भगवान गणेश यूं तो बड़ी ही आसानी से प्रसन्न हो जाते हैं परन्तु इन्हें प्रसन्न करने के लिए कुछ मंत्र व तंत्र के प्रयोग इस प्रकार के हैं जो बड़े चमत्कारी होते हैं और चुटकी बजाते अपना असर दिखाने लगते हैं। ऐसा ही एक मंत्र गणपति गायत्री मंत्र भी है। माना जाता है कि इसका जाप बहुत ही बड़े संकट के समय किया जाता है।
ऐसे समझें गणेश गायत्री मंत्र?
पंडित एके शुक्ला के अनुसार यह वास्तव में गणेश गायत्री मंत्र गणेश जी के मंत्रों को जोड़कर बना हुआ है। आमतौर पर इसका प्रयोग किसी बड़े अनुष्ठान के समय अथवा तांत्रिक बड़ी विलक्षण सिद्धियां पाने की इच्छा से किया जाता है।
पंडित शुक्ला के अनुसार इस मंत्र का प्रयोग बहुत ही साधारण है परन्तु इसके करने में कुछ खास बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता है, जिनका ध्यान नहीं रखने पर लाभ के स्थान पर हानि भी हो सकती है।
गणेश गायत्री मंत्र
एकदंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।। महाकर्णाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।। गजाननाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।
इस मंत्र का उपयोग करने के तहत सुबह ब्रह्ममुहूर्त में जागकर स्नान-ध्यान आदि से निवृत्त होने के पश्चात नए स्वच्छ वस्त्र पहनें। इस दौरान वस्त्र, पीले या गेरुएं रंग के होने चाहिए। इसके बाद घर के पूजा कक्ष या किसी मंदिर में एक आसन पर बैठ कर गणेश जी का आह्वान करना चाहिए। इस समय श्री गणेश की पूजा करें और सिंदूर, दूर्वा, गंध, अक्षत (चावल), सुगंधित फूल, जनेऊ, सुपारी, पान, फल, प्रसाद आदि श्री गणेश को अर्पित करें।
इसके पश्चात गणेश गायत्री मंत्र का 21 बार जप करें। ऐसा करने के कुछ ही दिनों में आपको इसका असर दिखाई देने लगेगा और आपके सभी कष्ट दूर हो जाएंगे। यहां इन बातों का खासतौर से ध्यान रखें कि इस मंत्र के प्रयोग में ब्रह्मचर्य का पालन करना अनिवार्य है। इसके साथ ही मांस, मदिरा, अंडे, नशा आदि से इस दौरान पूरी तरह से दूर रहना होगा, अन्यथा लाभ के स्थान पर हानि हो सकती है।
इसके अलावा इस मंत्र के प्रयोग से कोई भी बुरी इच्छा पूरी नहीं की जा सकती बल्कि स्वयं पर आए किसी बहुत बड़ा संकट को टालने के लिए ही इस प्रयोग का सहारा लिया जा सकता है। बुरी इच्छा मन में लेकर मंत्र प्रयोग करने पर उसके दुष्परिणाम भी भुगतने पड़ सकते हैं।