कई विषयों में अभी शुरू नहीं हो सकी पढ़ाई
नए शैक्षणिक सत्र को शुरू हुए तीन महीने से अधिक वक्त गुजर चुका है, लेकिन विद्यालय में पढ़ाई की अभी अच्छे से शुरुआत भी नहीं हो सकी है। छात्रों का कहना है कि न ही कक्षा लगने का कोई निश्चित समय है और न ही छुट्टी का। कक्षाएं भी यदा-कदा ही लगती हैं। मंगलवार को भी विद्यालय में कुछ ऐसा ही हाल दिखा। दोपहर सवा एक बजे कक्षा में छात्र तो मिले लेकिन शिक्षक नदारदर रहे। यह हाल छठवीं से लेकर दसवीं तक की कक्षा में देखने को मिला।
नए शैक्षणिक सत्र को शुरू हुए तीन महीने से अधिक वक्त गुजर चुका है, लेकिन विद्यालय में पढ़ाई की अभी अच्छे से शुरुआत भी नहीं हो सकी है। छात्रों का कहना है कि न ही कक्षा लगने का कोई निश्चित समय है और न ही छुट्टी का। कक्षाएं भी यदा-कदा ही लगती हैं। मंगलवार को भी विद्यालय में कुछ ऐसा ही हाल दिखा। दोपहर सवा एक बजे कक्षा में छात्र तो मिले लेकिन शिक्षक नदारदर रहे। यह हाल छठवीं से लेकर दसवीं तक की कक्षा में देखने को मिला।
विद्यालय में दर्ज है 133 छात्रों का नाम
विद्यालय में यह हाल तब है, जबकि 133 दृष्टिबाधित छात्रों के बीच छह शिक्षक हैं। हालांकि विद्यालय के प्राचार्य शिक्षकों की इस संख्या को अपर्याप्त मान रहे हैं। दलील है कि विद्यालय के कक्षा संचालन से लेकर कार्यालय तक के कार्य बिना शिक्षकों की मदद के संभव नहीं है। कक्षाओं के खाली रहने के पीछे भी यही वजह बताई जा रही है। जबकि छात्रों का कहना है कि पढ़ाई का यह हाल शिक्षकों की लापरवाही का नतीजा है।
विद्यालय में यह हाल तब है, जबकि 133 दृष्टिबाधित छात्रों के बीच छह शिक्षक हैं। हालांकि विद्यालय के प्राचार्य शिक्षकों की इस संख्या को अपर्याप्त मान रहे हैं। दलील है कि विद्यालय के कक्षा संचालन से लेकर कार्यालय तक के कार्य बिना शिक्षकों की मदद के संभव नहीं है। कक्षाओं के खाली रहने के पीछे भी यही वजह बताई जा रही है। जबकि छात्रों का कहना है कि पढ़ाई का यह हाल शिक्षकों की लापरवाही का नतीजा है।
छात्रों को भर पेट भोजन भी नसीब नहीं
विद्यालय के छात्रावास में रहने वाले छात्रों की माने तो उन्हें वहां भर पेट भोजन भी नसीब नहीं हो रहा है। सुबह सात बजे नाश्ते में केवल चाय मिलती है। उसके बाद १०.३० बजे भोजन। खाना की गुणवत्ता इतनी बद्तर होती है कि गले नहीं उतरता। नियम तो सप्ताह में एक दिन विशेष भोजन देने का है, लेकिन हाल यह है कि हर रोज दोपहर व रात में दाल, चावल, रोटी व सब्जी ही नसीब होती है। नाश्ते में भी चाय के साथ मिलने वाला आइटम कभी नसीब नहीं हुआ।
विद्यालय के छात्रावास में रहने वाले छात्रों की माने तो उन्हें वहां भर पेट भोजन भी नसीब नहीं हो रहा है। सुबह सात बजे नाश्ते में केवल चाय मिलती है। उसके बाद १०.३० बजे भोजन। खाना की गुणवत्ता इतनी बद्तर होती है कि गले नहीं उतरता। नियम तो सप्ताह में एक दिन विशेष भोजन देने का है, लेकिन हाल यह है कि हर रोज दोपहर व रात में दाल, चावल, रोटी व सब्जी ही नसीब होती है। नाश्ते में भी चाय के साथ मिलने वाला आइटम कभी नसीब नहीं हुआ।
