बीमार उद्योगों को संजीवनी मिले तो निर्मित हो रोजगार
जिले में सिक श्रेणी में 35 फीसदी औद्योगिक इकाइयां, जिले में रोजगार पोर्टल पर आठ बृहद कंपनियों समेत 300 सूक्ष्म, लघु एवं मध्याम उद्योगों का हो रहा संचालन, फंड और बढ़ती कीमत के साथ तकनीकि

रीवा. औद्योगिक क्षेत्र चोरहटा में अव्यवस्था और फंड की कमी के चलते दर्जनों की संख्या में सूक्ष्य, लघु एवं मध्यम उद्योगों की यूनिटें सिक की श्रेणी में आ गई हैं। फंड की कमी से जूझ रहे बीमार उद्योगों को पुनर्जीवन योजना के तहत संजीवनी मिले तो रोजगार के अवसर निर्मित होंगे। औद्योगिक संगठनों के मुताबितक फंड की कमी और बढ़ती लागत व तकनीकि अपग्रेडेशनके अभाव में बीमार हो चुकी हैं। यदि बीमार उद्योग चालू हो जाएं तो रोजगार के लिए दस हजार जरूरतमंदों की राह आसान होने की उम्मीद है।
रीवा में आठ बृहद व 300 एमएसएमी
जिले में आठ बृहद और लगभग 300 सूक्ष्म लघु एवं माध्यम उद्योग (एमएसएमई) उद्योग स्थापित हैं। औद्योगिक संगठनों के मुताबिक लगभग चालीस फीसदी उद्योग सिक यानी बीमार उद्योग की श्रेणी में आ गए हैं। उद्योगों की चालू की गई इकाइयां धीरे-धीरे शिथिल होने लगी हैं। ज्यादतर औद्योगिक यूनिटें बीमार की श्रेणी में आ गई हैं। पचास फीसदी इकाइयां चालू होने के बाद भी उत्पादन क्षमता नहीं बढ़ा पा रहीं हैं। जिला व्यापार एवं उद्योग केन्द्र के द्वारा बिछिया में विकसित की गई औद्योगिक क्षेत्र में कई फैक्ट्रियां बीमार हो गई हैं। सरकार ऐसे बीमार उद्योगों को चालू करने के लिए पुनर्जीवन योजना के तहत आर्थिक पैकेज देकर सहयोग करे तो रोजगार के अवसर शुरू हो जाएंगे। चोरहटा क्षेत्र में पर्ल इंडस्ट्री समेत दर्जनों की संख्या में औद्योगिक इकाइयां सिक श्रेणी में आकर बंद हो गई हैं।
सिक उद्योगों को पुनर्जीवन का सहारा
औद्योगिक संगठनों के मुताबितक फंड की कमी और बढ़ती लागत व तकनीकि अपग्रेडेशनके अभाव में उद्योग बीमार हो गए हैं। जिससे इकाइयो का उत्पादन ठप हो गया है। उद्योग संगठनों के अनुसार सरकार पुनर्जीवन योजना के तहत आर्थिक सहयोग और ऋण में सुविधाएं दिलाए तो सिक कंपनियों को संजीवनी मिल सकती है। ऐसे कंपनियों के चालू होने से स्थानय स्तर पर लोगों को रोजगार के अवसर मिलेगा।
उद्योगों को ऐसे खड़े होने की उम्मीद
औद्योगिक संठगठन के सदस्यों के मुताबिक नियमों के तहत यदि लघु उद्योगों को एक करोड़ रुपए तक का कर्ज बिना कोलेटरल सिक्योरिटी (संपत्ति गिरवी रखकर ऋण देना) के दिया जाना चाहिए। लेकिन, यहां पर ऐसा नहीं हो रहा है। यदि इस नियम का पालन हो तो बीमार उद्योगों को संजीवनी मिलने की उम्मीद है। इस वक्त लघु उद्योगों का उत्पादन बढ़ाने के लिए पालन हो तो रोजगार की उम्मीद जगेगी।
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