इस अस्पताल की दुर्दशा कोई नई नहीं है, लेकिन अब अस्पताल को सुधारने का बीड़ा खुद कलेक्टर इलैयाराजा टी ने उठाया है। उन्होंने अस्पताल का निरीक्षण किया। चार घंटे तक मरीजों के बीच रहे। उनसे उनकी पीड़ा जानी, उनकी समस्या से संबंधित फीडबैक लिया। अस्पताल के डीन से लेकर साफसफाई प्रभारी तक की क्लास ली। कलेक्टर ने कहा कि पर्ची काउंटर पर खड़े लोगों का यही हाल रहा तो ये इनका इलाज कब होगा, ये तो खड़े-खड़े और बीमार हो जाएंगे। कुछ अनहोनी हो जाए तो कौन जवाबदेह होगा। उन्होंने मरीजों को भगवान की संज्ञा दी। चार घंटे की बदहाली देख उन्होंने माथा पीट लिया।
दरअसल कलेक्टर, अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक के अचानक अवकाश पर चले जाने के बाद अस्पताल पहुंचे थे। बताया जाता है कि चिकित्सा अधीक्षक कॉलेज प्रबंधन और डॉक्टरों की ड्यूटी के प्रति लापरवाही को लेकर काफी नाराज थे। ओपीडी में ड्यूटी करने वाले डॉक्टर हो या स्टॉफ कोई समय का पाबंद नहीं रहा। इस संबंध में जब वो कोई कार्रवाई करते तो उसे भी काउंटर किया जा रहा था। इसके चलते वो अधीक्षक पद ही छोड़कर चले गए।
चिकित्सा अधीक्षक के इस कदम से नाराज कलेक्टर ने अस्पताल का हाल जानने और खामियों को दूर करने खुद ही अस्पताल पहुंच गए। अस्पताल परिसर में बिताए चार घंटों में उन्होंने जो देखा वो असहनीय रहा। इससे नाराज कलेक्टर ने डीन डॉ मनोज इंदूलकर की अच्छी खासी क्लास ली। पर्ची काउंटर से लेकर दवा वितरण तक के लिए लंबी-लंबी लाइन में लगे मरीजों को देख कर उनका दिल पसीज गया। लेकिन अंदर ही अंदर वह इस दुर्व्यवस्था से काफी नाराज हुए। ओपीडी में जांच रिपोर्ट दिखाने वालों के साथ जो कुछ होता देखा वह भी चौंकाने वाला रहा। कोई कंसल्टेंट हो तब तो रिपोर्ट देखे।
चार घंटे के दौरान कलेक्टर ने अस्पताल का चप्पा-चप्पा छान मारा। मगर एक भी स्थान ऐसा नहीं मिला जहां कुछ ठीक हो। डॉक्टरों की गैरहाजिरी, वार्डों व वाश रूम की गंदगी, पर्ची वितरण व दवा वितरण का बीमार सिस्टम देख वह अंदर ही अंदर खासे नाराज हुए। जच्चा-बच्चा वार्ड हो या नवजात शिशु वार्ड चारों तरफ बदइंतजामी ही नजर आई। इस पर उन्होंने डीन व मेट्रन से लेकर हर जिम्मेदार को खरी-खोटी सुनाई और कहा कि अस्पताल की हालत जल्द से जल्द सुधरनी चाहिए अन्यथा मजबूरन कड़े कदम उठाने ही पड़ेंगे।