आधे छात्र ज्यादातर समय रहते हैं नदारद
विद्यालय में पढ़ाई और भोजन सहित अन्य अव्यवस्थाओं के चलते ज्यादातर छात्रों का दिन घर में ही बीतता है। छात्रों के मुताबिक वर्तमान में भी छात्रावास में उपस्थित छात्रों की संख्या ७५ के करीब ही है। जबकि पंजीकृत छात्रों की संख्या 133 है। छात्रावास में छात्रों की कम उपस्थित नियमित रूप से कक्षा नहीं चलने और गुणवत्तापूर्ण भोजन नहीं मिलने का नतीजा है।
विद्यालय में पढ़ाई और भोजन सहित अन्य अव्यवस्थाओं के चलते ज्यादातर छात्रों का दिन घर में ही बीतता है। छात्रों के मुताबिक वर्तमान में भी छात्रावास में उपस्थित छात्रों की संख्या ७५ के करीब ही है। जबकि पंजीकृत छात्रों की संख्या 133 है। छात्रावास में छात्रों की कम उपस्थित नियमित रूप से कक्षा नहीं चलने और गुणवत्तापूर्ण भोजन नहीं मिलने का नतीजा है।
छात्रावास में नहीं है छात्रों का कोई गॉर्जियन
कहने को तो छात्रावास में वार्डन नियुक्त किया गया है, लेकिन छात्रों को विशेष स्थिति में अभिभावक की कमी महसूस होती है। छात्रावास की इस स्थिति से आहत छात्र बताते हैं कि बीमार होने की स्थिति में अक्सर ही साथी अस्पताल लेकर जाते हैं। वार्डन की जिम्मेदारी इस स्थिति में केवल घर फोन कर जानकारी देने तक सीमित है। चिकित्सक मुहैया कराने व इलाज कराने से उनका कोई वास्ता नहीं होता है।
कहने को तो छात्रावास में वार्डन नियुक्त किया गया है, लेकिन छात्रों को विशेष स्थिति में अभिभावक की कमी महसूस होती है। छात्रावास की इस स्थिति से आहत छात्र बताते हैं कि बीमार होने की स्थिति में अक्सर ही साथी अस्पताल लेकर जाते हैं। वार्डन की जिम्मेदारी इस स्थिति में केवल घर फोन कर जानकारी देने तक सीमित है। चिकित्सक मुहैया कराने व इलाज कराने से उनका कोई वास्ता नहीं होता है।
वर्जन –
सभी शासकीय व अशासकीय स्कूलों में त्रैमासिक परीक्षा करा ली गई है, लेकिन यहां अभी शुरू ही नहीं हुई है। संगीत विषय की कक्षा तो आज से शुरू हुई है। ऐसे में यहां पढ़ाई का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता हे।
दिलीप पटेल, 12वीं का छात्र।
सभी शासकीय व अशासकीय स्कूलों में त्रैमासिक परीक्षा करा ली गई है, लेकिन यहां अभी शुरू ही नहीं हुई है। संगीत विषय की कक्षा तो आज से शुरू हुई है। ऐसे में यहां पढ़ाई का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता हे।
दिलीप पटेल, 12वीं का छात्र।
छात्रावास में फस्र्टएड तक की व्यवस्था नहीं है। चिकित्सक जैसी अन्य सुविधाओं की तो बात ही नहीं करिए। बीमार होने की स्थिति में एक दूसरे साइकिल या रिक्शा पर लादकर अस्पताल ले जाते हैं।
गोलू सेन, 11 वीं का छात्र।
गोलू सेन, 11 वीं का छात्र।
हर रोज दाल-चावल मिलता है। विशेष भोजन को हम तरसते हैं। कभी कोई बाहरी व्यक्ति या संस्था भोजन कराने आ गया तभी कुछ अलग नसीब होता है। सभी छात्रावासों में सप्ताह के एक दिन विशेष भोजन मिलता है।
शनि सिंह, नवीं का छात्र।
शनि सिंह, नवीं का छात्र।