रीवा। समय से पूर्व जन्म लेने वाले प्री-मेच्योर बच्चों में रेटिनोपैथी ऑफ प्री मेच्योरिटी की बीमारी पायी जाती है। पत्रिका से बातचीत में डॉ. अनामिका द्विवेदी ने बताया कि विंध्य में साढ़े आठ माह से कम समय में जन्म लेने वाले 30 प्रतिशत बच्चों में अंधेपन की यह बीमारी होती है। जिसमें से 6 प्रतिशत बच्चे क्रिटिकल अवस्था के होते हैं। अगर इनका चार सप्ताह के भीतर उपचार नहीं किया जाए तो वे अंधेपन का शिकार हो सकते हैं। जीएमएच के नेत्र विभाग में नियुक्ति के बाद ऐसे बच्चों की स्क्रीनिंग कराई गई थी। परिणाम चौकाने वाले थे। रेटिनोपैथी ऑफ प्री मेच्योरिटी का इलाज जीएमएच में संभव नहीं था। रेफर करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं होता था। इलाज के लिए लेजर तकनीकी युक्त ऑपरेशन के लिए मशीन की जरूरत थी। इसके लिए विभागाध्यक्ष डॉ. शशि जैन के निर्देशन में प्रस्ताव तैयार किया गया। अक्टूबर 2016 में लेजर तकनीकी से युक्त मशीन जीएमएच को दी गई। जिसके बाद से लेजर तकनीकी से प्री-मेच्योर बच्चों की आंखों की रेटिना के ऑपरेशन शुरू किए। अभी तक 36 प्री-मेच्योर बच्चों की आंखों की रोशनी बचाई जा चुकी है। मुख्य बात ये है कि गांधी स्मारक चिकित्सालय में यह नि:शुल्क आपरेशन हो जाता है।
स्क्रीनिंग से ही पता चतली है ये बीमारी
डॉ. अनामिका ने कहा कि इस बीमारी का कोई लक्षण नहीं होता है। न ही बच्चे बता पाते हैं। माता-पिता को भी इसका आभास नहीं होता है। इस बीमारी को ट्रैस करने के लिए जीएमएच में स्क्रीनिंग की जाती है। 8 महीने से कम समय पर जन्में बच्चों की आंखों की स्क्रीनिंग की जाती है। रेटिया के एरिया में खून की नसों के दबने से विकृति पैदा हो जाती है। जिसका ऑपरेशन जन्म लेने के चार सप्ताह के भीतर कराना अनिवार्य है। तभी रोशनी बचाई जा सकती है।
अब प्रदेश के नेत्र विशेषज्ञों को देंगी ट्रेनिंग
रीवा के जीएमएच में रेटिनोपैथी ऑफ प्री मेच्योरिटी बीमारी से हो रहे नवजात शिशुओं में अंधेपन को रोकने में कामयाबी मिली है। जिसे देखते हुए चिकित्सा शिक्षा विभाग ने प्रदेश भर का टे्रनिंग सेंटर जीएमएच को बनाने की बात कही है। आने वाले दिनों में नेत्र रोग विशेषज्ञ यहां ट्रेनिंग लेंगे और प्री-मेच्योर बच्चों में अंधेपन की बीमारी ट्रैस करने के साथ इलाज के लिए यहां भेजेंगे। डॉ. अनामिका ने कहा कि इस दिशा में कार्य चल रहा है। विंध्य में सतना, सीधी, सिंगरौली, शहडोल, अनूपपुर, पन्ना और उमरिया से बहुत कम बच्चे आ रहे हैं। अनजाने में बच्चे इलाज के अभाव के अंधेपन के शिकार न हो इसके लिए सभी जिलों में जागरुकता कार्यक्रम स्वास्थ्य विभाग को चलाने की जरूरत है।
ये भी जानिए…
-2 किग्रा. से कम वजन के प्री-मेच्योर बच्चों की स्क्रीनिंग होनी चाहिए।
-4 सप्ताह या 30 दिन की उम्र में आंखों का ऑपरेशन हो जाना चाहिए।
-अंधेपन को रोकने के लिए केंद्र ने ’30 दिन रोशनी केÓ थीम दी है।
-जीएमएच में ओपीडी में सुबह 9 से दोपहर 1.30 बजे तक स्क्रीनिंग होती है।
स्क्रीनिंग से ही पता चतली है ये बीमारी
डॉ. अनामिका ने कहा कि इस बीमारी का कोई लक्षण नहीं होता है। न ही बच्चे बता पाते हैं। माता-पिता को भी इसका आभास नहीं होता है। इस बीमारी को ट्रैस करने के लिए जीएमएच में स्क्रीनिंग की जाती है। 8 महीने से कम समय पर जन्में बच्चों की आंखों की स्क्रीनिंग की जाती है। रेटिया के एरिया में खून की नसों के दबने से विकृति पैदा हो जाती है। जिसका ऑपरेशन जन्म लेने के चार सप्ताह के भीतर कराना अनिवार्य है। तभी रोशनी बचाई जा सकती है।
अब प्रदेश के नेत्र विशेषज्ञों को देंगी ट्रेनिंग
रीवा के जीएमएच में रेटिनोपैथी ऑफ प्री मेच्योरिटी बीमारी से हो रहे नवजात शिशुओं में अंधेपन को रोकने में कामयाबी मिली है। जिसे देखते हुए चिकित्सा शिक्षा विभाग ने प्रदेश भर का टे्रनिंग सेंटर जीएमएच को बनाने की बात कही है। आने वाले दिनों में नेत्र रोग विशेषज्ञ यहां ट्रेनिंग लेंगे और प्री-मेच्योर बच्चों में अंधेपन की बीमारी ट्रैस करने के साथ इलाज के लिए यहां भेजेंगे। डॉ. अनामिका ने कहा कि इस दिशा में कार्य चल रहा है। विंध्य में सतना, सीधी, सिंगरौली, शहडोल, अनूपपुर, पन्ना और उमरिया से बहुत कम बच्चे आ रहे हैं। अनजाने में बच्चे इलाज के अभाव के अंधेपन के शिकार न हो इसके लिए सभी जिलों में जागरुकता कार्यक्रम स्वास्थ्य विभाग को चलाने की जरूरत है।
ये भी जानिए…
-2 किग्रा. से कम वजन के प्री-मेच्योर बच्चों की स्क्रीनिंग होनी चाहिए।
-4 सप्ताह या 30 दिन की उम्र में आंखों का ऑपरेशन हो जाना चाहिए।
-अंधेपन को रोकने के लिए केंद्र ने ’30 दिन रोशनी केÓ थीम दी है।
-जीएमएच में ओपीडी में सुबह 9 से दोपहर 1.30 बजे तक स्क्रीनिंग होती है।