हर दिन अस्पताल पहुंच रहे लोग
हासिल जानकारी के अनुसार जिले में हर साल सर्पदंश से दर्जनों लोगों की मौत होती है। इस वर्ष दो माह में ही आधा सैकड़ा से अधिक लोग काल के गाल में समा चुके है और कई तो अभी भी अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष करते है। बरसात के मौसम में सांपों के बिलों में पानी भर जाता है। सूखी जगह की तलाश में वे लोगों के घरों को ठिकाना बनाते है। अक्सर वे कपड़ों के अंदर फिर कबाड़ के बीच में छिपकर बैठ जाते है। घर में अक्सर लोग इनके हमले का शिकार बन जाते है। संजय गांधी अस्पताल में प्रतिदिन दर्जन भर से अधिक लोग जहरीले कीड़ों के काटने पर भर्ती हो रहे है। इनमें कुछ खुश नसीब ही होते है जिनकी जान बच पाती है लेकिन ज्यादातर लोगों की मौत हो जाती है।
हासिल जानकारी के अनुसार जिले में हर साल सर्पदंश से दर्जनों लोगों की मौत होती है। इस वर्ष दो माह में ही आधा सैकड़ा से अधिक लोग काल के गाल में समा चुके है और कई तो अभी भी अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष करते है। बरसात के मौसम में सांपों के बिलों में पानी भर जाता है। सूखी जगह की तलाश में वे लोगों के घरों को ठिकाना बनाते है। अक्सर वे कपड़ों के अंदर फिर कबाड़ के बीच में छिपकर बैठ जाते है। घर में अक्सर लोग इनके हमले का शिकार बन जाते है। संजय गांधी अस्पताल में प्रतिदिन दर्जन भर से अधिक लोग जहरीले कीड़ों के काटने पर भर्ती हो रहे है। इनमें कुछ खुश नसीब ही होते है जिनकी जान बच पाती है लेकिन ज्यादातर लोगों की मौत हो जाती है।
स्थानीय स्तर पर नहीं मिलता उपचार
लोगों की मौत के पीछे बहुत बड़ा कारण यह भी है कि लोगों को स्थानीय स्तर पर उपचार नहीं मिल पाता है। सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में इलाज की व्यवस्था नहीं है जिससे उनको संजय गांधी अस्पताल के लिए रेफर किया जाता है और यहां आने तक अधिकांश लोग दमतोड़ देते है।
लोगों की मौत के पीछे बहुत बड़ा कारण यह भी है कि लोगों को स्थानीय स्तर पर उपचार नहीं मिल पाता है। सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में इलाज की व्यवस्था नहीं है जिससे उनको संजय गांधी अस्पताल के लिए रेफर किया जाता है और यहां आने तक अधिकांश लोग दमतोड़ देते है।
झाडफ़ूंक के चक्कर में बिगड़ती है पीडि़तों की हालत, नहीं मिल पाता समय पर उपचार
सर्पदंश में लोगों की झाडफ़ूंक के प्रति भी आस्था कम नहीं है। सर्पदंश से पीडि़त व्यक्ति को तत्काल उपचार करवाने के बजाय लोग झाडफ़ूंक करवाने में लग जाते है। झाडफ़ंूक के चक्कर में पीडि़त को समय पर उपचार नहीं मिल पाता है। जब उसी हालत खराब हो जाती है तब परिजन उपचार के लिए अस्पताल लेकर आते है। हालांकि तब तक उसकी जान बचा पाना मुश्किल हो जाता है। विज्ञान भले ही झाडफ़ूंक को मान्यता न देता हो लेेकिन लोगों की इसके प्रति आस्था कम नहीं है।
