेद्य अर्पण करने का मंत्र…
ॐ नमो ज्येष्ठाय च कनिष्ठाय च नमः पूर्वजाय चापरजाय च ।
नमो मध्यमाय चापगल्भाय च नमो जघन्याय च बुधन्याय च ।।

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भगवान शिव को ताम्बूल पूगीफल समर्पण करने का मंत्र…
ॐ इमा रुद्राय तवसे कपर्दिने क्षयद्वीराय प्रभरामहे मतीः ।
यशा शमशद् द्विपदे चतुष्पदे विश्वं पुष्टं ग्रामे अस्तिमन्ननातुराम् ।।

भोलेनाथ को सुगन्धित तेल समर्पण करने का मंत्र…
ॐ नमः कपर्दिने च व्युप्त केशाय च नमः सहस्त्राक्षाय च शतधन्वने च ।
नमो गिरिशयाय च शिपिविष्टाय च नमो मेढुष्टमाय चेषुमते च ।।

भगवान भोलेनाथ को दीप दर्शन करने का मंत्र…

ॐ नमः आराधे चात्रिराय च नमः शीघ्रयाय च शीभ्याय च ।
नमः ऊर्म्याय चावस्वन्याय च नमो नादेयाय च द्वीप्याय च ।।

भगवान शिवजी को बिल्वपत्र समर्पण करने का मंत्र…
दर्शनं बिल्वपत्रस्य स्पर्शनं पापनाशनम् ।
अघोरपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम् ।।

