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मां की कोख में बच्चों को मिल रही दिल की बीमारी, लगातार बढ़ रहे मामले

locationरीवाPublished: Sep 30, 2018 12:39:37 pm

Submitted by:

Vedmani Dwivedi

प्रतिवर्ष 70 से अधिक बच्चे दिल की बीमारी के साथ ले रहे जन्म, विंध्य के किसी भी अस्पताल में नहीं है सर्जरी की सुविधा, जांच भी सिर्फ एसजीएमएच में

Children suffering from heart disease with birth

Children suffering from heart disease with birth

रीवा. सिरमौर के रहने वाले राकेश मिश्रा के घर में बच्चे ने जन्म लिया। सब कुछ ठीक -ठाक चल रहा था। पांच माह बाद अचानक बच्चे की तबियत खराब हो गई। उन्होंने संजय गांधी अस्पताल में भर्ती कराया तो पता चला की बच्चे को हृदय से संबंधित बीमारी है, सर्जरी करानी पड़ेगी। जो नागपुर या फिर रायपुर में ही हो पाएगी।

यह सुनकर तो उनके होश ही उड़ गए लेकिन हिम्मत नहीं हारी। नागपुर में सर्जरी के बाद अब बच्चा स्वस्थ है। इसी तरह जिले में प्रतिवर्ष करीब 70 से ज्यादा बच्चे ऐसे जन्म लेते हैं जो हृदय रोग से पीडि़त होते हैं। कुछ बच्चे ऐसे होते हैं जिनकी उम्र कम होने से सर्जरी नहीं हो पाती और मौत हो जाती है।

विंध्य क्षेत्र के किसी भी अस्पताल में सर्जरी की सुविधा नहीं है। हैरत की बात है कि जांच की भी सिर्फ संजय गांधी अस्पताल में ही व्यवस्था है। सीधी, सिंगरौली, सतना एवं पन्ना में हृदय रोग की जांच तक नहीं हो पाती।

पिछले तीन वर्ष के आंकड़े बताते हैं कि जिले में जन्म के साथ हृदय रोग से पीडि़त बच्चों की संख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है। राष्ट्रीय बालक स्वास्थ्य कार्यक्रम कार्यालय रीवा से मिले आंकड़ों के मुताबिक 2015- 16 में 44 ऐसे बच्चे मिले जिन्हें जन्म के साथ हृदय की बीमारी थी। 2016-17 में ग्राफ बढ़कर 82 पहुंच गया। 2017-18 में 78 ऐसे बच्चे चिह्नित किए गए।

2018-19 में सितंबर तक 17 ऐसे बच्चे चिह्नित किए जा चुके हैं।

हृदय रोग से पीडि़त बच्चों के उपचार के लिए बाल हृदय उपचार योजना में सरकारी मदद का प्रावधान है। हर जिले में बाल हृदय उपचार योजना के कार्यालय तो है लेकिन जांच सुविधा नहीं है। परिजनों को स्वत: जांच कराकर रिपोर्ट फाइल के साथ विभाग में प्रस्तुत करना होता है।

इसके बाद ही सरकारी मदद के लिए स्वास्थ्य विभाग प्रक्रिया शुरू करता है। उसमें भी केवल सर्जरी का शुल्क योजना के तहत मिलता है।

निजी अस्पतालों में भर्ती रहने के दौरान करीब 80 हजार से ज्यादा रुपए स्वत: से खर्च करना पड़ता है। यही वजह है कि इस योजना का लाभ गरीब लोगों को नहीं मिल पाता।

केस – 1
गोविंदगढ़ के दिव्यांश पाण्डेय को जन्म के साथ हृदय की बीमारी थी। १८ माह का होने पर अचानक तबियत खराब हुई। अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। जांच में पता कि हृदय से संबंधित बीमारी है। सर्जरी करानी पड़ेगी। 21 नवंबर 2017 को भोपाल के एक निजी अस्पताल में सर्जरी हुई। जिसके बाद से स्वस्थ है।

केस- 2
गोविंदगढ़ के रजनीश गुप्ता को जन्म के साथ हृदय की बीमारी थी। पहले हल्की दिक्कत थी। आठ वर्ष का होने पर तबियत ज्यादा खराब होने लगी। जांच में पता चला कि हृदय की बीमारी है। नागपुर के एक निजी चिकित्सालय में 29 नवंबर 2017 को सर्जरी हुई।

केस-3
सिरमौर निवासी सुमित मिश्रा को भी जन्म के साथ ही दिल की बीमारी थी। कम उम्र में सर्जरी नहीं हो पा रही थी। उनका उपचार जन्म के साथ ही चलता रहा। जब सात माह के हुए तो 20 जून 2017 को नागपुर के एक निजी अस्पताल में सर्जरी हुई। जिसके बाद से वे स्वस्थ हैं।

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