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तीन राज्यों की बाणसागर परियोजना कैसे घोटाले की भेंट चढ़ी, यहां जानिए पूरी कहानी

locationरीवाPublished: Feb 06, 2021 12:55:16 pm

Submitted by:

Mrigendra Singh

-निर्माण कार्यों में करोड़ों का भ्रष्टाचार दफन, अभी जांच होना बाकी- सरकार ने तकनीकी विशेषज्ञों की टीम नहीं भेजी, जिसकी वजह से निर्माण कार्यों के भ्रष्टाचार की नहीं हो सकी जांच



मृगेन्द्र सिंह, रीवा। जल संसाधन विभाग के बाणसागर बहुउद्देश्यीय परियोजना में करीब 1250 करोड़ रुपए के घोटाले का खुलासा हुआ है। यह तो केवल सामग्री खरीदी एवं आफिस मेंटेंनेंस में हुए भ्रष्टाचार की बानगी है। अलग-अलग समय पर हजारों करोड़ रुपए की हुई स्वीकृति को अफसरों ने अपने अनुसार बंदरबाट किया है।
सबसे बड़ा घोटाला तो नहरों के निर्माण कार्य को लेकर हुआ है। जिसमें गुणवत्ता की अधिकांश जगह अनदेखी की गई है। इसमें संबंधित परियोजनाओं के जिम्मेदार अधिकारियों के साथ ही ठेकेदार भी लपेटे में आएंगे। बाणसागर परियोजना में काम करने ठेकेदार हजारों करोड़ रुपए के टर्नओवर वाले ठेकेदार बन चुके हैं। निर्माण कार्यों का सुपरवीजन करने वाले अधिकारियों में अधिकांश अब सेवानिवृत्त होते जा रहे हैं, इन सबका अपना माया लोक भ्रष्टाचार की कहानी स्वयं बयां कर रहा है।
– तकनीकी विशेषज्ञ नहीं मिलने से रुकी जांच
घोटाले की जांच कर रही एजेंसी इओडब्ल्यू ने दर्जनों की संख्या में मध्यप्रदेश के मुख्य तकनीकी परीक्षक को पत्र लिखकर मांग की थी कि एक विशेष टीम का गठन कर रीवा भेजा जाए। जो मैदानी क्षेत्रों में पहुंचकर नहरों की गुणवत्ता का परीक्षण कर बताए कि उसमें किस तरह का कार्य कराया गया है। कई पत्रों के बाद वहां से जवाब आया कि इओडब्ल्यू स्थानीय स्तर पर तकनीकी विशेषज्ञ का इंतजाम करे। स्थानीय अधिकांश अधिकारी भ्रष्टाचार में खुद आरोपी थे, इसलिए तकनीकी विशेषज्ञ शासन स्तर से नहीं मिलने पर निर्माण कार्यों की जांच शुरू ही नहीं हुई। माना जा रहा है कि हर नहर परियोजना में करोड़ों का भ्रष्टाचार हुआ है।
– सीएजी ने उच्च स्तरीय जांच की जताई थी आवश्यकता
भ्रष्टाचार का मामला दर्ज होने के बाद वर्ष 2009-10 में सीएजी की टीम रीवा आई थी। उसने गंगा कछार चीफ इंजीनियर कार्यालय के साथ ही अन्य कार्यालयों का भ्रमण करने के साथ नहरों के निर्माण की प्रारंभिक स्थिति देखी थी। वर्ष 2004 से ही बाणसागर परियोजना को राशि अधिक मिलना प्रारंभ हुई, इसके साथ ही घोटाले की शुरुआत भी हुई थी। सीएजी ने अनुमान लगाया था कि करीब पांच वर्ष में ही 500 करोड़ से अधिक का घपला हुआ है, इसलिए उच्च स्तरीय जांच कराई जानी चाहिए।

– तीन राज्यों की है परियोजना
बाणसागर परियोजना तीन राज्यों मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार की संयुक्त परियोजना है। यह केवल सिंचाई के लिए नहीं बल्कि बहुउद्देश्यीय परियोजना है। इसके पानी से अलग-अलग स्थानों पर बिजली बनाई जा रही है। बांध में मछलियां पाली जा रही हैं। रीवा शहर के साथ ही कई स्थानों पर बांध के पानी से पेयजल की सप्लाई होती है। बांध के पानी में 50 प्रतिशत हिस्सेदारी मध्यप्रदेश की है। उत्तर प्रदेश और बिहार की 25-25 प्रतिशत हिस्सेदारी है। मध्यप्रदेश और बिहार अपने हिस्से के पानी का पर्याप्त उपयोग कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश की नहर में लीकेज की समस्या के चलते अभी कम मात्रा में ही पानी लिया जा रहा है।

