कुठुलिया के कब्रिस्तान में सुपुर्दे खाक कर दिया गया। चिराग खां ने रीवा शहर के ऐतिहासिक इमारत बैजू धर्मशाला का निर्माण अपने हाथों से किया था। इसके अलावा रीवा और आसपास बनाई गई छतरियों को भी बनाया था। इतिहासकार असद खान ने बताया कि शिल्पकार चिराग खां का जन्म 1919 में बिछिया रीवा में हुआ था। इनके पूर्वज करीब पांच सौ वर्षों से शिल्पकारी करते रहे हैं।
गुजरात से बाघेल शासकों के साथ इनका परिवार रीवा आया था। तब से यहां की प्रमुख इमारतों को बनाते रहे हैं। चिराग दस वर्ष की उम्र से ही रीवा महाराजा के निर्देश पर भवनों को बनाते रहे हैं। 1936 में बैजू धर्मशाला में राजस्थानी कलाकारों के साथ भी काम किया। उस दौरान महाराजा गुलाब सिंह ने इनाम भी दिया था। इसके बाद से कई मंदिर, मस्जिद एवं दरगाहों के गुंबद भी बनाए।
गोविंदगढ़, छुहिया पहाड़, लक्ष्मणबाग के साथ ही रीवा शहर के आसपास दर्जनों की संख्या में छतुरियां एवं अन्य भवन भी बनाए। वर्ष 2005 में रीवा किले की ओर से दशहरे के दिन इन्हें सम्मानित किया गया था। साथ ही कुछ समय पहले कलेक्टर ने भी बैजू धर्मशाला में आयोजित एक कार्यक्रम में सम्मानित किया था।
– 90 वर्ष की उम्र तक किया कार्य
चिराग खां को शिल्पकारी का जुनून था। उन्होंने ९० वर्ष की आयु तक नक्काशी के कार्य किए। उन्होंने शहर के कुछ लोगों को यह कला सिखाने का प्रयास भी किया था लेकिन उसमें सफल नहीं हो सके। अपने परिवार के ये शिल्पकारी के आखिरी चिराग रहे। इनके पुत्र इख्तियार ने भी उस क्षेत्र में रुचि नहीं दिखाई। पुत्री का नाम जमशीदा है।