उनका अंतिम संस्कार शव पहुंचने के बाद रीवा जिले के गृह ग्राम तिवनी में किया जाएगा। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने निधन पर दुख: जताते हुए कहा है हमने विंध्य क्षेत्र में एक सितारा खो दिया है। जिनके राजनीति का प्रभाव पूरे प्रदेश में था। अपनी बेवाक बात के लिए देशभर में तिवारी मशहूर थे। प्रदेश उनको सफेद शेर के नाम से जानता था।
ये है पूरा इतिहास
जानकारों ने बताया कि, श्रीनिवास तिवारी का जन्म 17 सितम्बर 1926 को रीवा जिले के शाहपुर ग्राम में हुआ था। यहां उनका ननिहाल था। जन्म के समय उनकी माता यहीं थी। वैसे तो उनका गृह ग्राम तिवनी जिला रीवा है। उनकी माता का नाम कौशिल्या देवी और पिता का नाम पं. मंगलदीन तिवारी है। इनकी प्रारंभिक शिक्षा गृह ग्राम तिवनी मनगंवा और मार्तंड स्कूल रीवा में हुई। इन्होने एमए, एलएलबी, टीआरएस कालेज रीवा (तत्कालीन दरवार कालेज) से उच्च शिक्षा प्राप्त की।
जानकारों ने बताया कि, श्रीनिवास तिवारी का जन्म 17 सितम्बर 1926 को रीवा जिले के शाहपुर ग्राम में हुआ था। यहां उनका ननिहाल था। जन्म के समय उनकी माता यहीं थी। वैसे तो उनका गृह ग्राम तिवनी जिला रीवा है। उनकी माता का नाम कौशिल्या देवी और पिता का नाम पं. मंगलदीन तिवारी है। इनकी प्रारंभिक शिक्षा गृह ग्राम तिवनी मनगंवा और मार्तंड स्कूल रीवा में हुई। इन्होने एमए, एलएलबी, टीआरएस कालेज रीवा (तत्कालीन दरवार कालेज) से उच्च शिक्षा प्राप्त की।
छात्र जीवन से राजनीति
श्रीनिवास तिवारी छात्र जीवन से ही स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी, सामंतवाद के विरोध में कार्य में सक्रिय रहे। यहीं से इन्होने राजनीति में कदम रखा। 1952 मे सबसे कम उम्र के विधायक बनने का गौरव भी श्रीनिवास ने हासिल किया। इसके बाद 1957 में 1972 से 1985, 1990 से 2003 तक लगातार जीत दर्ज की। सन् 1980 में प्रदेश सरकार में मंत्री, 23/3/1990 से 15/12/1992 विधानसभा उपाध्यक्ष, और 1993 से 2003 तक विधानसभा अध्यक्ष रहे।
श्रीनिवास तिवारी छात्र जीवन से ही स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी, सामंतवाद के विरोध में कार्य में सक्रिय रहे। यहीं से इन्होने राजनीति में कदम रखा। 1952 मे सबसे कम उम्र के विधायक बनने का गौरव भी श्रीनिवास ने हासिल किया। इसके बाद 1957 में 1972 से 1985, 1990 से 2003 तक लगातार जीत दर्ज की। सन् 1980 में प्रदेश सरकार में मंत्री, 23/3/1990 से 15/12/1992 विधानसभा उपाध्यक्ष, और 1993 से 2003 तक विधानसभा अध्यक्ष रहे।
श्वेत भौंहें आकर्षण का केन्द्र
वैसे तो श्रीनिवास की कई उपलब्धियां रही राजनीति, समाजसेवा, प्रशासन एवं साहित्य के क्षेत्र में इनका उल्लेखनीय कार्य रहा हैं। तिवनी ग्राम का नाम लेते ही एक प्रखर एवं पुष्ठ पौरुष सम्मुख आता है। लम्बा-चैड़ा बलिष्ठ शरीर, सिर के धवल बाल घनी श्वेत भौंहें जो इनकी गम्भीरता को प्रगट करती हैं। अतलदर्शी नेत्र जैसे, दोनों नेत्र सामने वाले के अन्त: में प्रवेश कर रहे हों। सतर्क बड़े-बड़े कान सबकी बातें ध्यान से सुनने वाले। बड़ी नाक जो बताती है कि यह व्यक्ति अपनी प्रतिष्ठा के लिए सावधान है। यह शीघ्र ही व्यक्तियों को पहचान लेता है।
