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पति-बच्चों की देखभाल को उठाया बीड़ा तो खुद जा पहुंची खाट पर, अब बेबसी और लाचारी में कट रही इनकी जिंदगी

locationसीकरPublished: Feb 21, 2017 10:51:00 am

Submitted by:

dinesh rathore

आर्थिक तंगी के कारण न खुद का उपचार करवा पा रहे है और न ही ठीक से बच्चों का पालन पोषण कर पा रहे है। यह पीड़ा है। मूंडरू गांव के जितेन्द्र व उसकी पत्नी पुष्पा की। 35 वर्षीय जितेन्द्र वर्मा गांव में कपड़े सिलाई कर परिवार का भरण-पोषण कर रहा था।

पति की बेबसी व लाचारी पर पत्नी ने जिम्मेदारी का बीड़ा उठाया, लेकिन कुछ दिनों बाद ही पत्नी भी लाचार हो गई। पति पत्नी दोनों की जिंदगी अब खाट पर कट रही है। आर्थिक तंगी के कारण न खुद का उपचार करवा पा रहे है और न ही ठीक से बच्चों का पालन पोषण कर पा रहे है। यह पीड़ा है। मूंडरू गांव के जितेन्द्र व उसकी पत्नी पुष्पा की। 35 वर्षीय जितेन्द्र वर्मा गांव में कपड़े सिलाई कर परिवार का भरण-पोषण कर रहा था। चार साल पहले एक रोज वह बीमार हुआ, जिसने उसकी पूरी जिंदगी ही बदल दी। जांच में चिकित्सकों ने उसकी दोनों किडनी खराब होना बताया। तब से जितेन्द्र की खाट ही दुनिया बनकर रह गई। मजदूरी कर परिवार का पालन पोषण व जितेन्द्र का उपचार करवा रही पत्नी पुष्पा को भी स्लिप डिस्क की बीमारी ने घर बैठा दिया। ऐसे में न केवल जितेन्द्र बेबस व लाचार है, बल्कि बीमारी ने उसकी पत्नी की भी कमर तोड़ दी। जितेन्द्र ने बताया कि राम तो उनसे रूठ ही गया, अब राज भी उनकी सुध नहीं ले रहा है। 
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कब ठीक होंगे पापा

चार साल से चारपाई पर लेटे अपने पिता जितेन्द्र को देखकर उसके बच्चों की आंखों में आंसू झलक आते है। स्कूल से आने के बाद दोनों भाई-बहिन पिता की सेवा में जुट जाते है। बेबस पिता को देखकर हर आने-जाने वालों से बेटी तनिका एक ही सवाल करती है कि उसके मम्मी-पापा कब ठीक होंगे।
जितेन्द्र व उसकी पत्नी पुष्पा का उपचार एसएमएस अस्पताल जयपुर में चल रहा है। जितेन्द्र ने उपचार के लिए बीपीएल राशन कार्ड, भामाशाह स्वास्थ्य कार्ड व श्रम डायरी भी बनवाई, लेकिन किसी का भी कोई फायदा नहीं मिल पा रहा है। पुष्पा देवी ने बताया कि सामान्य जांचे व दवाईयां अस्पताल से निशुल्क मिल जाती है, लेकिन महंगी जांचे व अधिकांश दवाईयां बाहर से खरीदनी पड़ती है। जिनका खर्च भी खुद को ही वहन करना पड़ रहा है। पुष्पा देवी ने बताया कि चिकित्सक पति के उपचार के लिए पांच बार डायलिसिस कर चुके है। हर बार की डायलिसिस, जांच व दवाओं का खर्च करीब 50 हजार तक होता है। लेकिन अब तो उसकी बीमारी के कारण उसने भी खाट पकड़ ली है। चिकित्सकों ने पति जितेन्द्र को किडनी का तथा पुष्पा को रीढ का ऑपरेशन बता दिया, लेकिन रुपए नहीं होने से वह न तो पति का ऑपरेशन करवा पा रही है और ना ही खुद का। अब पुष्पा देवी को अपनी लाडो के विवाह, पति व खुद के ऑपरेशन व उपचार के खर्चे के साथ-साथ पति के ईलाज के लिए लिया उधार पैसा चुकाने की चिंता सताने लगी है।
पीडि़त परिवार की बीपीएल, भामाशाह स्वास्थ्य कार्ड व श्रमिक डायरी बनवाई गई है तथा ग्राम पंचायत स्तर तक की सम्पूर्ण सुविधाए उपलब्ध करवाई जा रही है, लेकिन इलाज के लिए मदद की जरुरत है।
सुमित्रा मिश्रा, सरपंच

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