इतने कम समय में रीवा लोकसभा क्षेत्र में पहुंच पाना कठिन, पर घर-घर जाकर मतदाताओं को रिझाने का किया दावा
dreaming to cross electoral line with the legacy of Srinivas Tiwari
रीवा. पिछले चार दशक से रीवा जिला या यूं कहें कि विंध्य की राजनीति का केन्द्र अमहिया रहा है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। जब श्रीनिवास तिवारी पहली बार 1952 में सोशलिस्ट पार्टी से चुनाव जीतकर रीवा और फिर भोपाल पहुंचे तभी से रीवा की राजनीतिक सियासत की बुनियाद अमहिया मोहल्ले में हो गई थी।
इसके पहले से काफी समय बाद तक यहां कि सियासत रीवा किले तक ही सीमित थी। लेकिन श्रीनिवास तिवारी जब 1993 में पहली बार विधानसभा अध्यक्ष बने तो उन्होंने इस पद की राजनीतिक परिभाषा ही नई गढ़ी और प्रदेश की राजनीति रीवा के अमहिया मोहल्ले से संचालित होने लगी। यहां तक कि तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी दादा का आशीर्वाद लेने अमहिया आने लगे और पूरी सरकार अमहिया से चलने लगी। श्रीनिवास तिवारी का मप्र की राजनीति में खासा दबदबा तो था ही साथ ही रीवा के आवाम में भी उनकी खासी पकड़ थी। कार्यकर्ता उनके इशारे पर कुछ भी करने को तैयार रहते थे।
patrika IMAGE CREDIT: patrika यही कारण है कि अब जब पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी और पूर्व सांसद सुंदरलाल तिवारी नहीं रहे तो उनके नाती सिद्धार्थ तिवारी भी बाबा की राजनीतिक विरासत के सहारे आसन्न लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की टिकट से चुनावी वैतरणी पार करने का सपना देख रहे हैं। सिद्धार्थ बताते हैं कि उनके बाबा श्रीनिवास तिवारी कई बार लगातार विधायक और फिर विधानसभा के अध्यक्ष रहते हुए रीवा की जनता की बहुत सेवा की है। साथ ही उनके पिता सुंदरलाल तिवारी भी विधायक व सांसद रहकर जिले की समस्याओं को संसद तक में उठाने के साथ उनके निराकरण का भरकस प्रयास किया है। जिसे रीवा की जनता जानती है। यही कारण है कि कांग्रेस ने भी तिवारी परिवार पर ही एक बार फिर दांव लगाया है। सिद्धार्थ कहते हैं कि उनके परिवार ने हमेशा जनता की सेवा की है, जिसे लेकर वे जनता के बीच जा रहे हैं। समय भले ही कम है लेकिन वे घर-घर जाकर लोगों का आशीर्वाद अवश्य प्राप्त करेंगे।
अमहिया से चलती थी राजनीति रीवा की राजनीति में दो परिवार ही ऐसे रहे हैं जिन्हें लंबे समय तक संगठन और जनता ने अवसर दिया है। रीवा किला के बाद श्रीनिवास तिवारी का ही परिवार ऐसा रहा है जिसे कई बार चुनाव लडऩे का अवसर मिला है और जनता ने जीत भी दिलाई है। लोकसभा चुनाव में यह सातवां अवसर होगा जब तिवारी परिवार को टिकट दी गई है। इसके पहले 1991 में श्रीनिवास तिवारी स्वयं मैदान में थे तो इसके बाद 1996 से 2014 तक जितने भी लोकसभा चुनाव हुए उसमें 1998 को छोड़कर सबमें कांग्रेस की ओर से सुंदरलाल तिवारी प्रत्याशी रहे। इसके अलावा तीन दशक से इसी परिवार पर कांग्रेस का भरोसा रहा है। अब 2019 के चुनाव में तीसरी पीढ़ी के सिद्धार्थ तिवारी को अवसर मिला है। 1999 के चुनाव में कांग्रेस की टिकट पर सुंदरलाल तिवारी को जीत भी मिली थी। इस परिवार के अलावा रीवा किला ही ऐसा रहा है जहां की तीन पीढिय़ां लगातार राजनीति में सक्रिय रही हैं।
कार्यकर्ताओं का जमघट और जिंदाबाद के नारे कांग्रेस पार्टी से लोकसभा के लिए प्रत्याशी घोषित किए जाने के बाद सिद्धार्थ तिवारी ने बाबा श्रीनिवास तिवारी और पिता सुंदरलाल तिवारी के छायाचित्रों पर माल्यार्पण कर आशीर्वाद लिया। सिद्धार्थ ने कहा कि जनता की सेवा जिस तरह से परिवार की दो पीढिय़ों ने किया है, उसे आगे बढ़ाने का काम वे करेंगे। सुंदरलाल तिवारी के निधन के बाद एक बार फिर से अमहिया में कांग्रेस कार्यकर्ताओं का पहले की तरह जमघट शुरू हो गया है और जिंदाबाद के नारे भी सुनाई देने लगे हैं।