वैसे तो श्रीनिवास की कई उपलब्धियां रही राजनीति, समाजसेवा, प्रशासन एवं साहित्य के क्षेत्र में इनका उल्लेखनीय कार्य रहा हैं। तिवनी ग्राम का नाम लेते ही एक प्रखर एवं पुष्ठ पौरुष सम्मुख आता है। लम्बा-चैड़ा बलिष्ठ शरीर, सिर के धवल बाल घनी श्वेत भौंहें जो इनकी गम्भीरता को प्रगट करती हैं। अतलदर्शी नेत्र जैसे, दोनों नेत्र सामने वाले के अन्त: में प्रवेश कर रहे हों। सतर्क बड़े-बड़े कान सबकी बातें ध्यान से सुनने वाले। बड़ी नाक जो बताती है कि यह व्यक्ति अपनी प्रतिष्ठा के लिए सावधान है। यह शीघ्र ही व्यक्तियों को पहचान लेता है।
दो पुत्रों में एक का वर्षों पहले निधन
श्रीनिवास तिवारी के दो पुत्र थे। जिनमे अरुण तिवारी जो दुर्भाग्य से अब इस दुनियां में नहीं हैं एवं सुन्दरलाल तिवारी देश व समाज सेवा में सतत्रत हैं। अरुण तिवारी के बड़े पुत्र विवेक तिवारी बबला जिला पंचायत सदस्य के रूप में सक्रिय राजनीति कर रहे हैं एवं छोटे पुत्र वरुण तिवारी पिंकू युवा कांग्रेस जिला अध्यक्ष के रूप में सक्रिय राजनीति में प्रवेश कर चुके हैं। एक पुत्री मोना तिवारी की शादी हो चुकी है। सुन्दरलाल तिवारी के पुत्र सिद्धार्थ तिवारी दिल्ली में हैं तो पुत्री कनुप्रिया अध्ययन कर रही हैं। पपौत्री ऋचा तिवारी व पपौत्र वशिष्ट तिवारी हैं।
श्रीनिवास तिवारी के दो पुत्र थे। जिनमे अरुण तिवारी जो दुर्भाग्य से अब इस दुनियां में नहीं हैं एवं सुन्दरलाल तिवारी देश व समाज सेवा में सतत्रत हैं। अरुण तिवारी के बड़े पुत्र विवेक तिवारी बबला जिला पंचायत सदस्य के रूप में सक्रिय राजनीति कर रहे हैं एवं छोटे पुत्र वरुण तिवारी पिंकू युवा कांग्रेस जिला अध्यक्ष के रूप में सक्रिय राजनीति में प्रवेश कर चुके हैं। एक पुत्री मोना तिवारी की शादी हो चुकी है। सुन्दरलाल तिवारी के पुत्र सिद्धार्थ तिवारी दिल्ली में हैं तो पुत्री कनुप्रिया अध्ययन कर रही हैं। पपौत्री ऋचा तिवारी व पपौत्र वशिष्ट तिवारी हैं।
सामंतवाद के खिलाफ लड़ता एक योद्धा
हम जिस राजनेता के बारे में बात करने जा रहे हैं उनके बारे में जितना कुछ लिखा जाए वह इस मायने में काफी कम है कि उन्होंने विंध्य में किसान मजदूरों को उनका हक दिलाने के लिए सामंतवाद के खिलाफ जो लड़ाई लड़ी वह स्तुत्य है। न केवल रीवा बल्कि विंध्य के विकास में उनका योगदान इतना अधिक है या यूं कहें कि विंध्य को विकास की दिशा देने का काम उन्होंने ही किया तो यह निखालिस सच्चाई होगी। रीवा को महानगरों की तर्ज पर विकास की राह पर लाकर उसको पहचान दिलाने का काम यदि किसी राजनेता ने किया है तो वे हैं पूर्व विधान सभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी, जिन्होंने रीवा को विकास की कई सौगातें दी जो आज रीवा की पहचान बन गई है।
हम जिस राजनेता के बारे में बात करने जा रहे हैं उनके बारे में जितना कुछ लिखा जाए वह इस मायने में काफी कम है कि उन्होंने विंध्य में किसान मजदूरों को उनका हक दिलाने के लिए सामंतवाद के खिलाफ जो लड़ाई लड़ी वह स्तुत्य है। न केवल रीवा बल्कि विंध्य के विकास में उनका योगदान इतना अधिक है या यूं कहें कि विंध्य को विकास की दिशा देने का काम उन्होंने ही किया तो यह निखालिस सच्चाई होगी। रीवा को महानगरों की तर्ज पर विकास की राह पर लाकर उसको पहचान दिलाने का काम यदि किसी राजनेता ने किया है तो वे हैं पूर्व विधान सभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी, जिन्होंने रीवा को विकास की कई सौगातें दी जो आज रीवा की पहचान बन गई है।
