प्लाटिंग कर जमीन बेच रहे कारोबारी
अफसरों की अनदेखी के चलते करीब ३३ साल पहले तत्कालीन पटवारी और राजस्व अधिकारियों से साठ-गांठ कर जमीन कारोबारियों ने सरकारी रेकॉर्ड में हेराफेरी कर जमीन पर प्लाटिंग कर बेच ली। मामले में कार्रवाई होने के बावजूदी दोषियों के खिलाफ अभी तक जवाब देही तय कर सके। जमीन मध्य प्रदेश शासन के नाम दर्ज कर दी गई है। लेकिन अभी तक जमीन पर काबिज लोगों को खाली नहीं कराया गया। हालांकि अधिकारियों का तर्क है कि प्रभावित कुछ लोग हाइकोर्ट से स्थगन करा लिया है। इसलिए अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई प्रभावित है।
अफसरों की अनदेखी के चलते करीब ३३ साल पहले तत्कालीन पटवारी और राजस्व अधिकारियों से साठ-गांठ कर जमीन कारोबारियों ने सरकारी रेकॉर्ड में हेराफेरी कर जमीन पर प्लाटिंग कर बेच ली। मामले में कार्रवाई होने के बावजूदी दोषियों के खिलाफ अभी तक जवाब देही तय कर सके। जमीन मध्य प्रदेश शासन के नाम दर्ज कर दी गई है। लेकिन अभी तक जमीन पर काबिज लोगों को खाली नहीं कराया गया। हालांकि अधिकारियों का तर्क है कि प्रभावित कुछ लोग हाइकोर्ट से स्थगन करा लिया है। इसलिए अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई प्रभावित है।
तत्कालीन कलेक्टर ने कब्जा लेने दिया है आदेश
मामले में जुगल किशोर कनौडिया की शिकायत पर एक साल पहले तत्कालीन कलेक्टर ने पक्षकारों की सुनवाई के दौरान ढेकहा की सरकारी जमीन को सरकार के खाते में दर्ज करने का आदेश दिया गया है। कलेक्टर ने तत्काल जमीन को भी खाली कराने का आदेश दिया था। लेकिन, अधिकारियों की शिथिलता के चलते मामला राजस्व कोर्ट चला गया। शासन की नई व्यवस्था के तहत राजस्व कोर्ट ने मामले को वापस कर दिया। फाइल वापस आते ही कलेक्टर का आदेश स्टैंड हो गया। कलेक्टर के आदेश पर तहसीलदार हुजूर ने रेकॉर्ड सुधार कर जमीन शासन के नाम दर्ज कर दिया है।
सरकारी जमीन के रेकार्ड में वर्ष १९८५-८६ में की थी हेराफेरी
हुजूर तहसीलदार की ओर से कलेक्टर कोर्ट में भेजी गई रिपार्ट के अनुसार अधिकार अभिलेख के खसरा नंबर ६८ से लेकर १९९ तक अलग-अलग भूमि संख्या में अनावेदकों ने व्यवस्थापन के तहत सरकारी जमीन को वर्ष १९८५-८६ में तत्कालीन तहसीलदार और पटवारी की साठ-गांठ से रेकार्ड में हेराफेरी कर सरकारी जमीन को अपने नाम दर्ज करा लिया था।
मामले में जुगल किशोर कनौडिया की शिकायत पर एक साल पहले तत्कालीन कलेक्टर ने पक्षकारों की सुनवाई के दौरान ढेकहा की सरकारी जमीन को सरकार के खाते में दर्ज करने का आदेश दिया गया है। कलेक्टर ने तत्काल जमीन को भी खाली कराने का आदेश दिया था। लेकिन, अधिकारियों की शिथिलता के चलते मामला राजस्व कोर्ट चला गया। शासन की नई व्यवस्था के तहत राजस्व कोर्ट ने मामले को वापस कर दिया। फाइल वापस आते ही कलेक्टर का आदेश स्टैंड हो गया। कलेक्टर के आदेश पर तहसीलदार हुजूर ने रेकॉर्ड सुधार कर जमीन शासन के नाम दर्ज कर दिया है।
सरकारी जमीन के रेकार्ड में वर्ष १९८५-८६ में की थी हेराफेरी
हुजूर तहसीलदार की ओर से कलेक्टर कोर्ट में भेजी गई रिपार्ट के अनुसार अधिकार अभिलेख के खसरा नंबर ६८ से लेकर १९९ तक अलग-अलग भूमि संख्या में अनावेदकों ने व्यवस्थापन के तहत सरकारी जमीन को वर्ष १९८५-८६ में तत्कालीन तहसीलदार और पटवारी की साठ-गांठ से रेकार्ड में हेराफेरी कर सरकारी जमीन को अपने नाम दर्ज करा लिया था।
रेकॉर्ड में शासन के नाम दर्ज, जमीन पर बने निजी आवास
कलेक्टर की ओर से हुजूर तहसीलदार को भेजे गए आदेश के अनुसार शासन के नाम वापस दर्ज की गई जमीन पर देवरती, श्यामकली, सुरेन्द्र कुमार, विजय कुमार, रवीन्द्र नाथ पाठक, हीरामणि, विमला देवी अग्निहोत्री, डीएस साहनी, राजपूत गन सर्विस ढेकहा, कृष्ण मेहरोत्रा, आदर्श महेन्द्रा आदि के मकान बने हैं।
कलेक्टर की ओर से हुजूर तहसीलदार को भेजे गए आदेश के अनुसार शासन के नाम वापस दर्ज की गई जमीन पर देवरती, श्यामकली, सुरेन्द्र कुमार, विजय कुमार, रवीन्द्र नाथ पाठक, हीरामणि, विमला देवी अग्निहोत्री, डीएस साहनी, राजपूत गन सर्विस ढेकहा, कृष्ण मेहरोत्रा, आदर्श महेन्द्रा आदि के मकान बने हैं।
वर्जन…
जमीन शासन के नाम दर्ज कर दी गई है। पजेशन लेने की कार्रवाई प्रचलन है। मामले में राजपूत गन सर्विस का हाइकोर्ट से स्थगन आदेश है। इसलिए कार्रवाई अभी प्रभावित है। कोर्ट का अगला आदेश आने के बाद पजेशन की कार्रवाई प्रारंभ की जाएगी।
जितेन्द्र त्रिपाठी, तहसीलदार, हुजूर
जमीन शासन के नाम दर्ज कर दी गई है। पजेशन लेने की कार्रवाई प्रचलन है। मामले में राजपूत गन सर्विस का हाइकोर्ट से स्थगन आदेश है। इसलिए कार्रवाई अभी प्रभावित है। कोर्ट का अगला आदेश आने के बाद पजेशन की कार्रवाई प्रारंभ की जाएगी।
जितेन्द्र त्रिपाठी, तहसीलदार, हुजूर