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कारगिल विजय दिवस : ‘शहर से दूर है कच्चा घर, जिसमें रहती है शहीद की बूढ़ी मां’

locationरीवाPublished: Jul 26, 2021 09:54:58 pm

Submitted by:

Mrigendra Singh

– कई शहीदों का परिवार प्रशासनिक उपेक्षा का भी कर रहा सामना

rewa

kargil vijay diwas ; shaheed jawan in rewa dist


रीवा। ‘थोड़ी दूर है घर मेरा मेरे घर में है मेरी बूढ़ी माँ, मेरी माँ के पैरों को छू के तू उसे उसके बेटे का नाम दे।Óबार्डर फिल्म के गीत के यह बोल कारगिल युद्ध के जांबांज शहीद मेजर कमलेश पाठक के पैतृक घर को देखकर बरबस ही कानों में गंूजने लगते हैं। उनका अब भी कच्चा घर सिरमौर तहसील के जामू गांव में है, जहां उनकी बूढ़ी मां मीरा पाठक अकेले रहती हैं।
बेटे की शहादत को 22 साल हो गए हैं, लेकिन मां की आंखों में बेटे के नहीं होने का सूनापन भर ही नहीं बल्कि सरकारी उपेक्षा की शून्यता भी जीवन में भर चुकी है। मेजर पाठक जून 1999 में शहीद हुए थे। उसके बाद जो भी सरकारी मदद आई वह मां मीरा पाठक तक नहीं पहुंची। बहू अलग हो गईं और मां के हिस्से में पुराना कच्चा मकान ही रह गया। जिसमें अपने सपूत की यादों के सहारे वे जिंदा हैं।
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मां को भूली सरकार
मेजर कमलेश पाठक की याद में जामू गांव के स्कूल के सामने उनकी प्रतिमा स्थापित कराई गई है। जो युवाओं को प्रेरणा देती है। लेकिन मां की हालत देखकर उनकी स्मृति पर होने वाले आयोजन रस्मी ही लगते हैं। मेजर पाठक के शहादत के बाद सरकार ने उनकी बूढ़ी मां की सुध नहीं ली। स्थानीय लोगों ने इस बारे में आवेदन किया और शिकायतें भी भेजीं लेकिन कोई मदद नहीं मिल पाई।
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बेटे की याद में छलक आईं आंखें
विजय दिवस के मौके पर रविवार को शहीद मेजर कमलेश पाठक की मां मीरा पाठक को उनके बेटे के अप्रतिम शौर्य के लिए जिला सैनिक कल्याण बोर्ड द्वारा सम्मानित किया गया। शॉल ओढ़ाए जाते ही वे बेटे को याद करते हुए भावुक हो गईं। सरकारी उपेक्षा और कच्चे मकान के बारे में पूछे जाते ही बस इतना ही कहा कि उनके लिए अपने वीर सपूत की यादें ही काफी हैं।
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हर परिवार का एक सा दर्द-
शहीद कालूप्रसाद पाण्डेय– कारगिल युद्ध में नायक कालू प्रसाद पाण्डेय निवासी डेरवा(अंदवा), जवा रीवा 28 जून 1999 को आपरेशन विजय के दौरान शहीद हो गए थे। उनकी पत्नी वीर नारी श्यामकली पाण्डेय को मध्य प्रदेश सरकार की तरफ से 10 लाख रुपए मिले थे। भारत सरकार की ओर से पेट्रोल पंप की घोषणा के 13 साल बाद आवंटन हो पाया। उनका कहना है कि सरकार की ओर से मकान-प्लाट नहीं मिला और न ही किसी बच्चे को विशेष अनुकंपा नियुक्ति मिली है। बरसात के दिनों में गांव के घर तक पहुंचना मुश्किल होता है।
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शहीद सुभाष त्रिपाठी
नायक सुभाष कुमार त्रिपाठी निवासी गुढ़वा(गुढ़) ने भी कारगिल के युद्ध में हिस्सा लिया, जमकर मुकाबला किया और जख्मी रहे। स्वस्थ होने के बाद सेना के साथ फिर मोर्चे पर गए और शहीद हो गए। इनकी वीर नारी मीना त्रिपाठी को मध्य प्रदेश सरकार द्वारा 10 लाख रुपए दिए गए थे। मीना पहले से स्कूल में शिक्षिका थीं जो अब गांव में ही रहती हैं। इन्हें सरकार की ओर से कोई मकान-प्लाट नहीं मिला है।
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शहीद छोटेलाल-चंद्रचूर्ण
कारगिल युद्ध में रीवा जिले के ही सिरमौर के नजदीक भेडऱहा गांव के निवासी चंद्रचूर्ण शर्मा भी दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हो गए। इसी तरह जवा के सिपाही छोटेलाल सिंह की भी उसी दौरान आपरेशन विजय में ही शहादत हुई थी। पर इनके परिवार का भी दर्द वैसा ही है। सरकार साल में एक बार ही याद करती है।
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