जब लोगों के सामने संकट गहराया तो कम्युनिटी सोल्जर्स सेवा के लिए रहे मौजूद
- भोजन के साथ मास्क, जूते-चप्पल लेकर हाइवे पर तैनात समाजसेवी

रीवा। कोरोना संक्रमण का दौर अचानक रीवा सहित पूरे देश में आया। लॉकडाउन के चलते कंपनियां बंद होने लगी तो प्रवासी श्रमिक अपने घरों की ओर निकल पड़े। शुरुआत में पैदल और साइकिलों से बड़ी संख्या में श्रमिक गुजरे, बाद में वाहनों और ट्रेनों के जरिए आए। रीवा से ही यूपी और बिहार की ओर जाने वाले हजारों की संख्या में श्रमिक गुजरते रहे हैं। ऐसे में रास्ते में उन्हें खाना-पानी के साथ ही मास्क, सेनेटाइजर और जूते-चप्पल भी वितरित किए गए।
नागरिक सेवा मंच नाम के सामाजिक संगठन के कार्यकर्ता करीब दो महीने से अधिक समय से लगातार हाइवे पर सेवाएं दे रहे हैं। ऐसे समय यह सेवा दी गई जब लोगों को उक्त सामग्रियों की सख्त जरूरत थी। शुरुआत में दुकानें बंद थी और श्रमिकों की जेब में रुपए भी नहीं थे, इसलिए उन्हें मदद की दरकार थी। रीवा विधायक राजेन्द्र शुक्ला ने सामाजिक संगठन के लोगों से अपील किया कि राह चलते प्रवासी श्रमिकों को राहत दी जाए। लगातार हाइवे पर सेवाएं चल रही हैं।
पहले की तुलना में अब प्रवासी श्रमिकों की आवाजाही भी घटी है लेकिन सेवादार लगातार जुटे हुए हैं। इस टीम में प्रमुख रूप से विवेक दुबे, कैलाश कोटवानी, संजय गुप्ता, शंकर सहानी, वेंकटेश पाण्डेय, कौशल गुप्ता, अनिल केशरी सहित करीब आधा सैकड़ा लोगों की टीम है जो मदद पहुंचाने का काम कर रही है। भैयालाल शुक्ला सेवा संस्थान और नागरिक मंच का यह संयुक्त अभियान लगातार चल रहा है।
- सेवाभाव देख लोगों ने की मदद
कोरोना संकट के बीच मदद के लिए हाथ नागरिक मंच ने बढ़ाया तो उसके साथ भी लोग खड़े नजर आए हैं। शहर के व्यापारियों एवं अन्य लोगों ने भी सहयोग कर सामग्री उपलब्ध कराई ताकि जरूरतमंदों को वितरित की जा सके। बताया जा रहा है कि अब भी लोगों ने कहा है कि जहां जरूरत होगी वह सेवा के लिए इसी तरह काम करते रहेंगे।
- सूचना मिलने पर भोजन भी पहुंचाते हैं
शहर के भीतर यदि भोजन की आवश्यकता होती है तो नागरिक मंच की टीम वहां पर व्यवस्था करती है। इसमें प्रशासन ने भी मदद की है, कलेक्ट्रेट के नजदीक सेंट्रल किचन में भोजन पकाया जाता है और वहां से लोगों तक पहुंचाने का काम कोरोना कम्युनिटी सोल्जर्स के माध्यम से किया जाता है। शहर के रतहरा मोहल्ले में तालाब की मेढ़ से हटाए गए अतिक्रमणकारियों के करीब पौने दो सौ की संख्या में परिवारों को नियमित भोजन पहुंचाने का काम भी किया जाता रहा है।
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