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बच्चों के बिना ही संचालित हो रहे शहर में आगनबाड़ी केन्द्र, खाली बैठी रहती हैं कार्यकर्ताएं

locationरीवाPublished: Feb 28, 2020 12:42:53 pm

Submitted by:

Mrigendra Singh

– अधिकांश किराए के मकान में चल रहे, शौचालय में पानी नहीं होने से उपयोग नहीं होते- अधिकारियों की उदासीनता की वजह से केन्द्रों का हो रहा है मनमानी संचालन

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Anganwadi centers in the city being operated without children, Rewa



रीवा। शहर के आगनबाड़ी केन्द्रों का संचालन अधिकांश जगह कम संख्या में बच्चों के साथ हो रहा है। कुछ जगह तो केवल कागजों में नाम दर्ज किए गए हैं, आगनबाड़ी केन्द्रों तक बच्चे नहीं पहुंच पा रहे हैं। यह स्थिति शहर में संचालित होने वाले अधिकांश केन्द्रों की होती जा रही है। तीन वर्ष से कम आयु के बच्चों को लोग केन्द्र में भेजते नहीं हैं और इससे अधिक आयु के बच्चों को नर्सरी स्कूलों में दाखिला कराया जाता है।
हर केन्द्र में कम से कम 40 की संख्या में बच्चों के नाम दर्ज करने की अनिवार्यता है इसलिए नाम तो दर्ज हैं लेकिन ये बच्चे केन्द्र तक नहीं आते। शहर के आंगनबाड़ी केन्द्रों में बच्चों के पहुंचने का औसत दस से 12 तक का बताया जा रहा है। ‘पत्रिकाÓ ने शहर के कई मोहल्लों में चल रहे आंगनबाड़ी केन्द्रों का जायजा लिया तो पता चला कि कम संख्या में ही बच्चे आ रहे हैं। स्लम बस्तियों में तो बच्चों के पहुंचने की संख्या कई बार अधिक भी हो जाती है लेकिन सामान्य मोहल्लों में बुलाने पर भी बच्चे नहीं पहुंचते हैं।

– किराए के भवनों में संचालन फिर भी सुविधाएं नहीं
शहर के अधिकांश आंगनबाड़ी केन्द्र किराए के भवनों में संचालित हो रहे हैं। इन भवनों में बच्चों के लिए पानी और शौचालय की पर्याप्त व्यवस्थाएं नहीं हैं। पूछे जाने पर कहा जाता है कि मकान मालिक द्वारा बनाए गए शौचालय में ही उपयोग किया जाता है। कुछ समय पहले ही सरकार ने एक आंकड़ा जारी करते हुए कहा है कि आगनबाड़ी केन्द्रों में पानी और शौचालय की सुविधा देने के लिए बड़ी रकम खर्च की है। इस दावे के विपरीत हालात शहर में हैं। सरकारी भवनों की कमी है जिसकी वजह से अधिकांश केन्द्र किराए के भवनों में चल रहे हैं।
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– शहर के आगनबाड़ी केन्द्रों में यह हैं हालात
बोदाबाग 01– शहर के आंगनबाड़ी केन्द्र बोदाबाग का संचालन किराए के मकान में हो रहा है। यहां पर कार्यकर्ता मीरा विश्वकर्मा एवं सहायिका मधु विश्वकर्मा पदस्थ हैं। दावा है कि 40 बच्चे रजिस्टर्ड हैं और अधिकांश आते हैं। मौके पर बच्चे नहीं थे, जिस पर तर्क दिया गया कि दोपहर 12 बजे भोजन वितरण के बाद बच्चों को घर पहुंचा दिया जाता है।

चेलवाटोला- यह केन्द्र भी किराए के मकान में संचालित हो रहा है। कार्यकर्ता प्रवीण गुप्ता एवं सहायिका सुनीता चतुर्वेदी पदस्थ हैं। सुनीता के मुताबिक स्लम एरिया से बस्ती जुड़ी है, इसलिए यहां पर औसत बच्चों की संख्या १५ से ऊपर की होती है। इस मकान में अभी प्लास्टर भी नहीं हुआ है। मौके पर पांच बच्चे पाए गए। कहा गया कि अन्य दिनों में अधिक संख्या में आते हैं। पानी के लिए नल कनेक्शन है और शौचालय मकान मालिक का ही उपयोग किया जाता है।
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सौरभ नगर– इस मोहल्ले का भी आंगनबाड़ी केन्द्र किराए के मकान में चल रहा है। कार्यकर्ता करुणा सिंह एवं सहायिका मंजूलता केन्द्र में मिलीं। इन्होंने बताया कि 39 बच्चे रजिस्टर्ड हैं और इतने ही बच्चों के लिए हरदिन भोजन आता है। सभी की उपस्थिति पर इनका कहना है कि कम संख्या में ही इस समय बच्चे आते हैं। जितनी उपस्थिति होती है उतने ही बच्चों का भोजन लिया जाता है। बच्चों के उपयोग के लिए यहां पर मकान मालिक द्वारा बनाए गए शौचालय का उपयोग किया जाता है। पानी की सुविधा के लिए नल एवं बोरिंग का होना बताया गया है।

सीधी-बात
प्रतिभा पाण्डेय, जिला कार्यक्रम अधिकारी-महिला एवं बाल विकास विभाग
सवाल– शहरी क्षेत्र में आगनबाड़ी केन्द्रों में बच्चों की संख्या कम क्यों पाई जाती हैïï?
जवाब- केन्द्रों का संचालन मापदंडों के अनुरूप ही होता है। कई बार कम संख्या में बच्चे आते हैं। सभी को निर्देश है कि रजिस्टर्ड बच्चों की शतप्रतिशत उपस्थिति के प्रयास करें।
सवाल- कई जगह केन्द्रों में ताला बंद पाया जा रहा है, ऐसा क्यों?
जवाब- केन्द्र यदि नहीं खुलता तो संबंधित कार्यकर्ता पर कार्रवाई होगी। कई बार मीटिंग या अन्य कार्यों की वजह से कार्यकर्ताएं चली जाती हैं लेकिन केन्द्र में सहायिका रहती है। मनमानी की शिकायतें जहां से आती हैं कार्रवाई होती है।
सवाल- केन्द्रों में पानी और शौचालयों की स्थिति ठीक नहीं है, विभाग की ओर से क्या इंतजाम किए गए हैं?
जवाब- सरकारी भवनों वाले केन्द्रों में शौचालय निर्माण की राशि आई है। शहर में अधिकांश जगह किराए के मकान में संचालन हो रहा है। सभी कार्यकर्ताओं को निर्देश हैं कि साफ पानी और शौचालय की अनिवार्य रूप से व्यवस्था कराएं।
सवाल- आगनबाड़ी केन्द्रों का नियमित निरीक्षण नहीं हो पाता, इसकी क्या वजह है?
जवाब- केन्द्रों का सुपरवीजन नियमित रूप से हो रहा है। हर सेक्टर में सुपरवाइजर तैनात हैं, सभी को कम से कम 16 दिन भ्रमण करना अनिवार्य है। कई बार प्रशिक्षण एवं अन्य कार्यों की वजह से विलंब होता है। इसके अलावा जेडी एवं जिला कार्यालय की ओर से भी निरीक्षण में अधिकारी पहुंचते हैं। कमियों पर सख्त कार्रवाई होती है।
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