रीवा जिले के ग्राम तेलिहा महात्मान में भागवत कथा का वाचन करते हुए आचार्य ने कहा कि श्रीमद् भागवत के अंतिम श्लोक का भी यदि किसी व्यक्ति ने श्रवण कर लिया तो भी उसे संपूर्ण भागवत कथा सुनने का फल प्राप्त होता है। प्रत्येक प्राणी का उद्धार भागवत कथा सुनने मात्र से हो जाता है। सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि सुदामा परम सद गृहस्थ संत थे जिन्हें एकमात्र परमात्मा का ही सहारा था। बड़े से बड़ा प्रलोभन भी उन्हें परमात्मा की अनन्य शरणागति से नहीं डिगा सका। यही कारण था कि उनके निष्काम भक्ति से प्रसन्न होकर सुदामा को श्रीकृष्ण ने द्वारिकापुरी के ही समान सुदामापुरी का निर्माण कर दिया था।
स्वामीजी ने चार मुट्ठी चूड़ा को काम, क्रोध, लोभ व मोह निरूपित करते हुए कहा कि यदि जीव जब परमात्मा के चरणों में अपने जीवन के काम, क्रोध, लोभ एवं मोह रूपी चूड़े को समर्पित कर शरणागत हो जाता है तो उसके जीवन के समस्त दुखों का नाश कर परम आनंद की प्राप्ति सुदामा की ही भांति हो जाती है।