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मैं कम्प्यूटर बाबा को संत नहीं मानता…!

locationरीवाPublished: Apr 07, 2019 01:00:43 pm

Submitted by:

Mahesh Singh

भागवत कथा के दौरान पहुंचे थे रीवा, कहा-संतों को राजनीति मेंं नहीं आना चाहिए।

I do not consider computer Baba a saint ...

I do not consider computer Baba a saint …

रीवा. श्रीरामहर्षण मैथिल सांख्य पीठाधीश्वर जगतगुरु रामानंदाचार्य स्वामी बल्लभाचार्य महाराज ने यह कहकर सनसनी फैला दी है कि-मैं कम्प्यूटर बाबा को संत नहीं मानता। भागवत कथा प्रवचन में शामिल होने बल्लभाचार्य महाराज रीवा पहुंंचे थे। जब उनसे पूछा गया कि कम्प्यूटर बाबा राजनीति में काफी रुचि ले रहे हैं, क्या संतों को राजनीति में आना चाहिए तो इसके जबाव में उन्होंने साफ किया कि संतों को राजनीति में नहीं आना चाहिए। जो राजनीति कर रहे हैं वे वास्तव में संत नहीं हैं।
स्वामी बल्लभाचार्य ने कहा कि मैं तो कम्प्यूटर बाबा को संत मानता ही नहीं। कारण, संत को राजनीति में जाने का कोई भी अधिकार नहीं है। उसे तो भगवान की शरणागति में विश्वास करना चाहिए। बीजेपी में भी अनेक संतों के होने के सवाल पर उन्होंने कहा कि दल चाहे कोई भी हो राजनीति तो राजनीति है। इसलिए संतों को राजनीत में कतई नहीं पडऩा चाहिए न ही उन्हें चुनाव लडऩा चाहिए , ऐसा करने वाले लोग संत हो ही नहीं सकते। उन्होंने कहा कि जो जिस धर्म, जिस जाति के हैं अपने-अपने धर्म का पालन करते हुए समाज व राष्ट्र को एक सूत्र में बांध कर इस राष्ट्र को पुन: विश्वगुरु के पद पर स्थापित करें।
भागवत कथा का श्लोक ही संपूर्ण फलदायी
रीवा जिले के ग्राम तेलिहा महात्मान में भागवत कथा का वाचन करते हुए आचार्य ने कहा कि श्रीमद् भागवत के अंतिम श्लोक का भी यदि किसी व्यक्ति ने श्रवण कर लिया तो भी उसे संपूर्ण भागवत कथा सुनने का फल प्राप्त होता है। प्रत्येक प्राणी का उद्धार भागवत कथा सुनने मात्र से हो जाता है। सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि सुदामा परम सद गृहस्थ संत थे जिन्हें एकमात्र परमात्मा का ही सहारा था। बड़े से बड़ा प्रलोभन भी उन्हें परमात्मा की अनन्य शरणागति से नहीं डिगा सका। यही कारण था कि उनके निष्काम भक्ति से प्रसन्न होकर सुदामा को श्रीकृष्ण ने द्वारिकापुरी के ही समान सुदामापुरी का निर्माण कर दिया था।
चार मुट्ठी चावल का राज!
स्वामीजी ने चार मुट्ठी चूड़ा को काम, क्रोध, लोभ व मोह निरूपित करते हुए कहा कि यदि जीव जब परमात्मा के चरणों में अपने जीवन के काम, क्रोध, लोभ एवं मोह रूपी चूड़े को समर्पित कर शरणागत हो जाता है तो उसके जीवन के समस्त दुखों का नाश कर परम आनंद की प्राप्ति सुदामा की ही भांति हो जाती है।
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