scriptजानिए, छात्रसंघ में कैसे शुरू हुआ राजनीतिक हस्तक्षेप | Know how the political intervention started in the student union | Patrika News

जानिए, छात्रसंघ में कैसे शुरू हुआ राजनीतिक हस्तक्षेप

locationरीवाPublished: Oct 12, 2017 06:02:11 pm

Submitted by:

Ajeet shukla

आजादी के एक दशक बाद तक कॉलेज तक सीमित रहा है छात्रसंघ, 1949-50 में छात्रसंघ अध्यक्ष रहे 92 वर्षीय एसपी दुबे ने शेयर किया अनुभव

Rewa

how the political intervention started in the student community

रीवा। विश्वविद्यालय हो या कॉलेज। छात्र संगठन हो या छात्रसंघ के पदाधिकारी। पूरी तरह से राजनीतिक पार्टियों की कठपुतली बन गए हैं। धरना प्रदर्शन या बड़े आंदोलन की रणनीति अब सब शीर्ष स्तर पर तय होता है। छात्रों में नेतृत्व क्षमता का विकास इससे बुरी तरह प्रभावित हुआ है। यह कहना है 1949-50 में टीआरएस कॉलेज के छात्रसंघ अध्यक्ष रहे सुरेंद्र प्रसाद दुबे का।
पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष दुबे बताते हैं कि छात्र संगठन व छात्रसंघ के पदाधिकारी राजनीतिक पार्टियों के इशारे पर कार्य करें, आजादी के बाद एक दशक तक ऐसा नहीं था। छात्रसंघ केवल अपनी संस्था तक सीमित था और उसमें कोई हस्तक्षेप नहीं करता था। यह बात और है कि छात्र के नेतृत्व क्षमता और उसके व्यक्तित्व को देखते हुए बाद में राजनीतिक पार्टियां अपने दलों में शामिल कर लिया करती थीं।
अब जमीन-आसमान का हो गया अंतर

पूर्व अध्यक्ष का कहना है कि उस समय के और वर्तमान में छात्रसंघ और पदाधिकारियों के चुनाव प्रचार में जमीन आसमान का अंतर आ चुका है। पहले छात्रसंघ अध्यक्ष और फिर १९८२ में उसी कॉलेज में प्रोफेसर और प्राचार्य रहे ९२ वर्षीय सुरेंद्र प्रसाद के मुताबिक, आजादी के समय से लेकर एक दशक बाद तक छात्रसंघ केवल छात्रों का हुआ करता था। चुनाव से लेकर पदाधिकारियों के शपथ ग्रहण तक सब कुछ कॉलेज तक सीमित था। आपस में बैठकर प्रत्याशी तय होते थे और वरिष्ठ व साथी छात्र प्रचार करते थे, लेकिन अब स्थिति बिल्कुल विपरीत है।
अध्यक्ष बनने में खर्च हुए थे 30 रुपए

प्रो. एसपी दुबे बताते हैं कि छात्रसंघ चुनाव पर खर्च और बाहरी हस्तक्षेप का अंदाजा महज इस बात से आसानी लगाया जा सकता है कि वह केवल 30 रुपए खर्च में छात्रसंघ अध्यक्ष बने थे। वह भी पूर्व अध्यक्ष सूर्य प्रताप सिंह तिवारी द्वारा खर्च किया गया था। अंत में इसमें से कुछ रुपए भी बच गए थे, जिससे जीत का जश्न मनाया गया था।
10 वर्ष बाद शुरू हुआ बाहरी दखल

छात्र जीवन से लेकर कॉलेज प्राचार्य की सेवानिवृत्त तक कई छात्र चुनावों के गवाह प्रो. दुबे बताते हैं कि आजादी के बाद से लेकर 1960 तक सब कुछ सामान्य रहा, लेकिन इसके बाद धीरे-धीरे बाहरी लोगों का हस्तक्षेप बढ़ा। प्रत्याशी अपने रसूख को बढ़ाने के लिए राजनीतिक व्यक्तियों को भी प्रचार-प्रसार में शामिल करने लगे।
राजनीतिक हस्तक्षेप ने कराए आंदोलन
प्रचार-प्रसार के दौरान रसूख बढ़ाने के फेर में राजनैतिक व्यक्तियों की एंट्री का नतीजा यह रहा कि १९६५ के बाद से न केवल प्रत्याशियों के चयन में राजनैतिक हस्तक्षेप होने लगा बल्कि उनके इशारे में छात्रसंघ के पदाधिकारियों द्वारा बड़े-बड़े आंदोलन भी हुए। वर्तमान में तो राजनीतिक पार्टियों के छात्र संगठन ही सक्रिय हैं।
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