रीवा

Rewa ; स्कीम नंबर-6 के डि-नोटिफिकेशन के प्रयास पहले भी हुए, तकनीकी पेच में हर बार उलझता है मामला

 
– अब मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद स्थानीय लोगों में उम्मीद बढ़ी- नगर सुधार न्यास बोर्ड के भू-अर्जन प्रक्रिया की शर्तें ही डि-नोटिफिकेशन में बन रही बाधा

रीवाMay 20, 2022 / 12:23 pm

Mrigendra Singh

sqeem number 6, rewa madhya pradesh


रीवा। शहर के स्कीम नंबर छह की फाइलें एक बार फिर खोलने मुख्यमंत्री के आश्वासन के बाद इससे प्रभावित लोगों की उम्मीदें बढ़ गई हैं। नगर सुधार न्यास बोर्ड द्वारा अधिग्रहित की गई भूमि के डि-नोटिफिकेशन के प्रयास इसके पहले कई बार हुए लेकिन हर बार कुछ शर्तों की वजह से यह रुक जाता है। नगर सुधार न्यास बोर्ड के नियमों के तहत अधिग्रहित भूमि का डि-नोटिफिकेशन नहीं किया जा सकता और न ही उक्त भूमि को स्कीम से बाहर किया जा सकता है। इसी वजह से हर बार शासन के स्तर पर जब नियमों की पड़ताल होती है तो फाइल वहीं रुक जाती है। बीते साल विधायक राजेन्द्र शुक्ला की मांग पर कलेक्टर ने इस आशय का प्रस्ताव शासन को भेजा है, जो अब तक भोपाल में ही अटका हुआ है। एक बार फिर शुक्ला ने मंच से इसकी मांग की और सीएम ने कहा है कि लोगों के हित में जो भी स्पष्ट निर्णय लेने पड़ेंगे सरकार लेगी। सीएम ने मंच से आधिकारिक रूप से अभी कोई आदेश नहीं दिया है, कहा है कि मामले को देखेंगे। हालांकि मुख्यमंत्री का इतना कहना ही स्कीम नंबर छह के क्षेत्र में बसे लोगों के लिए नई ऊर्जा देने का काम कर गया है। इसके पहले स्थानीय लोग कोर्ट भी जा चुके हैं लेकिन उन्हें कोई लाभ नहीं मिल पाया है। नगर सुधार न्यास बोर्ड द्वारा स्कीम नंबर छह के लिए 92.37 एकड़ भूमि अधिग्रहित की गई थी, जिसमें 28 एकड़ भूमि सरकारी थी। वर्तमान में पूरे हिस्से में कालोनियां बन गई हैं। सुधार न्यास बोर्ड नगर निगम में समायोजित हो चुका है। इसलिए अब यह स्कीम निगम के गले की फांस बनी हुई है। इसकी देखरेख कर रहे पूर्व में कई अधिकारी निलंबित हो चुके हैं, कुछ की पेंशन भी रोकी गई है।
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चुनावों के दौरान सुर्खियों में आती है स्कीम
स्कीम नंबर छह हर बार चुनावों के दौरान सुर्खियों में आती है। नेताओं की ओर से यहां पर निवास कर रहे लोगों को आश्वासन भी दिए जाते हैं लेकिन चुनाव बाद मामला शांत हो जाता है। सत्ता से जुड़े लोगों को इसका फायदा भी मिलता रहा है। कुछ साल पहले प्रशासनिक स्तर पर जांच शुरू कराई गई तो लोगों ने पक्ष और विपक्ष दोनों को कटघरे में खड़ा किया था।
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अधिग्रहण के समय 101 खसरा नंबर थे, अब हो गए 500
गत वर्ष पूर्व कलेक्टर ने प्रमुख सचिव को एक रिपोर्ट भेजी थी। जिसमें उल्लेख किया गया था कि नगर सुधार न्यास बोर्ड द्वारा शहर के बरा मोहल्ले में 91.375 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया गया था। जिसमें 28.80 एकड़ शासकीय एवं 62.575 एकड़ निजी भूमि थी। निजी भूमि में 17.245 एकड़ भूमि स्वामियों को मुआवजा या फिर भूमि के बदले भूमि उपलब्ध कराई जा चुकी है। प्रारंभिक भू-अर्जन के समय यहां पर 101 खसरा नंबर थे, जो अब बढ़कर 500 से अधिक खसरा नंबर हो गए हैं। अधिग्रहण के बाद भी भूमि की बिक्री और बंटवारा कैसे होता रहा,इसका परीक्षण करने के लिए समय की मांग की गई थी लेकिन करीब तीन वर्ष का समय बीत रहा है लेकिन अब तक परीक्षण नहीं हो सका है।

