नेमुसलाइड, एनालजीन, एंट्रोक्विनाल आदि दवाओं की लंबी फेहरिस्त है जिन्हें औषधि एवं प्रशाधन मंत्रालय ने प्रतिबंध कर रखा है। इसके बावजूद जिले के मेडिकल स्टोरों पर प्रतिबंधित दवाएं खुलेआम बेची जा रही हैं। प्रतिबंध की जानकारी पर एक दवा विक्रेता का कहना है कि कंपनिया सप्लाई कर रही हैं और बाजार में इनकी मांग है। इसलिए बेची जा रही हैं।
ओटीसी (ओवर द काउंटर) कही जाने वाली इन दवाओं के लिए चिकित्सा एवं परामर्श जरूरी नहीं है। एक अन्य स्टॉकिस्ट ने बताया कि एनालजीन पर सरकार ने बीस साल पहले ही प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन न तो इसका उत्पादन बंद हुआ और न ही बिक्री। सरकार कहीं न कहीं नियमों में गुंजाइश छोड़ देती हैं, जिसका फायदा दवा कंपनियां उठा रहीं हैं। बताया गया कि १६ सितंबर से ही भारत सरकार ने 83 अन्य दवाओं पर भी प्रतिबंध लगा दिया है।
सलाइड दर्द निवारक हिपैटिक फाइब्रोसिस का साइड इफेक्ट (गुर्दे के ऊतको की सूजन), एंट्रोक्विनॉल (पेट की खराबी आंखों की रोशनी कम होना)। एनालजीन दर्द निवारक, बोनमैरो डिफिशिएंसी, पाइलिग्लटाजोन से मधुमेह पेशाब की थैली का कैंसर।
जिले में प्रतिदिन बीस करोड़ रुपए से ज्यादा दवाओं का कारोबार है। अकेले प्रतिबंधि दर्द निवारक दवा एनालजीन का 30 लाख रुपए का कारोबार है। कई नामों से आने वाली यह दवा मेडिकल स्टोर के साथ ही किराना की दुकानों पर बेची जा रही है। इसी तरह एंट्रोक्विनॉल का करीब बीस लाख रुपए तथा सबसे घातक नेमुस्लाइड का भी अनुमानित कारोबार 40 लाख के आस-पास है।
खाद्य एवं औषधि विभाग की ओर से प्रतिबंध के बावजूद दवाओं की बिक्री धड्ल्ले से की जा रही है। ड्रग इंस्पेक्टर (डीआई) ने जिले के मेडिकल संचालकों को अगाह किया है कि प्रतिबंध दवाओं की बिक्री पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। ड्रग इंस्पेक्टर ने प्रतिबंधित दवाओं की बिक्री पर प्रतिबंध का हवाला देते हुए मेडिकल स्टोर संचालकों को औषधि विभाग के आदेश को पालन के लिए सूचनी जारी की है। ड्रग इंस्पेक्टर ने बताया कि जिले में 1230 मेडिकल स्टोर के लाइसेंस जारी किए गए हैं।
वर्जन…
औषधि विभाग ने 323 प्रकार की दवाओं पर प्रतिबंध लगा दिया है। आदेश के पालन के लिए दवा विक्रेताओं को सूचना कर दी गई है। प्रतिबंध के बाद बिक रही है तो जांच कर कार्रवाई की जाएगी।
जय प्रकाश, ड्रग इंस्पेक्टर