जिले में एक माह तक दस्तक अभियान के दौरान 2546 से अधिक गांवों में पांच साल के 2.50 लाख से ज्यादा बच्चों के स्वास्थ्य परीक्षण का काम पूरा हो गया। सर्वे के दौरान स्वास्थ्य और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता व एएनएम संयुक्तरूप से घर-घर पांच साल तक के शिशुओ व बच्चों के सेहत का परीक्षण किया। सर्वे के दौरान दलित, आदिवासी बस्तियों में ज्यादातर बच्चे तरह-तरह की बीमरियों से पीडि़त मिले।
जिला प्रशासन को भेजी गई सर्वे रिपोर्ट में बताया गया है कि अभियान के दौरान 8338 बच्चे डायरिया से पीडि़त पाए गए हैं। जिन्हें उपचार के लिए भर्ती कराया गया है। जबकि खून की कमी से 2033 बच्चे पीडि़त मिले हैं। खून की कमी से जूझ रहे बच्चे कुपोषण की जंग लड़ रहे हैं। अतिकुपोषित बच्चों को पोषण पुनर्वास केन्द्र में भर्ती कराया गया है जबकि सैकड़ों बच्चों को जिला चिकित्सालय और मेडिकल कॉलेज में उपचार कराने का दावा किया जा रहा है।
दस्तक अभियान के दौरान आए सर्वे रिपोर्ट से सहज ही अंदाजा लगा सकता हैं कि गरीबों के लिए सरकार की ओर से चल रही कल्याणकारी योजनाएं कितना कारगर साबित हो रही हैं। सामाजिक कार्यकर्ता रामनरेश यादव कहते हैं कि सरकार की कल्याणीकारी योजनाओं का क्रियान्यन प्रभावी हो तो दलित, आदिवासी परिवार के बच्चों की विकृति जैसी बीमारियां नहीं मिलेंगी। बड़ी संख्या में तरह-तरह की बीमारियों से बच्चे चिह्ति किए गए हैं। स्वास्थ्य विभाग का यह कागजी आकड़ा है। जबकि हकीकत में गरीब बस्तियों की स्थित भयावह है। विभागीय अधिकारियों की अनदेखी के चलते कुपोषित बच्चों की संख्या बढ़ रही है। अब तक दो हजार से ज्यादा बच्चे चिह्ति किए गए हैं।
दस्तक अभियान के दौरान की सीमावर्ती और पहाड़ी क्षेत्र के आस-पापस गरीब बस्तियों में जन्मजात विकृतियों से ग्रस्त 249 बच्चों का चिन्हांकन किया गया है।