अध्यक्षता विभागाध्यक्ष डॉ. केके शर्मा ने की। विशिष्ट अतिथि केशरवानी महाविद्यालय जबलपुर के समाजशास्त्र विभाग के प्राध्यापक डॉ. धु्रव दीक्षित रहें। मु य अतिथि डॉ ठाकुर ने कहा कि देश में शोध कार्य को बढ़ावा देने के लिए प्रयास किए जाते रहे हैं, लेकिन आज भी देश में हो रहे शोध की न केवल मात्रा बल्कि उसकी गुणवत्ता में हम अन्य देशों की तुलना में काफी पिछड़े हुए हैं।
आधुनिक भारत में शोध की परंपरा औपनिवेशिक काल में स्थापित विश्वविद्यालयों और संस्थानों में शुरू हुई। जो अभी भी उसी ढर्रे पर चल रही है। उन्होंने कहा कि, कभी-कभी शोध की वरीयताओं को लेकर सोच-विचार जरूर किया गया है और कुछ बदलाव भी आए हैं परंतु शोध की संस्कृति ज्यादातर अध्ययन केंद्रों पर अपनी पुरानी पद्धति पर ही चलती आ रही है।
शिक्षक को हमेशा छात्र की भांति सोचना चाहिए
डॉ. ध्रुव दीक्षित ने कहा कि, अधिकांश शिक्षा केंद्रों पर शोध एक पिटी पिटाई कवायद की तरह होता है। प्रत्येक शिक्षक को हमेशा एक छात्र की भॉति सोचना चाहिए एवं अपनी जिज्ञासा को बनाये रखना चाहिये। सामाजिक अनुसंधान के विविध आयामों पर विचार प्रस्तुत किया।
राजनीति विज्ञान के प्राध्यापक डॉ. एस.पी शुक्ल ने सामाजिक अनुसंधान की तकनीकों पर अपनी बात रखी। डॉ. अखिलेश शुक्ल ने शोध पत्र एवं शोध प्रबंध तैयार करने के चरणो पर शोध पत्र प्रस्तुत किया।संयोजक डॉ. महेश शुक्ल ने कार्यशाला का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. अखिलेश शुक्ल ने किया। डॉ. शाहेदा सिद्धीकी ने आभार प्रदर्शन किया। कार्यशाला में डॉ. केके सिंह दुबे, डॉ. महानन्द द्विवेदी, डॉ. श्रीनिवास मिश्र, डॉ. महेन्द्रमणि द्विवेदी, डॉ. एचजीआर त्रिपाठी, डॉ. मधुलिका श्रीवास्तव, डॉ. अनिल द्विवेदी, प्रो. निशा सिंह, प्रो. शिवबिहारी कुशवाहा, प्रो. प्रियंका तिवारी, अमित श्रीवास्तव सहित कई लोग उपस्थित रहे।