12 जुलाई से लेकर कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी 8 नवंबर तक भगवान का शयन काल रहेगा। इस 4 माह की अवधि में चातुर्मास आदि व्रत नियमों का पालन करते हुए नित्य विष्णु स्त्रोत सहित विष्णु उपासना का विधान माना गया है। एकादशी तिथि उदय कालीन होकर संपूर्ण दिन-रात संचरण करेगी। गुरु का नक्षत्र विशाखा का संचरण एकादशी के पर्व को परम पुण्य दाई बना रहा है।
ज्योतिर्विद राजेश साहनी ने बताया कि हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देवशयनी एकादशी कहा जाता है। कहीं-कहीं इस तिथि को ‘पद्मनाभा’ भी कहते हैं।
ज्योतिष की गणना के अनुसार सूर्य के मिथुन राशि में आने पर ये महत्वपूर्ण एकादशी आती है। इसी दिन से भगवान हरि विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं और फिर लगभग चार माह बाद तुला राशि में सूर्य के जाने पर उन्हें उठाया जाता है। उस दिन को देवोत्थानी एकादशी कहा जाता है। इस बीच के अंतराल को ही चातुर्मास कहा गया है।
एकादशी को ऐसे करें पूजन – अर्चन
ज्योतिर्विद के अनुसार देवशयनी एकादशी के दिन प्रात: स्नान कर पवित्र गंगा जल से घर वेष्टित करें। घर के पूजन स्थल अथवा किसी भी पवित्र स्थल पर प्रभु विष्णु की सोने, चांदी, तांबे अथवा पीतल की मूर्ति की स्थापना करें। उसका षोड्शोपचार सहित पूजन करें। भगवान विष्णु के विग्रह को पंचामृत से स्नान कराएं। धूप-दीप आदि से विधिवत पूजन करें। भगवान विष्णु को पीतांबर आदि से विभूषित करें। एकादशी व्रत कथा का श्रवण करें।
विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। आरती कर प्रसाद वितरण करें। अंत में रेश्मी पीत वस्त्रों से ढके गद्दे – तकिए वाली शैया पर विष्णु को शयन कराना चाहिए। शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार भगवान का सोना रात्रि में करवट बदलना संधि काल में तथा जागना दिन में होता है।
एक विशेष नियमानुसार शयन अनुराधा के प्रथम चरण में, परिवर्तन श्रवण के मध्य चरण में, तथा उत्थान रेवती के अंतिम चरण में माना गया है। यही कारण है कि आषाढ़ भाद्रपद और कार्तिक में एकादशी व्रत की पारणा इन नक्षत्रों के व्यतीत होने के पश्चात की जाती है।
आज से शुरू हो रहा चातुर्मास
देवशयनी एकादशी के दिन शुक्रवार से चातुर्मास का भी प्रारंभ हो जाएगा। जो देवप्रबोधिनी एकादशी तक 4 माह का कालखंड रहेगा। ज्योतिषियों के मुताबिक चातुर्मास ईश वंदना का विशेष पर्व है। यह चार माह में साधना एवं उपासना होगी। संत संकल्प लेकर और एक स्थान पर रुक-कर विशिष्ट साधना करेंगे। प्राचीन काल में साधु संत एक स्थान पर एकत्रित होकर इस समयावधि का लाभ उठाते हुए साधना उपासना करते थे।