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क्रशर प्लांटों के धूल से बीमार हो रहा गांव, बढ़ रहे दमा व टीबी के मरीज

locationरीवाPublished: Apr 05, 2021 09:39:38 am

Submitted by:

Rajesh Patel

जिले में अधिकतर क्रशर प्लांट बिना बाउंड्री व कैप लगाए नियम-कायदे की अनदेखी कर संचालित हो रहे, पानी का छिडक़ाव तक नहीं कर रहे संचालक

Dust of crusher plants, patients of asthma growing

Dust of crusher plants, patients of asthma growing

रीवा. आला अफसरों की अनदेखी के चलते हुजूर तहसील के बनकुंइया और भोलगढ़ एरिया में नियम-कायदे को दरकिनार कर क्रशर प्लांट संचालित हो रहे हैं। ज्यादातर प्लांटों में बाउंड्रीवाल और कैप नहीं है। जिससे चारोओर धूल का गुबार उड़ रहा है। प्लांटों के आस-पास एरिया के गांवों में दमा के मरीज बढ़ रहे हैं। इतना ही नहीं प्रदूषण इस कदर है कि घर के बाहर रखी सामग्री पर धूल की मोटी लेयर जम जाती है। इस क्षेत्र में टीबी आदि के भी मरीज बढ़ रहे हैं।
हुजूर तहसील क्षेत्र में सैकड़ो क्रशर प्लांट संचालित
हुजूर तहसील के भोलगढ़ में शिवमहिमा सहित दर्जनभर क्रशर प्लांट संचालित हैं। कुछ प्लांटों को छोड़ दे तो ज्यादातर प्लांट नियम-कायदे की अनदेखी कर संचालित हो रहे हैं। भोलगढ़ गांव के दक्षिणी छोर में गांव के पड़ोस से लेकर एक किमी एरिया में आधा दर्जन से अधिक क्रशर प्लांट संचालित है। इसके अलावा भोलगढ़ के पूर्वी व दक्षिणी छोर में एक दर्जन क्रशर प्लांट गरज रहे हैं। बेला मोड़ से भोलगढ़ गांव तक पहुंचने में एक दर्जन क्रशर प्लांट संचालित हैं। गांव के पश्चिमी छोर में आधा दर्जन क्रशर प्लांटों से धूल का गुबार उड़ रहा है।
धूल के गुबार से सांसे फूलने लगी
गांव के ही शिवराम, सुमन दाहिया, बुजुर्ग केशरी सिंह, शंकुलता आदि दमा के मरीज हो गए हैं। बुजुर्ग शकुंतला ने बताया कि इसकी सूचना ग्राम सरपंच से लेकर कलेक्टर कार्यालय में कई बार दी गई। कोई सुनने वाला नहीं है। दस साल के भीतर आस-पास के कई गांवों में टीबी, दमा के मरीज बढ़ रहे हैं। धूल का गुबार से जिंदगी की सांसे फूलने लगी हैं। धूल क्षेत्रीय लोगों के फेफड़े को जाम कर रहा है। टीबी के मरीजों की संख्या भी बढऩे लगी है। भोलगढ़ गांव के आधा दर्जन लोग टीबी का इलाज करा रहे हैं। कमोवेश यही हाल आस-पास के ग्रामीणों की है।
धूल से बढ़ रहे ये रोग
गिट्टी के धूल से एलर्जी, छींक, नाक बहने या बंद होने, आंख में खुजली, सांस में घरघराहट, खांसी,गले में खरास आदि जैसे दूसरे लक्षण हो सकते हैं। धूल और घुन की एलर्जी से दमा के लक्षण भी शुरू हो जाते हैं।
धूल से ग्रामीणों का दम भरता है
शहर में मात्र 10 से 15 किमी दूर स्थित भोलगढ़ और बनकुंइया एरिया में क्रशर प्लांट से आसमान की ओर धूल का गुबार उड़ते दिखाई देता है। जिससे आस-पास के गांवों में रखी चीजों पर धूल की लेयर जमी जाती है। गांव के त्रिभुवन कहते हैं कि भोलगढ़ गांव से बेला चौराहे तक पहुंचने तक छींक, आंख में खुजली के साथ दम भरने लगता है। इसके अलावा यह धूल हवा के साथ ग्रामीणों का स्वास्थ्य बिगाडऩे का भी काम कर रही है। नियम-कायदे की अनदेखी से आस-पास एरिया का आवोहवा खराब हो रही है। यहां के लोगों के स्वास्थ्य पर सीधा असर कर रही है।
पीएम 10
धूल के कण का मानक 100 माइक्राग्रोम प्रति घनमीटर, जो कई क्षेत्रों में 200 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर है।
एसओ-2
सल्फर डाई ऑक्साइड और एनओएक्स नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड गैस की मात्रा 80 माईक्रोग्राम प्रति घनमीटर है। जो कि कई क्षेत्रों में 100 से ज्यादा हो गया है।
फेफड़ों में जम जाती है धूल
डॉ कुंवर सिंह कहते हैं कि धूल और धुआं सबसे ज्यादा फेफड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं। यह फेफड़ों में जम जाते हैं, जिससे दमघोंटू रोग होते हंै। दमा सहित अन्य रोग भी इसी से होते है। लोगों को चाहिए कि धूल से बचने के लिए मॉस्क आदि का उपयोग करें।
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rajesh.patel IMAGE CREDIT: patrika

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