यह आदेश संयुक्त आयुक्त सहकारिता के साथ ही बैंक के प्रशासक और सीईओ के पास भी पहुंचा है। इसके पहले डभौरा ब्रांच में संड्रीज एकाउंट में किए गए 23 करोड़ रुपए से अधिक के घपले पर दो एफआईआर दर्ज है। जिसमें एक की जांच सीआईडी और दूसरे की डभौरा पुलिस कर रही है। दोनों मामलों में 67 आरोपियों को नामजद किया गया है। जिसमें बैंक के तीन तत्कालीन महाप्रबंधक भी शामिल हैं। डभौरा ब्रांच के सभी कर्मचारियों को निलंबित किया चुका है। मामले के आधा सैकड़ा से अधिक आरोपी जेल भी जा चुके हैं, कुछ जमानत पर बाहर हैं तो कुछ अब भी जेल में हैं। वहीं दर्जन भर से अधिक अभी फरार चल रहे हैं।
– यह है मामला सहकारी बैंक में कोर बैंकिंग सिस्टम छह मई 2013 से शुरू किया गया है। इसके पहले भी बैंक के कर्मचारियों ने व्यापक पैमाने पर अनियमितता की। संड्रीज एकाउंट में जमा राशि को अपने करीबियों के खाते में जमाकर रुपए निकलवाने का काम किया। एक अप्रेल 2011 से पांच मई 2013 के बीच हुए लेनदेन की जांच की गई है। जिसमें पांच करोड़ दस लाख इक्कीस हजार(51021848) रुपए की वित्तीय अनियमितता प्रकाश में आई है। जिसमें तत्कालीन महाप्रबंधक, मुख्य लेखा प्रभारी, सहायक एवं डभौरा ब्रांच के शाखा प्रबंधक, लिपिक, कैशियर एवं अमानतदारों को संयुक्त रूप से उत्तरदायी ठहराया गया है। ब्रांच में उस दौरान हीरालाल वर्मा शाखा प्रबंधक, विशेषर प्रसाद , अरुण प्रताप सिंह, रामकृष्ण मिश्रा प्रभारी शाखा प्रबंधक रहे हैं।
– चार्टेड एकाउंटेंट की भूमिका भी संदिग्ध सहाकारिता आयुक्त ने अपने आदेश में जांच रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा है कि वर्ष 2011-12 एवं 2012-13 वित्तीय वर्ष का अंकेक्षण करने वाले चार्टेड एकाउंटेंट की लापरवाही का भी उल्लेख है। इसलिए अब बैंक के अधिकारी, कर्मचारियों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज कराने के साथ ही चार्टेड एकाउंटेंट की भूमिका का परीक्षण कराने के लिए आवेदन पुलिस को दिया जाएगा।
– पूर्व की जांच में हीलाहवाली कर रही एजेंसियां पूर्व में डभौरा सहकारी बैंक की ब्रांच के संड्रीज एकाउंट से हुए घपले पर सीआईडी और डभौरा की पुलिस जांच कर रही हैं। शुरुआती दौर में आरोपियों को पकडऩे छापामारी हुई थी लेकिन बाद में राजनीतिक दबाव बढ़ा तो जांच में शिथिलता बढ़ती गई। जिन आरोपियों ने सरेंडर किया, उनके पास से जब्ती नहीं बनाई गई साथ ही पुलिस की ओर से फरार आरोपियों की तलाश में छापेमारी भी नहीं की गई। सीआईडी और डभौरा पुलिस की भूमिका संदिग्ध होने के चलते पूर्व में विधानसभा में मामला उठ चुका है, साथ ही कई शिकायतें शासन स्तर पर हुई हैं।
बता दें कि तत्कालीन डभौरा के एसडीओपी सुजीत बरकड़े और पनवार थाने के प्रभारी रहे उपनिरीक्षक अरुण सिंह ने जब्त 72 लाख रुपए और सोने के जेबर हड़पने का प्रयास किया था, जिस पर दोनों को निलंबित किया गया था। इसके अलावा भी विभाग के अन्य की भूमिका संदिग्ध थी, पुलिस ने भी विभाग की किरकिरी होने से बचाने के लिए जांच में शिथिलता बरती।