सर्पदंश में लोगों की झाडफ़ूंक के प्रति भी आस्था कम नहीं है। सर्पदंश से पीडि़त व्यक्ति को तत्काल उपचार करवाने के बजाय लोग झाडफ़ूंक करवाने में लग जाते है। झाडफ़ंूक के चक्कर में पीडि़त को समय पर उपचार नहीं मिल पाता है। जब उसी हालत खराब हो जाती है तब परिजन उपचार के लिए अस्पताल लेकर आते है। हालांकि तब तक उसकी जान बचा पाना मुश्किल हो जाता है। विज्ञान भले ही झाडफ़ूंक को मान्यता न देता हो लेेकिन लोगों की इसके प्रति आस्था कम नहीं है।
जहर के बजाय हृदय गति रुकने से होती है मौत
वन विभाग के अधिकारी चिकित्सकों का भी दावा है कि सर्पदंश से पीडि़त व्यक्ति की उसके जहर से मौत नहीं होती है बल्कि हृदय गति रुकने से मौत हो जाती है। सर्पदंश का शिकार व्यक्ति इतना अधिक घबरा जाता है कि उसकी हृदय गति रुकने से मौत हो जाती है। यदि सर्पदंश से पीडि़त व्यक्ति को हिम्मत बंधाई जाये तो उसकी जान बचाई जा सकती है।
वन विभाग के अधिकारी चिकित्सकों का भी दावा है कि सर्पदंश से पीडि़त व्यक्ति की उसके जहर से मौत नहीं होती है बल्कि हृदय गति रुकने से मौत हो जाती है। सर्पदंश का शिकार व्यक्ति इतना अधिक घबरा जाता है कि उसकी हृदय गति रुकने से मौत हो जाती है। यदि सर्पदंश से पीडि़त व्यक्ति को हिम्मत बंधाई जाये तो उसकी जान बचाई जा सकती है।
तीन फीसदी सांप ही होते है जहरीले
वन विभाग के अधिकारियों की माने तो महज तीन से फीसदी सांप से ही जहरीले होते है। अधिकांश सांपों में जहर नहीं पाया जाता है लेकिन जानकारी के अभाव में लोग भयभीत हो जाते है और हृदय गति रुकने से मौत हो जाती है। विंध्य क्षेत्र में कोबरा, असडिय़ा आदि जहरीले सांपों की प्रजाति पाई जाती है जबकि शेष सांपों में जहर नहीं होता है।
वन विभाग के अधिकारियों की माने तो महज तीन से फीसदी सांप से ही जहरीले होते है। अधिकांश सांपों में जहर नहीं पाया जाता है लेकिन जानकारी के अभाव में लोग भयभीत हो जाते है और हृदय गति रुकने से मौत हो जाती है। विंध्य क्षेत्र में कोबरा, असडिय़ा आदि जहरीले सांपों की प्रजाति पाई जाती है जबकि शेष सांपों में जहर नहीं होता है।
एक्सपर्ड व्यू- डा. यत्नेश त्रिपाठी, सीएमओ एसजीएमएच
1- सांप के काटने पर चीरा लगाने या उसके ऊपर बांधने से कोई असर नहीं होता है। यदि बात रिसर्च में साबित हो चुकी है।
2- सांप काटने के स्थान को ज्यादा हिलाए नहीं बल्कि उसको खपच्ची से बांधकर स्थिर कर दे। चोट को साफ कपड़े से हल्ला ढक दे।
3- मरीज को तुरंत चिकित्सकीय परामर्श हेतु अस्पताल लेकर आए।
4- झाडफ़ूंक के चलते मरीज की हालत बिगड़ जाती है और इससे मरीज की हालत ज्यादा बिगड़ जाती है।
5- बरसात के मौसम में सावधानी बरतें और रात के समय बिना उचित प्रकाश के कहीं भी न निकले। यहां तक कि जमीन में सोने से बचे।
1- सांप के काटने पर चीरा लगाने या उसके ऊपर बांधने से कोई असर नहीं होता है। यदि बात रिसर्च में साबित हो चुकी है।
2- सांप काटने के स्थान को ज्यादा हिलाए नहीं बल्कि उसको खपच्ची से बांधकर स्थिर कर दे। चोट को साफ कपड़े से हल्ला ढक दे।
3- मरीज को तुरंत चिकित्सकीय परामर्श हेतु अस्पताल लेकर आए।
4- झाडफ़ूंक के चलते मरीज की हालत बिगड़ जाती है और इससे मरीज की हालत ज्यादा बिगड़ जाती है।
5- बरसात के मौसम में सावधानी बरतें और रात के समय बिना उचित प्रकाश के कहीं भी न निकले। यहां तक कि जमीन में सोने से बचे।