दरअसल उक्त विद्यालय का भवन करीब 35 साल पुराना है और पिछले पांच सालों से इस भवन की हालत अत्यंत दयनीय हो गई है। हर बरसात में पानी छत के अंदर रिसता है और भवन को जर्जर बना रहा है। विद्यालय की छत पर लगा प्लास्टर आए दिन टूटकर गिरता है जिससे अब कक्षाएं तक संचालित नहीं हो पा रही है। खुले मैदान में कई महीनों से कक्षाएं चल रही है जिसका असर शैक्षणिक व्यवस्थाओं पर पड़ रहा है। बड़ी मुश्किल से स्कूल में कक्षाएं संचालित हो रही है। ऐसा नहीं है कि इसकी जानकारी अधिकारियों को नहीं है।
विद्यालय के शिक्षकों ने लिखित में भवन की जर्जर स्थिति की जानकारी देकर नए भवन का निर्माण करवाने के लिए जिला शिक्षा अधिकारी को पत्र लिखा था लेकिन कोई पहल नहीं होने से व्यवस्था में कोई सुधार नहंी हो पाया है। मौजूदा समय विद्यालय का भवन जानलेवा स्थिति में है। दीवाल पूरी तरह से फट गई है और कमजोर छत का प्लास्टर टूटकर गिर रहा है लेकिन अधिकारी शायद किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहे है जिसके बाद भवन का निर्माण कार्य करवाया जाये।
जर्जर भवन के कारण पिछले पांच सालों में यहां छात्र संख्या आधी भी नहीं है। पांच साल पहले यहां कक्षा 1 से 8 तक 150 छात्र अध्ययनरत थे। उसके बाद छात्र संख्या 100 हुई और अब वर्तमान समय में 34 बच्चे विद्यालय में पढ़ रहे है। अभिभावकों ने स्पष्ट रूप से शिक्षकों को हिदायत दी है कि विद्यालय भवन के अंदर यदि वे बैठाकर पढ़ायेंगे तो अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजेंगे। हादसे के डर से अधिकांश अभिभावकों ने अपने बच्चों का नाम कटवाकर दूसरे विद्यालयों में लिखवा दिया है।
विद्यालय भवन की स्थिति काफी जर्जर है जिससे कक्षाएं बाहर मैदान में संचालित करनी पड़ रही है। जर्जर भवन की स्थिति के संबंध में जिला शिक्षा को अधिकारी को भी अवगत करवा दिया गया है। प्लास्टर टूटकर गिरता है जिससे बच्चे हादसे का शिकार हो सकते है।
सावित्री शुक्ला, प्रधानाध्यापक