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दुनियादारी में न फंसो इतना कि जिंदगी इक बवाल हो जाए, पढि़ए पूरी खबर

locationरीवाPublished: May 21, 2019 01:54:16 pm

Submitted by:

Rajesh Patel

मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन इकाई रीवा की अगुवाई में विचार एवं कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया

Seminar in Madhya Pradesh Hindi Sahitya Sammelan

Seminar in Madhya Pradesh Hindi Sahitya Sammelan

रीवा. मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन इकाई रीवा की अगुवाई में विचार एवं कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया। शिवशंकर त्रिपाठी शिवाला की अध्यक्षता में आयोजित विचार गोष्ठी में ‘समाज की कसौटी पर कविता तब और अब’ विषय पर मौजूद साहित्यकार और कवियों ने अपनी-अपनी कविताएं पढ़ीं।
इतनी सी बात पर आप को डर लगने लग
श्रीयुत नगर में आयोजित विचार गोष्ठी के बतौर मुख्यअतिथि अवधेश प्रताप ङ्क्षसह विश्व विद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ दिनेश कुशवाहा रहे। इस दौरान उन्होंने कहा कि कविता हर युग में समाज की दशा और दिशा का आइना रही है। कविता का मुख्य मकसद समाज को दिशाहीननता से बचाना तब भी था और अब भी है। उन्होंने कविता पढ़ी कि अगर मैं आपसे कहां कि सोच लीजिए, और इतनी से बात पर आप को डर लगने लगे, तो सोच लीजिए।
सत्ता कायम करने वाली ताकत का नाम है कविता
इसी तरह अध्यक्षीय उद्बोधन के दौरान शिवशंकर शिवाला ने कहा कि अंधेरे को चीरकर उजाले की सत्ता कायम करने वाली ताकत का नाम है कविता। इस ताकत का एहसासत और प्रयोग रचनाकार की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। शिवाला ने विसंगितयों पर यह गीत पढ़ा कि ‘मैं अपना अहसास लिखूं या उनका मन लिख दूं, लिख दूं मैं मुस्कान किसी की, या कन्दन लिख दूं। इसी तरह डॉ विनोद विश्वकर्ता ने कहा कि कविता और समाज मनुष्यता के लिए एक दूसरे के लिए पूरक है।
चल रही सिरफिरी हवा फिर से
गोष्ठी का संचालन कर रहे भृगुनाथ पांडेय ने काशी काकू के सब हेरान शीर्षक से बघेली बोलीर में कविता पढक़र तब और अब के सामाजिक स्वरुप की झांकी प्रस्तुत की। इसके पूर्व कवि गोष्ठी का आगाज अशोक बैरागी की व्यंग कविताओं के साथ हुआ। शायर हसमत रीवानी ने पढ़ी कि ‘चल रही सिरफिरी हवा फिर से, कुछ बुरा हो न एै खुदा फिर से। इसी तरह नगर की चर्चित कावित्री डॉ आरती तिवारी ने गजल से गोष्ठी में समा बांध दी।
चेहरे पर नकावो की तरह चेहरे हैं
उन्होंने पेश किया कि खतरो से भरी है ये डगर जान लीजिए, तब जा के अपने दिल का कहा मान लीजिए, चेहरे पर नकावों की तरह चेहरे हैं कई, हांथों में हांथ कोई न अनजान लीजिए। कवि नागेन्द्र मिश्र ने शेरों के साथ अगे बढ़ा। उन्होंने शेर सुनाया कि कोई ऐसा कमाल हो जाए, दुश्मनें जॉ भी ढाल हो जाए। दुनियादारी में न फंसो इतना, जिंदगी इक बवाल हो जाए। इस अवसर पर कवि अनिल उपाध्यय ने मुक्तकों के माध्यम से समाज की कुरीतियों पर सटीक कटाक्ष किया। सम्मेलन में सुष्मा पांडेय, रकेश अग्रिहोत्री, धीरत कुशवाहा, माया पांडेय, आरती उपाध्याय, छितिज पांडेय आदि रहे।
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