– निर्माण के लिए आई सामग्री का दूसरा उपयोग किया
जल संसाधन विभाग के अधिकारियों की नजर निर्माण कार्यों के लिए आई राशि में थी। शुरुआती दौर में नहरों का कार्य प्रारंभ नहीं कर उस राशि को दूसरे उपयोग में लगाया। कार्यालय के उपयोग की सामग्री खरीदी, स्टेशनरी, आफिस मेंटेनेंस, रंगाई-पुताई, स्थापना आदि के नाम पर राशि खर्च की। वहीं नहरों के निर्माण के नाम पर स्टील पाइप, रेलिंग, फुटब्रिज, ह्यूम पाइप सहित अन्य ऐसी औचित्यहीन सामग्री खरीदी गई जिसका कोई उपयोग ही नहीं हुआ। नहरों का एक्वाडक्ट कांक्रीट का बनाया जाना था लेकिन उसकी कई दूसरी सामग्री की खरीदी की गई। उपयोग नहीं होने पर वह सामग्री खराब भी हो गई।
– पांच हजार से कम के बिल में किया खेल
शासन के नियमों के अनुसार पांच हजार रुपए से अधिक के बिलों की जानकारी एकाउंटेंट एंड जनरल मध्यप्रदेश को देनी होती है। विभाग के अधिकारियों ने खेल करने के लिए एक ही कार्य के कई बिल बनाकर भुगतान किए। अधिकांश बिल पांच हजार से कुछ रुपए कम के बनाए जाते थे ताकि इसकी जानकारी नहीं देनी पड़े। इओडब्ल्यू ने जांच में इस बात की पुष्टि की है कि अधिकारियों ने मनमानी रूप से यह कार्य किया है।
– कई शिकायतों के बाद जांच प्रक्रिया हुई प्रारंभ
बाणसागर घोटाले में हजारों करोड़ रुपए के घपले का अनुमान है। इसका कोई एक शिकायतकर्ता नहीं है। पूर्व सांसद स्व. चंद्रमणि त्रिपाठी, नागेन्द्र सिंह, गिरीश गौतम, रामलखन शर्मा सहित कई नेताओं के पत्र अलग-अलग समय पर जांच के लिए लिखे गए थे। प्रारंभिक जांच में अनियमितता पाए जाने पर वर्ष 2008 में एफआइआर दर्ज की गई थी।
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विभाग के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी ने खोला मोर्चा
प्रदेश के सबसे बड़े घोटालों में शामिल बाणसागर घोटाले की जांच में तेजी लाए जाने का प्रमुख सूत्रधार विभाग का ही चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी रहा है। रामलखन पाण्डेय नाम के कर्मचारी ने विभाग में कई शिकायतें की, जिसे प्रताडि़त कर कई बार प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में पोस्टिंग की गई। दैनिक वेतनभोगी इस कर्मचारी को सेवा से बर्खास्त भी अधिकारियों ने कर दिया। रामलखन ने हाईकोर्ट से भ्रष्टाचार के जांच में निगरानी करने की मांग की थी। कोर्ट ने जांच में तेजी लाए जाने के कई निर्देश भी दिए। बाद में कोर्ट ने यह कहते हुए प्रकरण निराकृत कर दिया कि इओडब्ल्यू ने चालान प्रस्तुत करना शुरू कर दिया है, अब जिला न्यायालय में बेहतर तरीके से सुनवाई होगी।

जांच एजेंसी में बदलते रहे अधिकारी
घोटाले की विवेचना कर रही जांच एजेंसी इओडब्ल्यू के भीतर भी खलबली मची रही। पहले भोपाल से जांच प्रारंभ हुई और बाद में रीवा का मामला होने की वजह से यहां दे दिया गया। रीवा के अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध रही तो जबलपुर इकाई को जांच सौंपी गई। जांच के लिए नियमित जबलपुर से अधिकारी नहीं पहुंच सकते थे। इसलिए तत्कालीन विवेचना अधिकारी एसएस शुक्ला का मुख्यालय रीवा ही किया गया। उन्होंने कई फर्मों में छापामारी की और जांच को आगे बढ़ाया। पता चला कि काल्पनिक फर्मों के नाम पर भी भुगतान हुए हैं। जांच अधिकारी बताए गए पते पर पहुंचे तो पता चला कि इस नाम का कोई फर्म ही नहीं है। चालान प्रस्तुत करने की शुरुआत शुक्ला ने ही की थी। भ्रष्टाचार में फंसे बड़े अफसरों और फर्म संचालकों के दबाव की वजह से उनसे जांच वापस ले ली गई थी। इसके बाद जांच की गति भी काफी धीमी रही और आठ वर्ष से अधिक का समय पूरक चालान पेश करने में बीत गए।
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आरोपियों के विरुद्ध आरोप तय

