विंध्य में सरकार जलपुर से बनारस उद्योग कॉरीडोर को बढ़ावा देने की कवायद हवाहवाई है। बीते वित्तीय वर्ष 2018-19 में एक साल पहले सरकार ने प्रधानमंत्री रोजगार सृजन से लेकर मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार और मुख्यमंत्री कृषक उद्यमी योजनाएं चलाकर छोटे-छोटो उद्योग स्थापित करने के लिए लक्ष्य निर्धारित किया है। रीवा और शहडोल संभाग के सात जिले में 1181 युवाओं को किसानों के बेटों को कृषि उद्यमी बनाने के लिए लक्ष्य निर्धारित किया है। दोनों संभाग में युवाओं ने लाखो रुपए खर्च कर संबंधित जिले में स्थित जिला व्यापार एवं उद्योग केन्द्रों पर मुख्यमंत्री कृषि उद्यमी योजना के तहत दो हजार से अधिक आवेदन जमा किए गए।
जिसमें महज 137 उद्यमियों के आवेदन स्वीकृत कर बैंकों को प्रेरित किए गए। जिसमें 31 आवेदनों को ऋण स्वीकृत किए गए। वित्तीय वर्ष 2018-19 के बीतने के बाद भी डेढ़ माह अधिक समय बीत गया। इसके बाद भी महज दो फीसदी ही आवेदकों को कृषि उद्यमी बना सके। इसकी मॉनीटरिंग के लिए रीवा और शहडोल परिक्षेत्रीय कार्यालय में सहायक संचालक उद्योग रीवा को दिया गया है। रीवा कार्यालय तीन साल से जलबपुर के सहायक संचालक को प्रभारी बनाया गया है। रीवा में तत्कालीन सहायक संचालक सेवानिवृत्त हो गए थे। तब से जबलपुर के सहायक संचालक आरसी कुरील देख रहे हैं। आरसी कुरील रीवा और शहडोल संभाग की मॉनीटरिंग जबलपुर से कर रहे हैं।
यही कारण है कि दोनों संभाग में मुख्यमंत्री कृषि उद्यमी योजना के तहत 98 फीसदी युवाओं को रोजगार नहीं मिल सके। उदाहरण के तौर पर रीवा में सज्जीजान का बेटा फूड प्रोसेसिंग के लिए आवेदन किया था, लेकिन महाप्रबंधक की अनदेखी के चलते मुख्यमंत्री कृषि उद्यमी योजना का लाभ नहीं मिल सका। इसी तरह खैरा निवासी पन्ना सिंह का बेटा प्याय के प्रोडक्ट तैयार करने के लिए आवेदन किया था। करीब एक करोड़ रुपए की मशीनरी लगाने के लिए आवेदन किया था। छह माह तक स्वीकृत नहीं होने पर वह परेशान होकर आवेदन का पीछा छोड़ दिया। ये कहानी अकेले इन किसान के बेटों की नहीं बल्कि सैकड़ो की संख्या में युवा आवेदन लेकर भटक रहे हैं।