विधानसभा के 2013 के चुनाव में सिटिंग विधायक होने के बावजूद अभय मिश्रा का टिकट पार्टी ने काट दिया था। उस दौरान मंत्री और इनके बीच का विवाद उभरकर सामने आया था। हालांकि उस दौरान राजनीतिक दांव खेलकर अपनी पत्नी नीलम मिश्रा को टिकट दिलाया और जीत भी हासिल की। इसके बाद से वह संगठन के समानांतर काम करने लगे और सरकार की मुश्किलें बीच-बीच में बढ़ाते रहे।
रीवा नगर निगम में भाजपा की सत्ता है। ऐसे में अभय की पत्नी विधायक नीलम मिश्रा के नाम पर विश्वविद्यालय मार्ग में बनाए जा रहे शॉपिंग काम्प्लेक्स का निगम ने अवैध निर्माण घोषित कर गिराने की तैयारी कर ली थी। विधायक ने इसकी शिकायत मुख्यमंत्री और पार्टी अध्यक्ष से भी की थी। बाद में 19.65 लाख रुपए का जुर्माना लगाने के बावजूद भवन को गिराने का निर्देश जारी किया गया था। इस पर कोर्ट ने राहत दी थी। यह विवाद भी भाजपा से दूरी बनाने का प्रमुख कारण बना।
भाजपा के बड़े नेताओं के विरोध के बावजूद जिला पंचायत सदस्य और फिर अध्यक्ष का चुनाव जीता। इसके बाद से त्रिस्तरीय पंचायत प्रतिनिधियों को अधिकार दिलाने के लिए प्रदेशभर में बड़ा आंदोलन खड़ा किया। वर्ष २०१६ में प्रदेश के हर जिले से सरकार के खिलाफ आवाज उठने लगी थी। जिसके चलते भाजपा ने पार्टी से बाहर कर दिया। कुछ समय के बाद भाजपा अध्यक्ष नंदकुमार चौहान से चर्चा के बाद फिर से भाजपा कर ली।
ऐसा नहीं रहा कि अभय का विवाद केवल भाजपा नेताओं तक सीमित रहा हो। उन पर प्रशासनिक दबाव भी बनाया गया। पूर्व में कलेक्टर रहे राहुल जैन और उनके बीच खुलकर विवाद सामने आया। कलेक्टर ने जिला पंचायत के कई अधिकार अपने पास ले लिए थे। इस हस्तक्षेप के चलते वह मंत्री, सांसद और कलेक्टर के खिलाफ बोलते रहे।
अभय मिश्रा ने जब भी भाजपा नेताओं के खिलाफ कुछ बोला उन पर हर तरह से दबाव बनाने का प्रयास किया गया। उनकी कंस्ट्रक्शन कंपनी द्वारा किए जा रहे कार्यों की जांच के लिए सरकार ने विशेष टीम भोपाल से भेजी थी। सांसद जनार्दन मिश्रा स्वयं बनकुइयां मार्ग में सड़क की गुणवत्ता खराब होने का आरोप लगाते हुए धरना दे दिया था। अन्य कई कार्यों की जांच करने सांसद स्वयं पहुंचते रहे हैं। रेलवे स्टेशन के पास बनाए गए मकान में नाले की भूमि पर कब्जे का आरोप लगाते हुए घर के भीतर तक नापजोख की गई, हालांकि उन्होंने स्वयं नाले पर अतिक्रमण मानते हुए अपना कब्जा हटा लिया था। कुछ दिन पहले ही सामूहिक विवाह समारोह में जिला प्रशासन ने अध्यक्ष का नाम तक आमंत्रण पत्र में नहीं लिखाया था।
शुरुआती राजनीति अभय ने कांग्रेस पार्टी से ही की थी। पार्षद के लिए चुनाव भी लड़े जिसमें हार हुई। इसके बाद 200-03 में सिरमौर के जनपद अध्यक्ष चुने गए। प्रदेश में बढ़ती भाजपा की लोकप्रियता को देख सदस्यता ली थी और 2008 में भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़कर कांग्रेस के बड़े नेता राजमणि पटेल को हराकर सबको चौंका दिया था। समय के साथ राजनीतिक करवट लेने वाले नेता के रूप में इनकी पहचान बनी है।