जलसंसाधन विभाग के बहुचर्चित बाणसागर घोटाले में विशेष न्यायालय ने आरोपियों के विरुद्ध आरोप तय करते हुए सुनवाई की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी है। इस मामले की जांच इओडब्ल्यू की ओर से की जा रही है। करीब आठ साल पहले इस मामले में इओडब्ल्यू ने चालान कोर्ट में प्रस्तुत किया था।
आरोपियों की संख्या अधिक होने की वजह से पूरक चालान भी पेश किए गए। सभी दस्तावेजों पर संज्ञान लेते हुए विशेष न्यायालय ने आरोप तय किया है। करीब 1250 करोड़ रुपए के घोटाले का इसमें अनुमान लगाया गया है। आरोपियों की संख्या 40 बताई गई है, जिसमें जलसंसाधन विभाग के अधिकारियों के साथ ही विभाग को सामग्री सप्लाई करने वाले फर्मों के संचालकों का नाम शामिल है।
कई अधिकारी वर्षों पहले सेवानिवृत्त हो चुके हैं, उनके अधिवक्ताओं की ओर से लगातार उम्र का हवाला देकर कोर्ट से राहत की गुहार लगा रहे हैं। जिला अभियोजन कार्यालय के मीडिया प्रभारी अफजल खान ने बताया कि विशेष न्यायाधीश गिरीश दीक्षित द्वारा आरोपियों के विरुद्ध आरोप तय किए गए हैं।
जिसमें जल संसाधन विभाग के चीफ इंजीनियर रहे बीके त्रिपाठी सहित अन्य अधिकारियों ने व्यापक रूप से भ्रष्टाचार किया था। जिस पर वर्ष 2012 में इओडब्ल्यू ने चालान पेश किया था। इसके बाद सात पूरक चालान भी पेश किए गए थे। आरोप तय होने के बाद अब गवाहों के बयान भी दर्ज किए जाएंगे। जानकारी मिली है कि कई आरोपियों के विरुद्ध अभियोजन की स्वीकृति शासन की ओर से नहीं दी गई है, जिसकी वजह से उन पर अभी आरोप तय नहीं हुए हैं।
– 17 वर्षों से चल रही घोटाले की जांच


