मापदंडों का अब तक नहीं हो पाया परीक्षण
कुछ महीने पहले सूरत में कोचिंग संस्थान में आगजनी से बच्चों की मौत के बाद यहां पर भी सुरक्षा की मांग उठी थी। जिस पर कलेक्टर ने शहर के भवन स्वामियों की बैठक लेकर उन्हें व्यवस्था बनाने के लिए कहा था। इसके साथ ही नगर निगम एवं होमगार्ड्स अधिकारियों की संयुक्त टीम गठित कर भवनों में फायर फाइटिंग सिस्टम का सत्यापन करने का निर्देश दिया था। इस मामले में अब तक टीम ने कहीं पर भी निरीक्षण नहीं किया है। जबकि शहर में ऐसे कुछ चिन्हित ही बड़े भवन हैं, जहां पर उनके आकार के अनुसार फायर फाइटिंग सिस्टम लगाए गए हैं। कुछ भवनों में आग बुझाने के लिए सिलेंडर तो रखे गए हैं लेकिन ये एक्सपायरी हो चुके हैं। इनका परीक्षण न तो संबंधित भवनों के मालिकों द्वारा किया जा रहा हैऔर न ही प्रशासन द्वारा गठित की गईटीम के द्वारा। सत्यापन कर १५ दिन में कलेक्टर ने रिपोर्टमांगी थी लेकिन करीब छह महीने का समय बीत गया और अब तक टीम शहर में निकली ही नहीं है।
एनओसी को लेकर बदलते रहे हैं नियम
भवनों को आग से बचाने के लिए उपकरणों की मौजूदगी के बाद फायर एनओसी देने की प्रक्रिया पुरानी है। बताया गया है कि सबसे पहले नेशनल बिल्डिंग कोड 1970 में बनाया गया था और बाद में 198 3 और 198 7 में संशोधन किया गया। तीसरा संस्करण कोड, 2005 है। इसके तहत आग और जीवन सुरक्षा से संबंधित कुछ नियम तय किए गए हैं जो डेवलपर्स को पालन करना है। बिल्डिंग के बढ़ते आकार और समय की मांग के अनुसार नियमों में संशोधन होते रहे हैं। शहर में १५ मीटर से ऊंचा कोईभवन है तो उसकी फायर आडिट जरूरी होती है। नेशनल बिल्डिंग कोड 2016 के भाग 4 के अनुसार इन्हें रोकने के लिए प्रभावी अग्नि सुरक्षा उपायों की जरूरत है। इसीलिए फायर सेफ्टी एण्ड आडिट अनिवार्य किया गया है। इसके साथ ही बड़े भवनों में फायर ड्रिल एवं फायर फाइटिंग सिस्टम सुधारने के लिए भी कहा है।
कोचिंग संस्थानों में भी व्यवस्थाएं नहीं
बीते कुछ महीने पहले राज्य सरकार ने कलेक्टर एवं नगर निगम को निर्देशित किया था कि शहर में जितने भी कोचिंग संस्थान हैं, इनकी अनिवार्य रूप से जांच कराईजाए और यदि मनमानी रूप से संचालन पाया जाता है तो संबंधित पर कार्रवाईकी जाए। रीवा शहर में सिरमौर चौराहे के पास रमागोविंद पैलेस में ही अकेले दर्जन भर से अधिक कोचिंग क्लासेस चल रहे हैं, जहां पर अग्नि सुरक्षा से जुड़े कोईप्रयास नहीं हुए हैं। यदि कोईआगजनी हुईतो यहां से बच्चों को बाहर निकालना मुश्किल होगा। क्योंकि इसके विकल्प नहीं बनाए गए हैं।