यहां पर राज्य संरक्षित स्मारक का बोर्ड भी लगा है, जहां बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराकर इसे पर्यटकों और शोधार्थियों के लिए आकर्षक बनाया जा सकता है। सैकड़ों वर्ष पुराने भवन या दूसरे स्ट्रक्चर अब उन्हीं शहरों में ही कम संख्या में बचे हैं जहां पर रियासतों का कार्यकाल रहा है।
रीवा में रियासत होने की वजह से कई ऐसी स्थापत्य कलाएं हैं जो हमारी विरासत की बड़ी देन हैं। रीवा शहर के गुढ़ चौराहे के पास तत्कालीन महाराजा भाव सिंह ने महारानी अजब कुंवरी के लिए बावड़ीयुक्त एक कोठी का निर्माण कराया था। यह बावड़ी लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह के स्नानागार के आलावा राजस्थान एवं मालवा की स्थापत्य शैलियों से प्रभावित है। इसका निर्माण वर्ष 1664-70 ईसवी के मध्य का बताया जाता है। कहा जाता है कि महारानी अजब कुंवरी की जीवनशैली उनदिनों अलग तरह की थी। उनके कहने पर ही जिले में कई तालाब और मंदिरों के साथ बगीचे विकसित कराए गए थे।
– स्थापत्य कलाओं का संगम है
रानी अजब कुंवरी की बावड़ी का निर्माण तो उनदिनों राजा-रानी के जलक्रीड़ा के हिसाब से हुआ था। इसके निर्माण में देश के कई हिस्सों से कारीगरों को बुलाया गया था जिन्होंने कई स्थापत्य शैलियों को लेकर इसका निर्माण कराया। इसमें लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह के स्नानागार से जुड़ा स्वरूप शामिल किया गया है तो वहीं राजस्थान एवं मालवा की स्थापित शैलियों से प्रभावित है। प्रथम तल में एक वर्गाकार छोटा कक्ष है जिसमें चारों ओर खिड़कियां हैं। एक की नोक तुर्क शैली की है और इसे जलकीड़ा देखने के लिए बनाया गया था। इसमें रियासत के महराजा और महारानी बैठते थे। रानी अजब कुंवरी की बावड़ी एवं कोठी रीवा के स्थापत्य कला आदि का संगम है। यह बातानुकूलित है, गर्मी के दिनों में भी यहां पर ठंडक बनी रहती है।
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कोठी का हिस्सा हुआ खंडहर
बावड़ी के साथ ही एक कोठी भी बनाई गई थी। यह इस हिसाब से बनाई गई थी कि कभी दूसरे राज्य की महारानी या अन्य विशेष अतिथि को यहां पर लाया जाए तो सारी सुविधाएं उपलब्ध कराई जा सकें। कहा जाता है कि इस बावड़ी युक्त कोठी में कई बड़े कक्ष थे, अब कोठी का कुछ हिस्सा छोड़कर पूरा गिर चुका है। कुछ का तो मलबा भी गायब हो गया है।
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नशेडिय़ों का लगता है जमघट
रानी अजब कुंवरी की बावड़ी के संरक्षण के नाम पर पुरातत्व विभाग का एक बोर्ड लगा है। इसके अलावा पूरी तरह से इस परिसर को लावारिश छोड़ा गया है। जिसके चलते नशेडिय़ों के लिए यह महफूज स्थान हो गया है। बावड़ी परिसर और कोठी के बचे हिस्से में शराब की बोतलें फेंकी जा रही हैं।
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रीवा में रानी की बावड़ी को संरक्षित करने को लेकर पूर्व में प्रस्ताव तैयार किया गया था। कुछ तकनीकी कारणों से उस पर कार्य रुका हुआ है। फिर से प्रयास करेंगे कि परिसर को संरक्षित करने के लिए बड़ी कार्ययोजना के साथ कार्य यहां पर किए जाएं।
केएल डाभी, उप संचालक पुरातत्व