बाणसागर घोटाले की जांच इओडब्ल्यू द्वारा करीब 17 वर्षों से अधिक समय से की जा रही है। जानकारी के मुताबिक वर्ष 2004 में शिकायत की गई थी। जिस पर पहले लंबे समय तक शिकायत की तफ्तीश कराई गई और 22 सितंबर 2008 को भादवि की धारा 420, 467, 468, 471, 406, 409, 120बी के साथ ही भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया। जांच के दौरान कुछ धाराएं आरोपियों पर बढ़ाई भी गई हैं। बताया गया है कि भ्रष्टाचार की जांच वर्ष 2004 से 2008 के बीच किए गए कार्यों और भुगतान पर फोकस की गई है। जांच एजेंसी पर भी लगातार सवाल उठते रहे हैं, इसलिए भोपाल, जबलपुर एवं रीवा इकाइयों को अलग-अलग समय पर इओडब्ल्यू की ओर से जांच दी जाती रही है।
– इन पर तय हुए हैं आरोप
जलसंसाधन के अधिकारी- तत्कालीन प्रभारी मुख्य अभियंता पीसी महोबिया, एसके पाठक, सेवानिवृत्त अधीक्षण यंत्री अनुपम कुमार श्रीवास्तव, सेवानिवृत्त कार्यपालन यंत्री पार्थ भट्टाचार्य, एलएम सिंह, रवि प्रसाद खरे, केसी राठौर, एमपी चतुर्वेदी, बीपी रावत, जयविंद सिंह परिहार एवं उपभोक्ता सहकारी भंडार के तत्कालीन सीइओ रामदिनेश त्रिपाठी आदि शामिल हैं।
फर्मों के संचालक- गुलाबदास अग्रवाल सतना, राजेश नारायण दर उर्रहट रीवा, विश्वनाथ मिश्रा रीवा, राजकुमार पटेल छत्रपति नगर रीवा, गुलाब प्रसाद पटेल बाणसागर कालोनी रीवा, चंद्रधर सिंह किला रोड रीवा, अभिषेक मदान, गुलाम अहमद, ओमप्रकाश अरोरा ग्वालियर, श्यामकुमार मदान हरपालपुर, बृजेश कुमार सिंह रीवा, सुरेश खंडेलिया शहडोल, सुरेश मदान हरपालपुर, प्रवेश मदान, किरण मदान हरपालपुर, राजकुमार अग्रवाल द्वारिका नगर, अनीता अग्रवाल, अर्जुन नगर रीवा, रमेश कुमार गुप्ता कोठी रोड रीवा, संजय मंधाना छिंदवाड़ा, मदनमोहन मुदड़ा इंदौर, माया यादव, उर्मिला तिवारी रीवा, संजय कछवाह चुरहट, राजेश महाजन इंदौर, एनके अग्रवाल, सुभाषचंद्र थापर रीवा, शशिभूषण अग्रवाल रीवा, बृजेश सिंह आदि।
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विभाग ने अफसरों को भ्रष्टाचार का दोषी माना लेकिन अभियोजन की स्वीकृति नहीं दी


जलसंसाधन ने बाणसागर परियोजना में करोड़ों रुपए के हुए भ्रष्टाचार के मामले में विभाग के अधिकारियों को दोषी माना है। उनसे भ्रष्टाचार की रकम वसूली करने का आदेश भी जारी किया गया है। कइयों की पेंशन से राशि की वसूली हुई है। एक ओर विभाग ने माना है कि उन अधिकारियों ने भ्रष्टाचार किया है लेकिन उनके विरुद्ध न्यायालय में प्रकरण चलाने की अनुमति सरकार ने नहीं दी है। इसके लिए कई पत्र इओडब्ल्यू की ओर से शासन को भेजे गए। कई वर्षों तक तो अलग-अलग बहाने बनाकर जानकारियां मंगाई जाती रहीं लेकिन बाद में शासन ने सीधे तौर पर अभियोजन स्वीकृति के प्रस्ताव को निरस्त कर दिया। जिससे भ्रष्टाचार को अंजाम देने के बावजूद अधिकारियों पर न्यायालय में चालान पेश नहीं किया जा सका। कई अधिकारी जांच के दायरे में थे। अधिकारियों के विरुद्ध अभियोजन की स्वीकृति नहीं मिलने और उनके पद में लगातार बने रहने से कई दस्तावेजों को प्रभावित करने की भी आशंका जताई जा रही है। इओडब्ल्यू ने उन अधिकारियों को बाद में आरोपी नहीं बनाया जो संदेह के दायरे में थे और बाद में सेवानिवृत्त हुए हैं। शुरुआती दौर में जो आरोपी बनाए गए थे उन पर ही अब कोर्ट ने आरोप तय किया है।

