मेडिकल कॉलेज रीवा की स्त्री रोग विशेषज्ञ ने पांच साल के अध्ययन से तैयार की हाई रिस्क प्रेग्नेंसी से निपटने की गाइड लाइन, राष्ट्रीय स्तर का सम्मान प्राप्त कर बढ़ाया प्रदेश का गौरव।
रीवा। छोटे शहरों में हाई रिस्क प्रेग्नेंसी बड़ी चुनौती है। बात विंध्य की करें तो यहां प्रसूता मरीज और प्रसव मर्ज बन चुका है। लेबर रूम में 7 ग्राम हीमोग्लोबिन पर गर्भवती की प्रसव पीड़ा मेडिकल कॉलेज की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. बीनू सिंह ने महसूस की है। डॉ. बीनू सिंह ने पांच साल के अध्ययन से हाई रिस्क प्रेग्नेंसी के लिए जिम्मेदार कारणों का पता कर जांच आधारित गाइड लाइन तैयार की है।
पत्रिका से चर्चा में उन्होंने बताया कि रीवा, सतना, सीधी, सिंगरौली, पन्ना, उमरिया और शहडोल सहित अन्य जिलों में एनीमिया की चपेट में 62 फीसदी महिलाएं हैं। ये महिलाएं गर्भावस्था के दौरान हाई रिस्क जोन में चली जाती हैं। जीएम हॉस्पिटल में प्रति वर्ष करीब 9000 प्रसव होते हैं जिनमें से 70 फीसदी केस हाई रिस्क के हैं।
बीते पांच वर्ष में हाई रिस्क गर्भवती की केस हिस्ट्री तैयार की। पता किया कि हाई रिस्क में पहुंचने की वजह क्या रही है। गर्भ धारण करने के बाद नौ माह में और गर्भ पूर्व देखभाल में उनसे क्या चूक हुई। पाया गया कि महिलाएं गर्भ धारण के बाद पैदा होने वाले खतरों से अंजान हैं।
अध्ययन को नेशनल सोसायटी ऑफ आब्सटेट्रिशियन एंड गायनकोलॉजिस्ट ऑफ इंडिया की कमेटी के समक्ष रखा। बताया कि इन कारणों को विश्व स्वास्थ्य संगठन भी प्रमाणित कर चुका है। लेकिन देश के छोटे शहरों, गांवों की महिलाएं गर्भ पूर्व देखभाल की जानकारियों से अंजान हैं। नेशनल सोसायटी ऑफ आब्सटेट्रिशियन एंड गायनकोलॉजिस्ट ऑफ इंडिया ने इसे स्वीकर कर लिया है। जल्द ही इस पर अमल शुरू होगा।
वेस्ट जोन ओरेशन अवार्ड
अध्ययन पर डॉ. बीनू सिंह को राष्ट्रीय स्तर का डॉ. कामिनी राव वेस्ट जोन ओरेशन अवार्ड 2015 दिया गया है। नेशनल सोसायटी ऑफ आब्सटेट्रिशियन एंड गायनकोलॉजिस्ट ऑफ इंडिया की अध्यक्ष पद्मश्री डॉ. अल्का कृपलानी ने उन्हें आगरा में सम्मानित किया। दूसरा मौका है जब प्रदेश की स्त्रीरोग विशेषज्ञ को यह गौरव मिला। इससे पहले इंदौर के एक डॉक्टर को यह अवार्ड मिल चुका है।
छोटे शहरों में चुनौतियां ज्यादा
डॉ. बीनू सिंह का कहना है कि छोटे शहरों के सरकारी अस्पतालों के डिलेवरी सेंटर में संसाधनों का अभाव है। कम संसाधनों में हाई रिस्क डिलेवरी संभव नहीं है। गांवों के अस्पतालों में इंफ्रास्ट्रक्चर पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। लोकल वर्कर को सही प्रशिक्षण नहीं मिल रहा है। डिलेवरी के केस टर्सरी सेंटर भेजने को डॉक्टर मजबूर है। दरअसल, 15 साल पहले जब जननी सुरक्षा योजना सरकार ने लांच की थी तब यह तय हुआ था कि हाई रिस्क गर्भवती को इससे टर्सरी सेंटर भेजेंगे।
गाइडलाइन में सुझाव
1- गर्भवती को अल्ट्रासाउंड जांच सिर्फ दो बार करानी है। एक तीसरे महीने और दूसरा पांचवें महीने में।
2- गर्भ के दौरान डायबिटीज टेस्ट जरूरी है। यह टेस्ट 7वें या 8वें महीने में कराना चाहिए।
3- गर्भ के पहले रूबेला टीकाकरण कराना जरूरी है। गर्भावस्था के दौरान कराने से शिशु को जन्मजात विकृति का खतरा रहता है।
4- गर्भ पूर्व महिला का थायराइड टेस्ट कराना अनिवार्य है।
5- गर्भ के पहले महिला की खून की जांच अनिवार्य है। ताकि हिमोग्लोबिन का स्तर गर्भ धारण से पहले पता चल सके।