करीब चार सौ साल पहले बसा यह शहर रीवा राज्य की राजधानी रहा है। इसका अपना पुराना वैभव रहा है। शहर के भीतर कई ऐतिहासिक एवं कलाकृतियों को प्रदर्शित करती इमारतें हैं, जो पर्यटकों के आकषर्ण का बड़ा केन्द्र बन सकती हैं। यहां पर्यटकों को ठहरने के लिए और इंतजामों की जरूरत है। यह संभागीय मुख्यालय है, यहां से आसपास भी पर्यटक जाते हैं।
बाघेला म्यूजियम- रीवा किले में बनाया गया म्यूजियम जहां पर बाघेल राजवंश की गौरवगाथा का वर्णन है। यहां पुराने अस्त्र-शस्त्र भी रखे गए हैं, जो बताते हैं कि उन दिनों किस तरह से युद्ध लड़े जाते थे। पेन पिस्टल सहित कई ऐसे आधुनिक हथियार हैं जो दूसरे स्थानों पर नहीं हैं। यहां शोधार्थी भी आते हैं। किला परिसर में भगवान महामृत्युंजय का मंदिर भी है।
वेंकट भवन- करीब डेढ़ सौ वर्ष पुराना यह ऐतिहासिक भवन आधुनिक नक्कासी के लिए आकर्षण बना हुआ है। यहां पर बनी एक सुरंग भी है, कहा जाता है कि प्रदेश में यह इकलौती जीवित सुरंग बची है। पर्यटन की दृष्टि से इसका प्रमोशन किए जाने की जरूरत है। इसी के सामने अमराकोठी के नाम से बिल्डिंग भी है, जिसकी कलाकृतियां आकर्षण का केन्द्र हैं।
रानीतालाब – शहर में रानीतालाब प्रमुख आकर्षण है। यहां पर काली माता का मंदिर है। जहां पर साल में दो बार नवरात्र के दिनों में मेला लगता है। तालाब परिसर का सौंदर्यीकरण कुछ साल पहले ही किया गया है। यहां तक पहुंच मार्ग की समस्या है। वह सुलभ हो जाए तो पर्यटकों की संख्या में और भी इजाफा हो सकता है। इसी तरह चिरहुला हनुमान मंदिर के पास भी तालाब का सौंदर्यीकरण हुआ है।
बैजू धर्मशाला- इस ऐतिहासिक इमारत का लोकार्पण महाराजा गुलाब सिंह ने किया था। यह बाहर से आने वाले मुसाफिरों के लिए तब से लेकर अब तक सस्ते दर पर उपलब्ध कराया जा रहा है। पर्यटकों के लिए यह भी आकर्षण हो सकता है, इसे व्यवस्थित करने की जरूरत है।
लक्ष्मणबाग देश के प्रमुख आध्यात्मिक ट्रस्टों में एक है। कई प्रदेशों में इसकी शाखाएं और मंदिर हैं। रीवा मुख्यालय है, यहां पर चारोधाम के देवी-देवताओं के दर्शन के लिए मंदिर बनाए गए हैं। सांस्कृतिक शोधार्थियों, आध्यात्म से जुड़े लोगों के लिए यह महत्वपूर्ण है। बीते कुछ समय से इस पर कब्जे के प्रयास शुरू हुए हैं, चुनाव में यह मुद्दा नहीं बन पा रहा है। जबकि शहर के लोगों ने कई बार इसके संरक्षण की मांग उठाई है।
त्योंथर विधानसभा क्षेत्र
सांची के तर्ज पर थी विकसित करने की योजना
रीवा जिले के त्योंथर तहसील अंतर्गत देउर कोठार में मौर्यकालीन बौद्ध स्तूपों की श्रृंखला है। शासन द्वारा देउर कोठार को पर्यटक स्थल तो घोषित कर दिया गया है, लेकिन उसका विकास नहीं किया गया। जबकि देउर कोठार के बौद्ध स्तूप स्थल को भरहुत के सांची की तरह विकसित किये जाने की योजना थी। यह योजना पर्यटन के क्षेत्र में राजनैतिक इच्छाशक्ति कमजोर होने के कारण पूरी नहीं हो पाई। जिससे पर्यटकों को लुभाने में यह स्थल कामयाब नहीं हो सका है। जबकि देउर कोठार विंध्य पहाड़ की तलहटी में हैं। जहां का दृश्य बरसात के समय कश्मीर की घाटियों की मानिंद नजर आता है। स्थानीय जनप्रतिनिधि एवं शासन-प्रशासन इस ऐतिहासिक पर्यटन स्थल को लेकर गंभीर नहीं है। शासन ने पर्यटक स्थल घोषित किया लेकिन सुविधाएं और विकास कार्य नहीं किए। यहां तक कि बौद्ध स्तूप तक पहुंचने के लिए सड़क तक तो नहीं बनाई गई। वहीं कोल राजाओं द्वारा बनवाई गई त्योंथर की कोलगढ़ी भी उपेक्षित हैं जबकि इसे ऐतिहासिक धरोहर के रूप में मान गया है।