इनके पेंशन से काटी जाएगी राशि
जिन अधिकारियों की पेंशन कटौती का निर्देश है, उसमें प्रमुख रूप से रिटायर्ड अधीक्षण यंत्री एचएल त्रिपाठी की 25 प्रतिशत पेंशन स्थाई रूप से वापस करने, एसपी सिंह, एनपी द्विवेदी, एमपी वर्मा आदि की दस प्रतिशत पेंशन तीन वर्ष तक लगातार काटे जाने का निर्देश है। वहीं भ्रष्टाचार के मामले में घिरे जिन अधिकारियों को दोषी पाया गया है और वह अभी भी सेवा में हैं, उनके वेतन से राशि काटने और वेतन वृद्धियां रोकने का भी आदेश जलसंसाधन विभाग की ओर से कुछ समय पहले जारी किया गया था। पूर्व के आदेश के मुताबिक एनके जैन तत्कालीन प्रभारी कार्यपालन यंत्री को अनिवार्य सेवानिवृत्ति देते हुए उनके स्वत्वों से 45.46 लाख रुपए वसूल करने के लिए कहा है। इसी तरह कार्यपालन यंत्री एससी शर्मा की एक वेतन वृद्धि असंचयी प्रभाव से रोकने के लिए कहा है। एनपी द्विवेदी से 3.48 लाख रुपए उन्हें देय स्वत्वों से वसूलने का आदेश है। कार्यपालन यंत्री रामानंद सिंह से 52 हजार 345 रुपए वेतन से वसूलने और एक वेतनवृद्धि भी असंचयी प्रभाव से रोकने का आदेश था, जानकारी मिली है कि इनमें कई अब सेवानिवृत्ति होते जा रहे हैं।
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11 अधिकारियों पर विभागीय जांच में दोष साबित, अभियोजन स्वीकृति नहीं
– भीम सिंह मोहनिया, तत्कालीन कार्यपालन यंत्री- आरोप है कि अपर पुरवा नहर कार्यालय के लिए टायपिंग, फोटोकापी, स्टेशनरी पर 6.59 लाख का अनियमित भुगतान किया।
– एके अग्रवाल, प्रभारी कार्यपालन यंत्री- नियम विरुद्ध 8.30 लाख रुपए का भुगतान। कालोनी संधारण के नाम पर 14.29 लाख का भुगतान।
– एचएल त्रिपाठी, तत्कालीन कार्यपालन यंत्री- कार्यालय खर्च में 53.55 लाख और कालोनी संधारण के नाम पर 1.66 करोड़ एवं 5.34 करोड़ रुपए का नियम विरुद्ध भुगतान किया था।
– एनके जैन, कार्यपालन यंत्री- अलग-अलग दस भुगतानों में 7.86 करोड़ रुपए की अनियमितता की है। भुगतान नियम विरुद्ध पाए गए हैं।
– एससी शर्मा, कार्यपालन यंत्री- कार्यालय व्यय एवं सामग्री खरीदी के नाम पर 33.54 लाख रुपए का नियम विरुद्ध भुगतान किया।
– एसपी सिंह, कार्यपालन यंत्री- अलग- अलग कार्यों के लिए 37.71 लाख रुपए का नियम विरुद्ध भुगतान।
– एनपी द्विवेदी, कार्यपालन यंत्री- कार्यालय व्यय एवं नहरों के निर्माण के लिए सामग्री खरीदी के नाम पर 62.24 लाख का भुगतान किया।
– आरएन सिंह, कार्यपालन यंत्री- नियमों के विपरीत 11.67 लाख रुपए का भुगतान किया।
– आरपी शुक्ला, प्रभारी कार्यपालन यंत्री- ह्यूम पाइप, फुटब्रिज, स्टेशनरी आदि के नाम पर 2.51 करोड़ रुपए का अनियमित भुगतान।
– डीएल वर्मा, कार्यपालन यंत्री- सामग्री खरीदी के नाम पर 47.48 लाख रुपए का मनमानी भुगतान किया।
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बाणसागर परियोजना की शुरुआत 1978 में हुई
बाणसागर बहुउद्देश्यीय परियोजना की शुरुआत 14 मई 1978 को हुई थी। इसकी आधारशिला तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने रखी थी। 25 सितंबर 2006 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने परियोजना का लोकार्पण किया। बांध का कार्य पूरा होने के साथ ही नहरों के कार्यों में भी तेजी आई। शहडोल जिले के देवलौंद में सोन नदी में बांध का निर्माण कराया गया है। इसकी ऊंचाई 67 मीटर और लंबाई 1020 मीटर बनाई गई है। बांध के निर्माण में 336 गांव डूब में आए। करीब ढाई लाख लोगों को विस्थापित किया गया। बांध में 18 गेट बनाए गए हैं। इसमें 341.64 मीटर जलभराव की अधिकतम क्षमता है।
बांध के पानी में 25-25 प्रतिशत हिस्सेदारी उत्तर प्रदेश और बिहार की है। बिहार सोन नदी के माध्यम से पानी जाता है तो उत्तर प्रदेश ने अपनी नहर बना ली है। मध्यप्रदेश ने रीवा, सीधी, सतना, शहडोल सहित अन्य कई हिस्सों में इसके पानी से सिंचाई परियोजनाएं बनाई है। रीवा जिले में क्योंटी कैनाल, पुरवा नहर, गुढ़-मऊगंज, बहुती नहर परियोजना, मिनी बाणसागर त्योंथर की दो परियोजनाओं के साथ ही अन्य कई परियोजनाओं के जरिए सिंचाई हो रही है।
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