विंध्य के विलय का विरोध
सरकार द्वारा विंध्य प्रदेश के विलय के प्रस्ताव का श्रीतिवारी ने पुरजोर विरोध किया था। 1948 में विंध्य प्रदेश का निर्माण हुआ था लेकिन 1949 में विंध्य के विलय का प्रस्ताव किया गया लेकिन समाजवादियों के उग्र आंदोलन के कारण विंध्य के विलय का मसौदा स्थगित हो गया था। सरदार पटेल विलय की नीति पर अडिग थे जिससे मसौदे पर हस्ताक्षर कराने के लिए वीपी मेनन को रीवा भेजा गया जहां हस्ताक्षर करने के लिए अन्य राजा भी किले में आकर रुके थे।
सरकार द्वारा विंध्य प्रदेश के विलय के प्रस्ताव का श्रीतिवारी ने पुरजोर विरोध किया था। 1948 में विंध्य प्रदेश का निर्माण हुआ था लेकिन 1949 में विंध्य के विलय का प्रस्ताव किया गया लेकिन समाजवादियों के उग्र आंदोलन के कारण विंध्य के विलय का मसौदा स्थगित हो गया था। सरदार पटेल विलय की नीति पर अडिग थे जिससे मसौदे पर हस्ताक्षर कराने के लिए वीपी मेनन को रीवा भेजा गया जहां हस्ताक्षर करने के लिए अन्य राजा भी किले में आकर रुके थे।
ऐसे लड़ें पहला चुनाव
समाजवादी पार्टी से 1952 के प्रथम आम चुनाव में जब श्रीनिवास तिवारी को मनगवां विधान सभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया गया तब उनके सामने भारी आर्थिक संकट था और यह समस्या थी कि चुनाव कैसे लड़ा जाए? ऐसे में गांव के ही स्व. कामता प्रसाद तिवारी ने कहा चुनाव तो लडऩा ही है धन की व्यवस्था मैं करूंगा। उन्होंने अपने घर का सोना रीवा में 500 रुपए में गिरवी रखकर रकम श्रीतिवारी को चुनाव लडऩे के लिए सौंप दी। इसी धन राशि से चुनाव लड़ा गया और श्रीतिवारी को विजयश्री मिली। यहीं से उनके राजनीतिक जीवन का उद्भव प्रारंभ हुआ।
समाजवादी पार्टी से 1952 के प्रथम आम चुनाव में जब श्रीनिवास तिवारी को मनगवां विधान सभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया गया तब उनके सामने भारी आर्थिक संकट था और यह समस्या थी कि चुनाव कैसे लड़ा जाए? ऐसे में गांव के ही स्व. कामता प्रसाद तिवारी ने कहा चुनाव तो लडऩा ही है धन की व्यवस्था मैं करूंगा। उन्होंने अपने घर का सोना रीवा में 500 रुपए में गिरवी रखकर रकम श्रीतिवारी को चुनाव लडऩे के लिए सौंप दी। इसी धन राशि से चुनाव लड़ा गया और श्रीतिवारी को विजयश्री मिली। यहीं से उनके राजनीतिक जीवन का उद्भव प्रारंभ हुआ।
विधायक के रूप में सक्रिय राजनीति
24 वर्ष की में 1952 में पहली बार विधायक चुने जाने के बाद की राजनीति में सक्रिय भूमिका प्रारंभ हुई। समाजवादी आन्दोलन से जुड़े होने के कारण तिवारी ने सर्वहारा वर्ग के उत्थान के लिए सड़क से लेकर विधानसभा तक अपनी बात रखी। उन्होंने विधानसभा में कहा था कि विंध्य प्रदेश का अकाल यदि किसी तरह से रोका जा सकता है तो केवल सिंचाई के साधनों को विकसित करने के बाद ही रोका जा सकता है।
24 वर्ष की में 1952 में पहली बार विधायक चुने जाने के बाद की राजनीति में सक्रिय भूमिका प्रारंभ हुई। समाजवादी आन्दोलन से जुड़े होने के कारण तिवारी ने सर्वहारा वर्ग के उत्थान के लिए सड़क से लेकर विधानसभा तक अपनी बात रखी। उन्होंने विधानसभा में कहा था कि विंध्य प्रदेश का अकाल यदि किसी तरह से रोका जा सकता है तो केवल सिंचाई के साधनों को विकसित करने के बाद ही रोका जा सकता है।