एक रात में बना था मंदिर, अब सुविधाओं के लिए मोहताज
किवदंती है कि देवतालाब स्थित महादेव का मंदिर भगवान विश्वकर्मा ने एक रात में बनाया था। यही वजह है कि इस मंदिर की शिल्पकला बेजोड़ है। मंदिर में स्थापित शिवलिंग भी एक जैसे ही हैं। लोग चारों धाम की यात्रा करने के लिए जाते हैं लेकिन अंत में जब तक देवतालाब के महादेव को जल नहीं चढ़ाते उनकी यात्रा पूरी नहीं होती। जिससे न केवल रीवा जिला बल्कि आसपास कई जिलों के लोगों के साथ ही यूपी एवं बिहार के लोग भी बड़ी संख्या में शिव को जल चढ़ाने देवतालाब आते हैं। यहां महादेव का मुख्य मंदिर एवं एक छोटा सा तालाब है, जिसमें हमेशा पानी रहता है। देवतालाब के शिव मंदिर को शासन-प्रशासन द्वारा धार्मिक स्थल के रूप में विकसित करने का वायदा तो किया गया, लेकिन अभी तक पर्याप्त बजट इसके लिए नहीं दिया गया। जससे मुख्य मार्ग से मंदिर तक पहुंचने के लिए सड़क भी ठीकठाक नहीं बनी है। वहीं मदिर परिसर में स्वच्छ पेयजल एवं अन्य प्रसाधन नहीं हैं। जिससे बाहर से आने लोगों को वहां पर परेशानी होती है।
रीवा मुख्यालय से महज 15 किमी पर गोविंदगढ़ कस्बा है। जहां रीवा राजघराने का किला और ऐतिहासिक व विशाल गोविंदगढ़ तालाब है। तालाब इतना भव्य है कि उसकी खूबसूरती और अथाह जलराशि लोगों का मन अनायास ही मोह लेती है। लेकिन वर्तमान में यह तालाब खज्जी में विलीन होता जा रहा है। तालाब के सौंदर्यीकरण के लिए अभी तक कोई ठोस योजना नहीं बनी। जबकि इसको पर्यटक स्थल के रूप में विकसित कर पर्यटकों को आकर्षित किया जा सकता था। यहीं पर किले के बदल में प्रसिद्ध सुदरजा आम का बगीचा भी है जिसे देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं।
————————-
उपेक्षित है सफेद शेर मोहन का घर
रीवा राजा गोंविदगढ़ का किला भी प्रशासन के आधीन है। यह वहीं ऐतिहासिक किला है जहां तत्कालीन महाराजा मार्तण्ड सिंह ने सीधी के जंगलों में पकडऩे के बाद सफेद शेर मोहन को रखा था और विश्व का पहला सफेद शेरों का प्रजनन केन्द्र भी यही स्थल है। यहां पर ह्वाइट टाइगर सफारी बनाने का प्रस्ताव भी था और रीवा रियासत के पूर्व मंत्री पुष्पराज सिंह ने इसके लिए जमीन देने को भी तैयार थे लेकिन उसको मुकुंदपुर में बना दिया गया। चूंकि गोविंदगढ़ किले से विश्व प्रसिद्ध सफेद शेर मोहन की यादें जुड़ी हैं, इसलिए इसको पर्यटन केन्द्र के रूप में विकसित किया जा सकत है।
–
भैरवबाबा मंदिर – दसवीं शताब्दी में निर्मित कराई गई यह भव्य प्रतिमा गुढ़ के खाम्हडीह गांव में स्थित है। ८.५० मीटर लंबाई और ३.७० मीटर चौड़ाई की यह भैरव प्रतिमा आकार और चित्रण के मामले में अनोखी है। इस स्थान को पूर्व में पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने का दावा किया गया था लेकिन अब तक बदहाल स्थिति है।
शैलचित्र- आदि मानव के काल में बनाए गए शैल चित्र गड्डी के पहाड़ों में अब भी विद्यमान हैं। यहां पर देश के बाहर से भी पर्यटक और शोधार्थी आते हैं। इनकी सुरक्षा के साथ ही पहुंच मार्ग बनाने की जरूरत है, जिससे दूर-दूर से पर्यटक यहां पहुंच सकते हैं।
गोरगी- कल्चुरी काल में यहां पर बनाई गई प्रतिमाओं के अवशेष अब भी भारी संख्या में मौजूद हैं। पूर्व में यहां से सैकड़ों प्रतिमाएं निकाली जा चुकी हैं और अलग-अलग संग्रहालयों में रखी गई हैं। रीवा के पद्मधर पार्क में हर गौरी की बड़ी प्रतिमा यहीं से लाकर रखी गई है। गोरगी में कल्चुरीकालीन सभ्यता को बचाने के लिए संरक्षण की जरूरत है।
