रीवा

मिट्टी में मौजूद हैं पॉलीथिन व ऑयल को नष्ट करने वाले बैक्टीरिया

एपीएसयू के बायोटेक्नोलॉजी के रिसर्च स्कालर ने प्रयोग कर खोजे छह बैक्टीरिया, लैब में वाहनों से निकले रासायनिक कचरे एवं बैक्टीरिया को साथ रखकर किया प्रयोग,चार वर्षों तक रिसर्च के बाद यह नतीजा आया सामने

रीवाJul 15, 2019 / 10:05 am

Vedmani Dwivedi

Aps university rewa resarch Bacteria

रीवा. उद्योगों एवं वाहनों से निकलने वाले रासायनिक कचरे(हाइड्रोकार्बन)को प्राकृतिक तौर पर नष्ट किया जा सकता है। मिट्टी में इन हाइड्रोकार्बन को नष्ट करने वाले बैक्टीरिया मौजूद हैं। जो आसानी से रासायनिक कचरे को नष्ट कर सकते हैं। बशर्ते उनकी संख्या कम है, जिसकी वजह से अभी तक रासायनिक कचरे से मिट्टी को नहीं बचाया जा सका है। यह बात अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय के बायोटेक्नोलॉजी विभाग में कराए गए एक रिसर्च में सामने आई है। रिसर्च के मुताबिक मिट्टी में इन बैक्टीरिया की संख्या बढ़ाकर हाइड्रोकार्बन के कचरे से प्राकृतिक तौर आसानी से निपटा जा सकता है।

ये बैक्टीरिया नष्ट कर सकते हैं पॉलीथिन एवं ऑयल
रिसर्च में यह बात समाने आई है कि मिट्टी में स्यूडोमोनास, एरोजिनोसा, पुटीडा, बैसीलस सबटीलस, लईकेनेफारमीस, लेटीरोस्पोर ऐसे बैक्टीरिया मौजूद हैं जिनमें पॉलीथिन के साथ ही रासायनिक कचरे को नष्ट करने की झमता है। मिट्टी में मौजूद रहकर ये हाइड्रोकार्बन को नष्ट करने का प्रयास करते हैं।

डेढ़ महीने तक साथ रखे बैक्टीरिया एवं हाइड्रोकार्बन
एपीएसयू के बायोटेक्नोलॉजी विभाग के छात्र श्रीकांत कोल ने बताया कि रिसर्च में उन्हें चार वर्ष का समय लगा। इसके लिए कई अत्याधुनिक उपकरणों की जरूरत थी। जिसमें सबसे महत्वपूर्ण शेकर इन्क्यूबेटर है। इसी उपकरण में एक विशेष तापमान में करीब डेढ़ से दो महीने तक बैक्टीरिया एवं हाइड्रोकार्बन को एक साथ रखा जाता है। उन्होंने बताया कि शहर के ऐसे स्थानों से मिट्टी के नमूने लिए जहां वाहनों की रिपेयरिंग ज्यादा होती है। वहां की आस – पास की मिट्टी प्रदूषित हो जाती है। मिट्टी बंजर हो जाती है और वहां घास तक नहीं उगती। उन्होंने बताया कि खन्ना चौक, धोबिया टंकी और ट्रांसपोर्ट नगर सहित अन्य कई स्थानों से मिट्टी के २०० नमूने लिए। बताया कि इन मिट्टी में मौजूद बैक्टीरिया को मिट्टी से अलग किया गया। इसके बाद शेकर इन्क्यूबेटर में एक निश्चित तापमान में बैक्टीरिया एवं हाइड्रोकार्बन को एक साथ करीब डेढ़ महीने तक रखा गया। अलग – अलग नमूनों को अलग – अलग तापमान में रखा गया। उन्होंने पाया कि 30 – 40 डिग्री के तापमान पर बैक्टीरिया हाइड्रोकार्बन को तेजी से नष्ट कर रहे हैं।

प्रदूषित जगह से सेंपल लेने की यह रही वजह
रिसर्च स्कॉलर श्रीकांत कोल ने बताया कि प्राकृतिक रूप से यह सभी की प्रवृत्ति होती है कि उसे जब नुकसान पहुंचाया जाता है तो वह अपने को बचाने के लिए लड़ता है। इसी प्रकार जहां की मिट्टी में प्रदूषण बढ़ता है वहां की मिट्टी में मौजूद तत्व अपने को बचाने के लिए तैयार होते हैं। ज्यादा मात्रा में एकत्रित होते हैं। यही वजह है कि उस स्थान की मिट्टी के सेंपल का उपयोग किया गया जहां की मिट्टी प्रदूषण से जूझ रही है।

चार वर्ष तक किया रिसर्च
कोल के पीएचडी का यही उद्देश्य रहा। उन्होंने 2014 में इसकी शुरुआत की। सेवानिवृत्त प्रोफेसर एवं बायोटेक्नोलॉजी विभाग की पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. उगम कुमारी चौहान के देखरखे में यह रिसर्च पूरा किया। 2018 में उनका रिसर्च पूरा हुआ।

रिसर्च में इन उपकरणों का किया प्रयोग
लैमीनार एयर फ्लो
पीएच मीटर
रोकर इन्क्यूबेटर
स्पेक्ट्रोफोटोमीटर
माइक्रोस्कोप
शेकर इन्क्यूबेटर

प्रदूषण की बड़ी समस्या
पूरे देश में पॉलीथिन एवं उद्योगों से निकलने वाले रासायनिक कचरे जल एवं मिट्टी प्रदूषण के लिए बड़ी समस्या बने हुए हैं। ज्यादातर उपयोग की सामग्रियां प्लास्टिक में तैयार हो रही हैं। उद्योग एवं वाहनों की संख्या लगातार बढ़ रही है। जिसकी वजह से मिट्टी एवं पानी को बचा पाना बेहद मुश्किल हो रहा है। ऐसे में यह रिसर्च काफी कारगर माना जा रहा है।
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एक्सपर्ट व्यू
‘ हॉ! एक ऐसा रिसर्च कराया गया है और उसमें यह बात सामने आई है कि मिट्टी में ऐसे बैक्टीरिया पाए जाते हैं जो पॉलीमर एवं हॉइड्रोकार्बन से बने पदार्थों को छोटे – छोटे योगिकों में तोड़ देते हैं। बैक्टीरिया को ऊर्जा की जरूरत होती है वे अपनी ऊर्जा पूर्ति के लिए ऐसा करते हैं ‘ ।
प्रो. रहस्यमणि मिश्र, पूर्व कुलपति एवं विभागाध्यक्ष पर्यावरण विज्ञान विभाग

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