बैठक का संचालन कर रहे जिला क्षय नियंत्रण अधिकारी डॉ. बीएल मिश्रा ने बताया कि एचआइवी वायरस से एड्स रोग हो जाता है। मुख्य रूप से एड्स रोग असुरक्षित योन संबंध, असुरक्षित नीडिल एवं सिरींज से कई लोगों का टीकाकरण, युवाओं द्वारा नशे का इंजेक्शन लेने से तथा एचआइवी संक्रमित माता-पिता से बच्चों को यह रोग होता है। जिले में 152 बच्चे पीडि़त हैं। रोकथाम के लिए संजय गांधी चिकित्सा महाविद्यालय एवं जिला अस्पताल में यूनिट स्थापित की गई है। इसके साथ ही सभी गर्भवती महिलाओं का एचआइवी परीक्षण कराया जाता है। जिले में एकीकृत परामर्श एवं 9 जांच केन्द्र स्थापित किए गए हैं।
बैठक के दौरान चिकित्सकों ने बातया कि जिले में लगभग 4 हजार टीबी के रोगी हैं। इस रोग पर डाट्स की दवाओं द्वारा नियंत्रण किया जाता है। टीबी की पहचान बलगम की जांच जांव के साथ ही सीबी नाट मशीन द्वारा की जाती है। डायबिटीज रोगियों को भी टीबी रोग की संभावना बनी रहती है। टीबी रोगियों की पहचान करके पोषण आहार के लिए उनके खाते में प्रतिमाह 500 रुपए दिए जाते हैं। निजी चिकित्सकों ने टीबी का इलाज करने पर एक हजार रुपए मानदेय दिया जाता है।
प्रत्येक महाविद्यालय में रेड रिवन क्लब संचालित है। छात्रों द्वारा भ्रमण कर 20 से 30 घरों में क्षय रोग की जानकारी दी जाती है। सभी महाविद्यालय में यूनिट स्थापित की गई है। कृषि महाविद्यालय द्वारा टीबी के 6 मरीजों को गोद लेकर पोषण आहार दिया जा रहा है। बैठक में जिला पंचायत के सीईओ मयंक अग्रवाल, अपर कलेक्टर बीके पाण्डेय, मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. आरएस पाण्डेय, महाविद्यालयों के प्राचार्य, एनजीओ के प्रतिनिधि सहित अन्य सामाजिक संगठन के सदस्य भी मौजूद रहे।