खनिज माफिया ने अपनी खुद की सड़कें वन क्षेत्र से बनवा ली थी। इस अवैध परिवहन के चलते गांवों की सड़कें भी खराब हो गई थी। जिसके चलते स्थानीय लोगों ने इस अवैधानिक उत्खनन और परिवहन को लेकर मुख्यमंत्री एवं वन मुख्यालय तक शिकायत की थी। जिसमें स्थानीय वन अमले की मिलीभगत का आरोप था। रात्रि के समय बड़ी संख्या में पत्थर और मुरुम की निकासी हो रही थी।
औपचारिक खानापूर्ति के लिए जांच कराई गई लेकिन कई ऐसे बिन्दु इस रिपोर्ट में उल्लेखित किए गए जिन्हें नजरंदाज करते हुए पूरी फाइल ही दबा दी गई थी। अब दोबारा शिकायत मुख्यालय पहुंची तो फिर से वन अधिकारियों से रिपोर्ट मांगी गई है। उस दौरान कई ऐसी तस्वीरें वायरल हुई थी, जिनसे स्पष्ट हो रहा था कि अवैध उत्खनन और परिवहन हो रहा है। साथ ही खनिज माफिया द्वारा वन भूमि पर ही क्रशर प्लांट लगाया गया था, इसकी किसी तरह से अनुमति नहीं थी। जांच अधिकारियों ने इसकी अनदेखी कर दी।
तीन बीटों में कराई गई थी जांच
सिरमौर रेंज के पडऱी, मरैला, चचाई आदि बीट क्षेत्रों में अवैध उत्खनन और परिवहन की जांच कराई गई थी। ‘पत्रिकाÓ द्वारा अवैध उत्खनन को लेकर प्रकाशित की गई खबरों के हवाले से मुख्य वन संरक्षक ने मऊगंज के उप वनमंडलाधिकारी के नेतृत्व में टीम गठित कर जांच कराई थी। जांच अधिकारियों ने मौके पर व्यापक रूप से अवैध उत्खनन और परिवहन के साक्ष्य देखे थे। जांच रिपोर्ट डीएफओ कार्यालय से सीसीएफ कार्यालय को भेजी गई लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
सिरमौर रेंज के पडऱी, मरैला, चचाई आदि बीट क्षेत्रों में अवैध उत्खनन और परिवहन की जांच कराई गई थी। ‘पत्रिकाÓ द्वारा अवैध उत्खनन को लेकर प्रकाशित की गई खबरों के हवाले से मुख्य वन संरक्षक ने मऊगंज के उप वनमंडलाधिकारी के नेतृत्व में टीम गठित कर जांच कराई थी। जांच अधिकारियों ने मौके पर व्यापक रूप से अवैध उत्खनन और परिवहन के साक्ष्य देखे थे। जांच रिपोर्ट डीएफओ कार्यालय से सीसीएफ कार्यालय को भेजी गई लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
– टीएचसी की नहर पिचिंग के पत्थर भी हो गए चोरी
टोंस हाइडल कार्पोरेशन की ओर से वर्षों पुराने पत्थर की नीलामी की गई थी। इसके परिवहन की आड़ में बड़ी मात्रा में पत्थर और मुरुम का उत्खनन किया गया। जांच रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख है कि नहर किनारे पत्थर एक हिस्से का निकाला जा चुका है। इससे नहर को भी खतरा उत्पन्न होने की आशंका है। पत्थरों की पिचिंग नहर की मजबूती के लिए ही की गई थी।
– जांच रिपोर्ट भी गुमराह करने वाली
जांच रिपोर्ट में विभाग के कर्मचारी और अधिकारियों को बचाने का भी प्रयास किया गया है। सीसीएफ को जो रिपोर्ट दी गई, उसमें कहा गया है कि अवैध उत्खनन कहीं नहीं हो रहा है। इस मामले की शिकायत करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी, सर्वेश सोनी आदि ने फिर से जांच करने की मांग उठाई है। आरोप है कि वन भूमि से बनाई गई सड़क की फोटो पहले ही समाचार के साथ प्रकाशित हो चुकी थी, इसलिए उसे नजरंदाज नहीं कर पाए। रिपोर्ट में कहा गया है कि वन भूमि का उपयोग अवैध परिवहन के लिए किया गया है। इसे रोकने की भी जवाबदेही वन विभाग की ही है। जिस दौरान जांच शुरू की गई तो संबंधित बीट गार्ड ने रात्रि में जेसीबी से उन रास्तों को काटने का प्रयास किया था, जहां से वन क्षेत्र में वाहनों का प्रवेश होता है। ऐसा इसलिए किया गया ताकि जांच दल का वाहन उस क्षेत्र में नहीं पहुंच पाए। डभौरा के तत्कालीन रेंजर ने अपने प्रतिवेदन में कहा था कि बिना किसी रायल्टी के बड़े पैमाने पर अवैध परिवहन किया जा रहा है। वन भूमि में वाहनों के प्रवेश करने के लिए उपयोग किए जाने वाले रास्ते का भी उल्लेख था।
– अब तक जवाबदेही तय नहीं
वन भूमि में अवैध परिवहन की बात जांच रिपोर्ट में स्वीकार करने के बाद भी अब तक अधिकारी, कर्मचारियों की जवाबदेही तय नहीं हो पाई है। इसकी शिकायतें लगातार की जा रही हैं। पीसीसीएफ ने भोपाल से एपीसीसीएफ को इस मामले की जांच के निर्देश दिए हैं। उनका दौरा निर्धारित किया गया था लेकिन हाल ही में स्थगित किया गया है। बताया जा रहा है सितंबर के आखिरी या फिर अक्टूबर के पहले सप्ताह में वह रीवा आ सकते हैं।