पूर्व में रहे निगम आयुक्त ने कई कार्रवाई कर मामले को सुर्खियों में लाया था
निलंबन को एमआइसी ने सहमति नहीं दी। करीब महीनेभर मामला लंबित रहा, इसी बीच आयुक्त ने उन नियमों का हवाला देते हुए दोनों अधिकारियों को निलंबित कर दिया जिसमें एमआइसी दस दिन के भीतर किसी प्रस्ताव पर निर्णय नहीं लेती तो उसे स्वीकृत माना जाता है। मामला हाईकोर्ट पहुंचा, जहां से एमआइसी को जिम्मेदारी सौंपी गई। एमआइसी ने अपना पुरान रुख अपनाया और निलंबन की सहमति नहीं दी। बता दें कि स्कीम नंबर छह के लिए ९२.३७ एकड़ भूमि अधिग्रहित की गई थी, जिसमें २८ एकड़ भूमि सरकारी थी। वर्तमान में पूरे हिस्से में कॉलोनियां बन गई हैं, अब निगम के पास ऐसा कोई भी हिस्सा नहीं बचा है जहां पर वह मकानों का निर्माण करा सके।
निलंबन को एमआइसी ने सहमति नहीं दी। करीब महीनेभर मामला लंबित रहा, इसी बीच आयुक्त ने उन नियमों का हवाला देते हुए दोनों अधिकारियों को निलंबित कर दिया जिसमें एमआइसी दस दिन के भीतर किसी प्रस्ताव पर निर्णय नहीं लेती तो उसे स्वीकृत माना जाता है। मामला हाईकोर्ट पहुंचा, जहां से एमआइसी को जिम्मेदारी सौंपी गई। एमआइसी ने अपना पुरान रुख अपनाया और निलंबन की सहमति नहीं दी। बता दें कि स्कीम नंबर छह के लिए ९२.३७ एकड़ भूमि अधिग्रहित की गई थी, जिसमें २८ एकड़ भूमि सरकारी थी। वर्तमान में पूरे हिस्से में कॉलोनियां बन गई हैं, अब निगम के पास ऐसा कोई भी हिस्सा नहीं बचा है जहां पर वह मकानों का निर्माण करा सके।
निगम ने किया है मूल्यांकन
स्कीम नंबर छह में सुधार न्यास द्वारा भूमि अधिग्रहण किया और न्यास नगर निगम में समाहित हो गया। निगम के अधिकारियों ने यहां पर अवैध रूप से बसाई जा रही कॉलोनी पर रोक नहीं लगाई बल्कि सहमति ही दी। बीते साल जांच के बाद निगम आयुक्त ने शासन को रिपोर्ट भेजी की करीब 300 करोड़ रुपए का घोटाला हुआ है। इसका सीमांकन कराने के साथ ही अवैध मकानों को तोडऩे की अनुमति भी मांगी। मामला गंभीर होता गया, प्रमुख सचिव ने कलेक्टर से पूरी जांच रिपोर्ट तलब की। कलेक्टर ने तीन महीने का समय मांगा था और एसडीएम की अध्यक्षता में जांच कमेटी गठित की थी, जिस पर अब तक जांच पूरी नहीं हुई है। हाइप्रोफाइल होते मामले को देख जांच अधिकारियों ने भी दूरी बनाई और अब तक एक बार भी मौके का मुआयना करने नहीं पहुंचे हैं।
स्कीम नंबर छह में सुधार न्यास द्वारा भूमि अधिग्रहण किया और न्यास नगर निगम में समाहित हो गया। निगम के अधिकारियों ने यहां पर अवैध रूप से बसाई जा रही कॉलोनी पर रोक नहीं लगाई बल्कि सहमति ही दी। बीते साल जांच के बाद निगम आयुक्त ने शासन को रिपोर्ट भेजी की करीब 300 करोड़ रुपए का घोटाला हुआ है। इसका सीमांकन कराने के साथ ही अवैध मकानों को तोडऩे की अनुमति भी मांगी। मामला गंभीर होता गया, प्रमुख सचिव ने कलेक्टर से पूरी जांच रिपोर्ट तलब की। कलेक्टर ने तीन महीने का समय मांगा था और एसडीएम की अध्यक्षता में जांच कमेटी गठित की थी, जिस पर अब तक जांच पूरी नहीं हुई है। हाइप्रोफाइल होते मामले को देख जांच अधिकारियों ने भी दूरी बनाई और अब तक एक बार भी मौके का मुआयना करने नहीं पहुंचे हैं।
सांसद ने इसी मामले में दी थी चुनौती
स्कीम नंबर छह की जांच के खिलाफ भाजपा ने खुलकर मोर्चा खोल दिया था। स्कीम में बसे लोगों के बीच सभा को संबोधित करते हुए सांसद जनार्दन मिश्रा ने तीखे शब्दों का उपयोग करते हुए तत्कालीन निगम आयुक्त सभाजीत यादव को जिंदा दफनाने की धमकी दी थी। जिसके बाद से कई दिनों तक विरोध प्रदर्शन हुआ था।
स्कीम नंबर छह की जांच के खिलाफ भाजपा ने खुलकर मोर्चा खोल दिया था। स्कीम में बसे लोगों के बीच सभा को संबोधित करते हुए सांसद जनार्दन मिश्रा ने तीखे शब्दों का उपयोग करते हुए तत्कालीन निगम आयुक्त सभाजीत यादव को जिंदा दफनाने की धमकी दी थी। जिसके बाद से कई दिनों तक विरोध प्रदर्शन हुआ था।