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भगवान शिव के 108 नाम…

1. शिव – कल्याण स्वरूप,
2. शंकर – सबका कल्याण करने वाले,
3. शम्भू – आनंद स्वरूप वाले,
4. महेश्वर – माया के अधीश्वर,
5. पिनाकी – पिनाक धनुष धारण करने वाले,
6. महाकाल – कालों के भी काल,
7. कृपानिधि – करुणा की खान,
8. वामदेव – अत्यंत सुंदर स्वरूप वाले,
9. विरूपाक्ष – विचित्र अथवा तीन आंख वाले,
10. कपर्दी – जटा धारण करने वाले,
11. नीललोहित – नीले और लाल रंग वाले,
12. शूलपाणी – हाथ में त्रिशूल धारण करने वाले,
13. विष्णुवल्लभ – भगवान विष्णु के अति प्रिय,
14. शिपिविष्ट – सितुहा में प्रवेश करने वाले,
15. अंबिकानाथ- देवी भगवती के पति,
16. श्रीकण्ठ – सुंदर कण्ठ वाले,
17. भक्तवत्सल – भक्तों को अत्यंत स्नेह करने वाले,
18. भव – संसार के रूप में प्रकट होने वाले,
19. शर्व – कष्टों को नष्ट करने वाले,
20. त्रिलोकेश- तीनों लोकों के स्वामी,
21. शितिकण्ठ – सफेद कण्ठ वाले,
22. शिवाप्रिय – पार्वती के प्रिय,
23. उग्र – अत्यंत उग्र रूप वाले,
24. कपाली – कपाल धारण करने वाले,
25. कामारी – कामदेव के शत्रु, अंधकार को हरने वाले,
26. सुरसूदन – अंधक दैत्य को मारने वाले,
27. गंगाधर – गंगा को जटाओं में धारण करने वाले,
28. ललाटाक्ष – माथे पर आंख धारण किए हुए,
29. शशिशेखर – चंद्रमा धारण करने वाले,
30. खटवांगी- खटिया का एक पाया रखने वाले,
31. भीम – भयंकर या रुद्र रूप वाले,
32. परशुहस्त – हाथ में फरसा धारण करने वाले,
33. मृगपाणी – हाथ में हिरण धारण करने वाले,
34. जटाधर – जटा रखने वाले,
35. कैलाशवासी – कैलाश पर निवास करने वाले,
36. कवची – कवच धारण करने वाले,
37. कठोर – अत्यंत मजबूत देह वाले,
38. त्रिपुरांतक – त्रिपुरासुर का विनाश करने वाले,
39. वृषांक – बैल-चिह्न की ध्वजा वाले,
40. वृषभारूढ़ – बैल पर सवार होने वाले,
41. भस्मोद्धूलितविग्रह – भस्म लगाने वाले,
42. सामप्रिय – सामगान से प्रेम करने वाले,
43. स्वरमयी – सातों स्वरों में निवास करने वाले,
44. त्रयीमूर्ति – वेद रूपी विग्रह करने वाले,
45. अनीश्वर – जो स्वयं ही सबके स्वामी है,
46. सर्वज्ञ – सब कुछ जानने वाले,
47. परमात्मा – सब आत्माओं में सर्वोच्च,
48. सोमसूर्याग्निलोचन – चंद्र, सूर्य और अग्निरूपी आंख वाले,
49. हवि – आहुति रूपी द्रव्य वाले,
50. यज्ञमय – यज्ञ स्वरूप वाले,
51. सोम – उमा के सहित रूप वाले,
52. पंचवक्त्र – पांच मुख वाले,
53. सदाशिव – नित्य कल्याण रूप वाले,
54. विश्वेश्वर- विश्व के ईश्वर,
55. वीरभद्र – वीर तथा शांत स्वरूप वाले,
56. गणनाथ – गणों के स्वामी,
57. प्रजापति – प्रजा का पालन- पोषण करने वाले,
58. हिरण्यरेता – स्वर्ण तेज वाले,
59. दुर्धुर्ष – किसी से न हारने वाले,
60. गिरीश – पर्वतों के स्वामी,
61. गिरिश्वर – कैलाश पर्वत पर रहने वाले,
62. अनघ – पापरहित या पुण्य आत्मा,
63. भुजंगभूषण – सांपों व नागों के आभूषण धारण करने वाले,
64. भर्ग – पापों का नाश करने वाले,
65. गिरिधन्वा – मेरू पर्वत को धनुष बनाने वाले,
66. गिरिप्रिय – पर्वत को प्रेम करने वाले,
67. कृत्तिवासा – गजचर्म पहनने वाले,
68. पुराराति – पुरों का नाश करने वाले,
69. भगवान् – सर्वसमर्थ ऐश्वर्य संपन्न,
70. प्रमथाधिप – प्रथम गणों के अधिपति,
71. मृत्युंजय – मृत्यु को जीतने वाले,
72. सूक्ष्मतनु – सूक्ष्म शरीर वाले,
73. जगद्व्यापी- जगत में व्याप्त होकर रहने वाले,
74. जगद्गुरू – जगत के गुरु,
75. व्योमकेश – आकाश रूपी बाल वाले,
76. महासेनजनक – कार्तिकेय के पिता,
77. चारुविक्रम – सुन्दर पराक्रम वाले,
78. रूद्र – उग्र रूप वाले,
79. भूतपति – भूतप्रेत व पंचभूतों के स्वामी,
80. स्थाणु – स्पंदन रहित कूटस्थ रूप वाले,
81. अहिर्बुध्न्य – कुण्डलिनी- धारण करने वाले,
82. दिगम्बर – नग्न, आकाश रूपी वस्त्र वाले,
83. अष्टमूर्ति – आठ रूप वाले,
84. अनेकात्मा – अनेक आत्मा वाले,
85. सात्त्विक- सत्व गुण वाले,
86. शुद्धविग्रह – दिव्यमूर्ति वाले,
87. शाश्वत – नित्य रहने वाले,
88. खण्डपरशु – टूटा हुआ फरसा धारण करने वाले,
89. अज – जन्म रहित,
90. पाशविमोचन – बंधन से छुड़ाने वाले,
91. मृड – सुखस्वरूप वाले,
92. पशुपति – पशुओं के स्वामी,
93. देव – स्वयं प्रकाश रूप,
94. महादेव – देवों के देव,
95. अव्यय – खर्च होने पर भी न घटने वाले,
96. हरि – विष्णु समरूपी,
97. पूषदन्तभित् – पूषा के दांत उखाड़ने वाले,
98. अव्यग्र – व्यथित न होने वाले,
99. दक्षाध्वरहर – दक्ष के यज्ञ का नाश करने वाले,
100. हर – पापों को हरने वाले,
101. भगनेत्रभिद् – भग देवता की आंख फोड़ने वाले,
102. अव्यक्त – इंद्रियों के सामने प्रकट न होने वाले,
103. सहस्राक्ष – अनंत आंख वाले,
104. सहस्रपाद – अनंत पैर वाले,
105. अपवर्गप्रद – मोक्ष देने वाले,
106. अनंत – देशकाल वस्तु रूपी परिच्छेद से रहित,
107. तारक – तारने वाले,
108. परमेश्वर – प्रथम ईश्वर।

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