300 करोड़ के घोटाले का आरोप नगर निगम लगा चुका है
स्कीम नंबर छह में अधिग्रहण के बाद कालोनी आबाद होती गई और नगर निगम के अधिकारियों ने उक्त भूमि को अपने कब्जे में नहीं लिया। गत वर्ष पूर्व नगर निगम आयुक्त ने शासन को एक प्रस्ताव भेजा था जिसमें करीब 300 करोड़ रुपए के घोटाले की आशंका जाहिर की थी। इसका सीमांकन कराने के साथ ही अवैध मकानों को तोडऩे की अनुमति भी मांगी गई थी। उस समय मामला राजनीतिक तूल पकड़ रहा था जिसके चलते शासन ने भी सीधे कार्रवाई की अनुमति देने के बजाए कलेक्टर से विस्तृत जांच कराने का प्रतिवेदन मांग लिया। कलेक्टर द्वारा भी उक्त अवधि बढ़ाने की मांग लगातार की जाती रही और मामला ठंडे बस्ते में चला गया। उस समय नगर निगम आयुक्त ने लोकायुक्त से जांच कराने के लिए भी प्रतिवेदन भेजा था। जिसमें निगम के कुछ अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध बताते हुए कहा गया कि जानबूझकर अवैध रूप से कालोनियां बसाई गई हैं। बड़ी रकम के घोटाले का उल्लेख होने की वजह से अधिकारी अब इससे दूर रहने का प्रयास कर रहे हैं।
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सरकारी भूमि पर भी कब्जा हो गया, निगम खाली नहीं करा पाया
स्कीम में 28.80 एकड़ भूमि सरकारी थी, उसे भी शामिल किया गया था। इस भूमि पर लोगों ने अवैध रूप से कब्जा कर लिया। जिसे खाली करा पाना निगम प्रशासन के लिए मुश्किल भरा काम साबित हो रहा है। इस भूमि पर जहां से सड़क निकाली गई थी, उस सड़क पर भी कब्जा हो चुका है। सरकारी भूमि के करीब पांच एकड़ हिस्से में ही नया बस स्टैंड नगर निगम ने बनवा दिया है। कुछ भूमि नालों में भी है। अधिकांश हिस्सा पूरी तरह से अतिक्रमण की चपेट में आ चुका है।

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विकास शुल्क लेकर भूमि स्वामियों को लीज पर दी जा सकती है भूमि


सुधार न्यास बोर्ड से जुड़े जानकारों का कहना है कि डि-नोटिफिकेशन की प्रक्रिया में कई विधिक अड़चनें आएंगी। जिससे मामला फिर फंस सकता है। इसलिए अधिग्रहित की गई भूमि को संबंधित भूमि स्वामियों को लीज पर दी जा सकती है। इसके लिए शासन द्वारा निर्धारित विकास शुल्क जमा कराना होगा। यहां पर पूर्व में कलेक्टर ने ९९ रजिस्ट्रियां रद्द कर दी थी। जिसके बाद स्टांप पेपर पर अनुबंध करके बिक्री की गई।

फैक्ट फाइल–
– 6 मार्च 1992 को 91.375 एकड़ भूमि स्कीम छह के लिए अधिग्रहित।
– बरा-समान की 33.03 एकड़ भूमि का हो चुका है नामांतरण।
– शासकीय भूमि 28.80 एकड़ में 11.68 एकड़ निगम के नाम।
– 17.52 एकड़ मध्यप्रदेश शासन एवं अन्य विभागों के नाम अब भी दर्ज।
– निजी भूमि 62.57 एकड़ में 21.35 एकड़ निगम के नाम हो पाई दर्ज।
– अधिग्रहित 6.78 एकड़ भूमि का मुआवजा भूमि स्वामियों को वितरित।
– 10.46 एकड़ भूमि के लिए विकास शुल्क लेकर समझौता भी किया गया।
– कलेक्टर ने 99 रजिस्ट्री कर दी थी निरस्त।
– वर्ष 2019 में 300 करोड़ के घोटाले का आरोप लगाकर निगम प्रशासन ने सीमांकन की मांगी थी अनुमति।

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