गुजरात से रीवा आने में 4500 रुपए किराया देना पड़ा। नरसिंगपुर से दो बुजुर्ग तीन दिन बाद रीवा पहुंचे। रीवा के चोरगढ़ी निवासी बुजुर्गो ने कहा, पंद्रह दिन तक चना खाकर जिंदगी बिताई। आज रीवा पहुंचे तो भोजन मिला। पैदल चलते-चलते पैर में छाले पड़ गए हैं। ये कहानी अकेले एक दो श्रमिकों या प्रवासियों की नहीं। बल्कि लौटकर आए अधिकांश श्रमिकों की रही।
एसडीएम हुजूर फरहीन खान ने बताया कि सोमवार को प्रदेश के बाहर से अलग-अलग दिनों में अब तक 5 से अधिक लोग आए। दोपहर तक रीवा, सीधी के लिए बसें रवाना की गई। हनुमना, मऊगंज, सीधी के अधिक लोग रहे। प्रदेश के बाहर के अलावा राज्य के बड़े शहरों से भी लोग आने लगे हैं। सभी की स्क्रीनिंग की गई। प्रमाण पत्र देकर भेजा गया है।
प्रदेश के बाहर से आने वाले श्रमिकों को बसों पर दो की जगह चार-चार लोगों को बैठाकर भेज दिया। रास्ते में परेशान होने के साथ ही सोशल डिस्टेंस की व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त रहीा। सूरत से आए दंपत ने बताया कि साथ में एक बेटा भी है। इसके अलावा दो बड़े-बड़े बैग। ऐसे में तीन सीट पर चार लोगों को बैठा दिया। जबकि दो-दो लोगों को ही बैठने के लिए वहां पर एनाउंस किया जा रहा था। रीवा पहुंचने के बाद भी एक-एक बसों पर 40-45 लोगों को औसत बैठाकर गांव के लिए रवाना किया गया।
देवतालाब निवासी जितेन्द्र पटेल परिवार के साथ सूरत में रहते हैं। काम बंद होने के बाद खाने-पीने की दिक्कत होने लगी। कई बार आनलाइ आवेदन किया। लेकिन, कोई हल नहीं निकला। तीन दिन पहले सूचना मिली कि सूरत से बस मध्य प्रदेश जा रही है। बस में परिचालक से संपर्क किया तो बताया कि तीन-तीन हजार रुपए लगेंगे। साथ के ही कुछ लोग अभी भी वहीं पर है। पड़ोसियों से कर्ज लेकर आए हैं। घर पहुंचने के बाद खाते में पैसे वापस कर देंगे।