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महापौर चुनाव की नई व्यवस्था पर रीवा में नेताओं ने इस तरह की दी प्रतिक्रिया, पूर्व महापौरों ने कही बड़ी बात

locationरीवाPublished: Sep 26, 2019 09:35:31 am

Submitted by:

Mrigendra Singh

पार्षदों द्वारा महापौर चुना जाना जनता के एक वोट का अधिकार छीनना है- पूर्व महापौरों ने सरकार के निर्णय पर जताई आपत्ति, कहा सत्ता का होगा दुरुपयोग- सरकार ने नगरीय निकाय चुनावों की प्रक्रिया में किया संशोधन


रीवा। नगर निगम के चुनाव को लेकर सरकार ने बड़ा बदलाव किया है। अब महापौर का चुनाव जनता सीधे नहीं करेगी बल्कि जो पार्षद चुने जाएंगे उनकी ओर से महापौर का चुनाव किया जाएगा। सरकार के इस फैसले पर शहर के पूर्व महापौरों ने आपत्ति जताई है और कहा है कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए यह ठीक नहीं है। नगर निगम के लिए शहर की जनता को अब तक दो वोट देने का अधिकार था, जिसमें एक वोट के अधिकार को सरकार ने छीन लिया है। इससे लोगों में नाराजगी बढ़ेगी और सरकार के विपरीत ही परिणाम आएंगे। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद से ही यह कयास लगाए जा रहे थे कि नगरीय निकायों के चुनाव में बड़ा बदलाव किया जाएगा। इसके लिए सरकार ने कमेटी भी बनाई थी, जिसने सभी पहलुओं का अध्ययन करने के बाद अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। अब प्रदेश सरकार की कैबिनेट ने भी इसकी स्वीकृति दे दी है।
बीते दो दशक से अधिक समय से रीवा नगर निगम में भाजपा की एकतरफा जीत होती रही है। इसके पहले के महापौर कमलजीत सिंह डंग भी भाजपा में शामिल हो गए हैं, इसलिए अब वे भी कांग्रेस सरकार की नई व्यवस्था का विरोध कर रहे हैं। बता दें कि ये पार्षदों के माध्यम से ही चुने गए थे। वहीं कांग्रेस ने सरकार के फैसले का स्वागत किया है और कहा है कि इससे जनता के प्रतिनिधि पार्षदों का महत्व बढ़ेगा और वह जनता के हितों में काम कर सकेंगे।

– रीवा के लिए महत्वपूर्ण है सरकार का फैसला
सरकार द्वारा महापौर जनता से सीधे चुने जाने के बजाय पार्षदों द्वारा चुने जाने का निर्णय रीवा के लिए महत्वपूर्ण है। क्योंकि यहां पर दिसंबर महीने तक ही वर्तमान महापौर का कार्यकाल है। इसके पहले चुनाव कराया जाना है। सभी दलों एवं स्थानीय नेताओं द्वारा तैयारियां भी शुरू कर दी गई हैं। हालांकि वार्डों के परिसीमन और शहर के सीमा विस्तार को लेकर चल रही प्रक्रिया अभी पूरी नहीं हुई है। जिसके चलते माना जा रहा है कि पांच से छह महीने देरी से यहां पर चुनाव होगा, तब तक के लिए सरकार प्रशासक बैठाएगी। अब सरकार से जुड़े नेताओं के चेहरे खिल रहे हैं, उन्हें उम्मीद है कि यदि पार्षदी जीते तो अवसर मिल सकता है। वहीं भाजपाई जो एकतरफा जीत हासिल करते रहे हैं वे इसे फैसले को लोकतंत्र की हत्या करार दे रहे हैं।


पहले भी पार्षदों द्वारा महापौर चुने जाते रहे हैं, लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए ही जनता द्वारा सीधे चुनाव होने लगा। इससे पूरे शहर के लोगों की स्वीकारोक्ति होती है। नई व्यवस्था से खरीद-फरोख्त और दबाव की राजनीति में ही पूरा समय चला जाएगा, जनता के कार्य प्रभावित होंगे। अपना निर्णय सरकार को बदलना चाहिए।
कमलजीत सिंह डंग, पूर्व महापौर


लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली करारी हार के बाद डर समाया हुआ है। अब सत्ता का दुरुपयोग कर पार्षदों पर दबाव बनाकर महापौर चुनने का प्रयास होगा। अब तक लोग दो वोट डालते थे लेकिन एक वोट का अधिकार सरकार ने छीन लिया। इससे जनता के मन का नहीं धनबल और बाहुबल वाला ही महापौर चुना जाएगा।
वीरेन्द्र गुप्ता, पूर्व महापौर


जनता की इच्छा अनुसार महापौर चुने जाने से लोकतंत्र को मजबूती मिलती थी। सरकार ने बदलाव कर कांग्रेस की मनोदशा को उजागर कर दिया है। इससे साफ जाहिर होता है कि लोकतंत्र में उनका विश्वास नहीं है। सत्ता का दुरुपयोग कांग्रेस नहीं कर पाएगी रीवा में भाजपा का ही महापौर होगा।
ममता गुप्ता, महापौर


कांग्रेस पार्टी ने जनता का महत्व बढ़ाने के लिए यह निर्णय लिया है। पार्षदों पर जनता का पूरी तरह से दबाव होता है, उनके माध्यम से महापौर से भी लोग काम कराएंगे। अभी तक एमआइसी के मेंबर को खुश रखने के लिए अन्य पार्षदों की महापौर अनदेखी करते रहे हैं। जनता को इस निर्णय से अधिक लाभ होगा।
अजय मिश्रा, नेता प्रतिपक्ष नगर निगम
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