विंध्य में आज ये सभी सुविधाएं मौजूद वनों के संरक्षण, दूर संचार के विस्तार, गृह उद्योग, शिक्षा की गुणवत्ता, पर्याप्त बिजली, यातायात व्यवस्था, सौंदर्यीकरण, स्वच्छ जलापूर्ति, कर्मचारी हितों का ख्याल, दस्यु समस्या से निजात, पंचायती राज के विस्तार, सहकारी संस्थाओं की सक्रियता, विंध्य में विश्वविद्यालय की स्थापना, रेल सुविधा के लिए विधान सभा में लड़ाई लड़ी जिसका नतीजा है कि विंध्य में आज ये सभी सुविधाएं मौजूद हैं।
1985 में नहीं लड़ पाए चुनाव
1985 में टिकट नहीं मिलने के कारण श्रीतिवारी विधान सभा का चुनाव नहीं लड़ पाए थे, जिस पर उन्होंने अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि टिकट का न मिलना कांग्रेस के शीर्षस्थ नेतृत्व का कारण नहीं मध्यान्ह का अवरोध है।
1985 में टिकट नहीं मिलने के कारण श्रीतिवारी विधान सभा का चुनाव नहीं लड़ पाए थे, जिस पर उन्होंने अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि टिकट का न मिलना कांग्रेस के शीर्षस्थ नेतृत्व का कारण नहीं मध्यान्ह का अवरोध है।
1957 से 1972 तक का संघर्ष
1952 से 1957 तक श्रीतिवारी ने सदन में विपक्ष की भूमिका निभाई। विपक्ष के एक विधायक के रूप में उन्होने विंध्य के विकास के लिए विधान सभा में पूरी मुखरता के साथ अपनी बात रखी। इस दौरान उन्होने तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू के करिश्माई व्यक्तित्व को देखा और परखा था लेकिन 1957 से 1972 तक का काल श्रीतिवारी के जीवन में राजनीति के संक्रमण का काल था। इस अवधि वे लगातार तीन विधान सभा चुनाव में कांग्रेस के हाथ पराजित हुए।
1952 से 1957 तक श्रीतिवारी ने सदन में विपक्ष की भूमिका निभाई। विपक्ष के एक विधायक के रूप में उन्होने विंध्य के विकास के लिए विधान सभा में पूरी मुखरता के साथ अपनी बात रखी। इस दौरान उन्होने तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू के करिश्माई व्यक्तित्व को देखा और परखा था लेकिन 1957 से 1972 तक का काल श्रीतिवारी के जीवन में राजनीति के संक्रमण का काल था। इस अवधि वे लगातार तीन विधान सभा चुनाव में कांग्रेस के हाथ पराजित हुए।
29 नवंबर 1967 को भूमि विकास बैंक के अध्यक्ष निर्वाचित हुए और किसानों की समस्याओं को नजदीक से देखा। वहीं 31 दिसम्बर 1974 को श्रीतिवारी ने केन्द्रीय सहकारी बैंक के संचालक मंडल के अध्यक्ष का पदभार सम्भाला और उन्होंने सहकारिता को एक नई दिशा दी। साथ ही विवि कार्य परिषद् के सदस्य रहकर उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया।
सदन के अंदर बेवाक बोल
सदन के अंदर कई महत्वपूर्ण प्रस्तावों पर अपनी बेवाक राय रखकर उसे मनवाने में महारत हासिल कर चुके श्री तिवारी सदन के बाहर भी महत्वपूर्ण कार्यों में सतत् संलग्न रहे। जिनमें चन्दौली सम्मेलन, विकास सम्मेलन, युवक प्रशिक्षण शिविर, पूवज़् विधायक दल सम्मेलन, जन चेतना शिविरों के माध्यम से अपनी सक्रियता हमेशा बनाए रखी।
सदन के अंदर कई महत्वपूर्ण प्रस्तावों पर अपनी बेवाक राय रखकर उसे मनवाने में महारत हासिल कर चुके श्री तिवारी सदन के बाहर भी महत्वपूर्ण कार्यों में सतत् संलग्न रहे। जिनमें चन्दौली सम्मेलन, विकास सम्मेलन, युवक प्रशिक्षण शिविर, पूवज़् विधायक दल सम्मेलन, जन चेतना शिविरों के माध्यम से अपनी सक्रियता हमेशा बनाए रखी।