अष्टमी जया संज्ञक शुभ तिथि अंतरात्रि अगले दिन सूर्योदय पूर्व प्रात: ६.०१ तक, तदुपरान्त नवमी रिक्ता संज्ञक तिथि प्रारम्भ होगी। अष्टमी तिथि में यथा आवश्यक नाच, गाना, मनोरंजन के कार्य, गढ़ा खजाना प्राप्त करने, लेखन, रत्नपरीक्षण, अलंकार, वास्तुकर्म, विवाह, प्रतिष्ठा और शस्त्र धारण आदि कार्य सिद्ध होते हैं। नवमी तिथि में शुभ व मांगलिक कार्य वर्जित है। नक्षत्र: ज्येष्ठा ‘तीक्ष्ण व तिङ्र्यंमुख’ संज्ञक नक्षत्र अंतरात्रि ३.२७ तक, इसके बाद मूल ‘तीक्ष्ण व अधोमुख’ संज्ञक नक्षत्र है। दोनों ही गण्डान्त मूल संज्ञक नक्षत्र भी है। अत: इन नक्षत्रों में जन्मे जातकों को २७ दिन बाद जब इन नक्षत्रों की पुनरावृत्ति हो, उस दिन मूल शांति करा देना उनके लिए हितकर रहेगा। योग: वज्र नामक नैसर्गिक अशुभ योग सायं ५.५२ तक, इसके बाद सिद्ध नामक नैसर्गिक शुभ योग है। ग्रह राशि-नक्षत्र परिवर्तन: प्रात: १०.०० से नेपच्यून पू.भा. नक्षत्र के प्रथम चरण में प्रवेश करेगा। करण: बालव नामकरण सायं ४.५३ तक, तदन्तर कौलवादि करण रहेंगे। श्रेष्ठ चौघडि़ए: आज सूर्योदय से पूर्वाह्न ११.१० तक क्रमश: चर, लाभ व अमृत, दोपहर १२.३६ से दोपहर बाद २.०५ तक शुभ तथा सायं ५.०० से सूर्यास्त तक चर के श्रेष्ठ चौघडि़ए हैं एवं दोपहर १२.१४ से १.०१ तक अभिजित नामक श्रेष्ठ मुहूर्त है, जो आवश्यक शुभकार्यारम्भ के लिए अत्युत्तम हैं। शुभ मुहूर्त: उपर्युक्त शुभाशुभ समय, तिथि, वार, नक्षत्र व योगानुसार आज अति आवश्यकता में मूल नक्षत्र में भौमयुति दोषयुक्त विवाह का अशुद्ध मुहूर्त है। अन्य शुभ कार्यों के शुभ व शुद्ध मुहूर्त नहीं है। व्रतोत्सव: आज शीतलाष्टमी व पूजन, बास्योड़ा, मेला शील की डूंगरी चाकसू, जयपुर (राज.), कालाष्टमी, श्री प्रेमभाया महोत्सव, ऋषभदेव जयंती, वर्षीतप (जैन) तथा मेला केसरिया मेवाड़ (राज.) में। चन्द्रमा: चन्द्रमा अंतरात्रि ३.२७ तक वृश्चिक राशि में, इसके बाद धनु राशि में रहेगा। ग्रह-मार्गी वक्री: प्रात: १०.२० से गुरु वक्री होंगे। दिशाशूल: शुक्रवार को पश्चिम दिशा की यात्रा में दिशाशूल रहता है। चन्द्र स्थिति के अनुसार आज उत्तर दिशा की यात्रा लाभदायक व शुभप्रद है। राहुकाल: प्रात: १०.३० से दोपहर १२.०० बजे तक राहुकाल वेला में शुभकार्यारंभ यथासंभव वर्जित रखना हितकर है।
अष्टमी जया संज्ञक शुभ तिथि अंतरात्रि अगले दिन सूर्योदय पूर्व प्रात: ६.०१ तक, तदुपरान्त नवमी रिक्ता संज्ञक तिथि प्रारम्भ होगी। अष्टमी तिथि में यथा आवश्यक नाच, गाना, मनोरंजन के कार्य, गढ़ा खजाना प्राप्त करने, लेखन, रत्नपरीक्षण, अलंकार, वास्तुकर्म, विवाह, प्रतिष्ठा और शस्त्र धारण आदि कार्य सिद्ध होते हैं। नवमी तिथि में शुभ व मांगलिक कार्य वर्जित है। नक्षत्र: ज्येष्ठा ‘तीक्ष्ण व तिङ्र्यंमुख’ संज्ञक नक्षत्र अंतरात्रि ३.२७ तक, इसके बाद मूल ‘तीक्ष्ण व अधोमुख’ संज्ञक नक्षत्र है। दोनों ही गण्डान्त मूल संज्ञक नक्षत्र भी है। अत: इन नक्षत्रों में जन्मे जातकों को २७ दिन बाद जब इन नक्षत्रों की पुनरावृत्ति हो, उस दिन मूल शांति करा देना उनके लिए हितकर रहेगा। योग: वज्र नामक नैसर्गिक अशुभ योग सायं ५.५२ तक, इसके बाद सिद्ध नामक नैसर्गिक शुभ योग है। ग्रह राशि-नक्षत्र परिवर्तन: प्रात: १०.०० से नेपच्यून पू.भा. नक्षत्र के प्रथम चरण में प्रवेश करेगा। करण: बालव नामकरण सायं ४.५३ तक, तदन्तर कौलवादि करण रहेंगे। श्रेष्ठ चौघडि़ए: आज सूर्योदय से पूर्वाह्न ११.१० तक क्रमश: चर, लाभ व अमृत, दोपहर १२.३६ से दोपहर बाद २.०५ तक शुभ तथा सायं ५.०० से सूर्यास्त तक चर के श्रेष्ठ चौघडि़ए हैं एवं दोपहर १२.१४ से १.०१ तक अभिजित नामक श्रेष्ठ मुहूर्त है, जो आवश्यक शुभकार्यारम्भ के लिए अत्युत्तम हैं। शुभ मुहूर्त: उपर्युक्त शुभाशुभ समय, तिथि, वार, नक्षत्र व योगानुसार आज अति आवश्यकता में मूल नक्षत्र में भौमयुति दोषयुक्त विवाह का अशुद्ध मुहूर्त है। अन्य शुभ कार्यों के शुभ व शुद्ध मुहूर्त नहीं है। व्रतोत्सव: आज शीतलाष्टमी व पूजन, बास्योड़ा, मेला शील की डूंगरी चाकसू, जयपुर (राज.), कालाष्टमी, श्री प्रेमभाया महोत्सव, ऋषभदेव जयंती, वर्षीतप (जैन) तथा मेला केसरिया मेवाड़ (राज.) में। चन्द्रमा: चन्द्रमा अंतरात्रि ३.२७ तक वृश्चिक राशि में, इसके बाद धनु राशि में रहेगा। ग्रह-मार्गी वक्री: प्रात: १०.२० से गुरु वक्री होंगे। दिशाशूल: शुक्रवार को पश्चिम दिशा की यात्रा में दिशाशूल रहता है। चन्द्र स्थिति के अनुसार आज उत्तर दिशा की यात्रा लाभदायक व शुभप्रद है। राहुकाल: प्रात: १०.३० से दोपहर १२.०० बजे तक राहुकाल वेला में शुभकार्यारंभ यथासंभव वर्जित रखना हितकर है।