–
पुरवा फाल- पुरवा में टमस नदी में एक बड़ा प्रपात स्थित है। बरसात के दिनों में पर्यटकों के लिए यह प्रमुख आकर्षण रहता है। यहां दूर-दूर से पर्यटक प्रकृति का नजारा देखने के लिए आते हैं। कुछ समय पहले यहां सुरक्षा के इंतजाम किए गए थे, उन्हें फिर से व्यवस्थित करने की जरूरत है। साथ ही पर्यटकों के ठहरने का इंतजाम भी करने की जरूरत है।
बसामन मामा- यह धार्मिक स्थल है, जहां पर आसपास के लोग भारी संख्या में पहुंचते हैं। इस स्थान में भी अपेक्षा के अनुरूप संसाधन उपलब्ध नहीं कराए जा सके हंै, जिसके चलते दूर से यहां पर पर्यटक नहीं आ पा रहे हैं।
—
क्योंटी- यहां पर किला १३वीं शताब्दी में बनाया गया था, यह ऐतिहासिक धरोहर है। यहां पर कल्चुरी कालीन शिलालेख हैं, जल प्रपात, भैरव बाबा मंदिर के साथ ही अन्य प्राकृतिक नजारे यहां से दिखाई देते हैं। पर्यटकों को आकर्षित करने का यह प्रमुख केन्द्र के रूम में विकसित किया जा सकता है। कुछ समय पहले ही इसे संरक्षित स्मारक की सूची से हटाया गया है।
चचाई प्रपात- यहां पर बड़ा जलप्रपात है लेकिन बीहर बराज से पानी नहीं छोड़े जाने की वजह से यह सूखा पड़ा रहता है। बारिश के दिनों में यहां का नजारा देखने पर्यटक पहुंचते हैं। अन्य समय पर भी बीहर बराज का पानी छोड़ा जाए तो यहां नियमित पर्यटकों की संख्या बढ़ सकती है।
घिनौची धाम- प्रकृति का अद्भुत स्थल है, यहां पर दूधियाधार से बहने वाले पानी से हर समय शिवलिंग का जलाभिषेक होता है। चारों ओर पहाड़ से घिरा यह स्थल बीते कुछ समय से पर्यटकों को आकर्षित कर रहा है। इसी तरह टोंस वाटर फाल एवं आल्हाघाट को भी संरक्षित करने की योजना बनाई गई है।
गोहटा- यहां पर शिवलिंगों एवं मूर्तियों की श्रृंखला है, इको टूरिज्म की संभावना है। टमस नदी में वोटिंग की संभावनाएं हैं।
—
बहुती प्रपात- प्रकृति का प्रमुख आकर्षण यहां पर है, जलप्रपात को देखने यहां पर दूर-दूर से लोग आते हैं। यहां की खूबसूरती जिस तरह से है, उस गति से संसाधन मुहैया नहीं कराए गए हैं। आवागमन और ठहने की व्यवस्था बने तो पर्यटन की बड़ी संभावना है।
हटेश्वरनाथ- हाटा गांव में बड़ा शिवमंदिर है, जहां पर हर सोमवार को भारी संख्या में श्रद्धालुओं का जमावड़ा होता है। सावन के महीने के साथ ही बसंत पंचमी और महाशिवरात्रि के दिन बड़े मेले भी लगते हैं। यह स्थल भी दुर्दशा का शिकार होता जा रहा है।
गणेशन मंदिर- बरांव गांव में यह मंदिर है, जिसकी बड़ी धार्मिक मान्यता है। यहां पर मन्नतें लेकर उत्तर प्रदेश के लोग भी आते हैं। इसके भी विस्तार की जरूरत है। आवागमन के साथ ही वहां पर सुरक्षा और ठहरने के संसाधनों की जरूरत बताई जा रही है।्र
—
पर्यटन को बढ़ाने के लिए पहली जरूरत है पहुंच मार्ग की। रीवा को हवाई की नियमित सेवा से जोड़ा जाना चाहिए, जिससे दूर से भी पर्यटक आसानी के साथ यहां पहुंच सकें। इसके साथ ही पर्यटन स्थलों तक पहुंचने के लिए सड़क मार्गों का दुरुस्थ होना आवश्यक है। कई स्थान ऐसे हैं जहां पर सड़कों की खस्ता हाल की वजह से पहुंच पाना मुश्किल होता है। इसी तरह कोई पर्यटक बाहर से आता है तो दो से तीन दिन का पैकेज बनाकर आता है। जिससे रीवा और आसपास के स्थानों को वह देख सके। इसलिए रीवा में ठहरने की उत्तम व्यवस्था के साथ ही ट्रेवल्स की भी व्यवस्था जरूरी है।